24 News Update डूंगरपुर। जिले में समाज की सोच में एक सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहा है। जहां पहले नवजात शिशुओं को झाड़ियों और कचरे के ढेरों पर छोड़ देने की दर्दनाक घटनाएँ सामने आती थीं, वहीं अब अभिभावक असमर्थता की स्थिति में ‘सुरक्षित परित्याग’ जैसी व्यवस्था का उपयोग करने लगे हैं। इस बदलाव ने न केवल कई मासूमों की जान बचाई है, बल्कि उन्हें सुरक्षित घर, प्यार और भविष्य देने का रास्ता भी खोला है।
इसी परिवर्तन की एक मिसाल शुक्रवार को देखने को मिली, जब जिले की एक बिन ब्याही मां ने निजी कारणों से अपने नवजात की परवरिश करने में असमर्थता जताई। जानकारी मिलते ही बाल अधिकारिता विभाग की टीम सक्रिय हुई और बच्चे को सुरक्षित प्रक्रिया के तहत जिला अस्पताल से शिशु गृह तक लाया गया। ढोल-नगाड़ों की ताल और सम्मानजनक स्वागत के साथ बच्चे को शिशु गृह में प्रवेश दिलाया गया, जहाँ उसके नए जीवन अध्याय की शुरुआत हुई।
शिशु गृह में केयरटेकर ने नवजात को गोद में लेकर सुरक्षा, देखभाल और पोषण की जिम्मेदारी संभाली। विभाग के अनुसार आगे चलकर बच्चे को विधिक प्रक्रिया के तहत दत्तक माता-पिता मिलेंगे, जिससे उसे स्थायी परिवार का स्नेह प्राप्त होगा।
बाल अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक डॉ. कल्पित शर्मा ने बताया कि राज्य सरकार की ‘सुरक्षित परित्याग’ पहल ने स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। पहले असहाय महिलाएँ मजबूरी में नवजात को खतरनाक स्थानों पर छोड़ देती थीं, जिससे जान का जोखिम कई गुना बढ़ जाता था। अब यह व्यवस्था उन्हें मनोवैज्ञानिक और कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है, साथ ही बच्चों का भविष्य भी भरोसेमंद हाथों में जाता है।
डॉ. शर्मा ने कहा कि अस्पताल में चिकित्सा परीक्षण के बाद बाल कल्याण समिति के निर्देशानुसार बच्चे को शिशु गृह की कस्टडी में लिया गया। “यह प्रक्रिया बच्चों के जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली महत्वपूर्ण पहल है,” उन्होंने कहा।डूंगरपुर में ‘सुरक्षित परित्याग’ के बढ़ते उपयोग से स्पष्ट है कि समाज अनचाहे नवजातों के प्रति संवेदनशील बन रहा है और असहाय माताओं को भी यह भरोसा मिल रहा है कि उनका बच्चा सम्मानपूर्वक, सुरक्षित वातावरण में पलेगा।
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