24 News Update मोहनलाल सुखाड़िया. विश्वविद्यालय में आज लगातार नवें दिन एसएफएबी कर्मचारियों की हड़ताल जारी रही। कर्मचारियों ने कल जिस पुतले की प्रतापनगर थाने तक शवयात्रा निकाली थी आज उसकी एक बार फिर से सांकेतिक अंतिम यात्रा निकाली गई और पुतले का दहन प्रशासनिक भवन के बाहर किया गया। आज भी कर्मचारियों को मनाने की कोई पहल नहीं की गई। बताया गया कि ईगो प्रोब्लम वालों का ईगो अब और ज्यादा हर्ट हो गया है। कर्मचारियों का वेतन बार बार रोक कर उनके दर्द का हड़ताल के दौरान आनंद लेने वाले विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब कॉलेजों के डीन को इस बात के लिए बाध्य करना शुरू कर दिया है कि उनके कॉलेजों में काम कर रहे एसएफएबी के कर्मचारियों की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी जाएं। इसके लिए कागजी कार्रवाई पुख्ता तरीके से की जा रही है ताकि बाद में किसी कानूनी प्रक्रिया में उसे एविडेंस के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। बताया जा सके कि हमने तो नौकरी में एक्टेंशन दे दिया था, कर्मचारियों ने ही ज्वाइन नहीं किया। पूरा प्रशासन अब इसी सिंगल लाइन एजेंडे पर चल रहा है। लेकिन उसके तर्क इस बात के आगे फेल हो रहे हैं कि आखिर हड़ताल के लिए कर्मचारियों को किसने मजबूर किया। उनका वेतन बार-बार रोक कर उनकी मायूसियों और मजबूरियों का आनंद आखिर किसने लिया? समय पर तनख्वाह व एक्टेंशन मिल जाते तो आज ये नौबत ही नहीं आती। कर्मचारियों का कहना है कि जो लोग आज आदेशों की धौंस दिखा रहे हैं सच में तो वे ही सबसे बड़े गुनगार हैं। हड़ताल उनकी वजह से ही बार-बार हो रही है। बताया जा रहा है कि सभी डीन डायरेक्टर्स को बारी बारी से ताकीद किया जा रहा है कि सेवा मुक्ति आदेश में कोई कोर कसर नहीं छूटे। अब सवाल यह उठता है कि अगर विश्वविद्यालय में एक साथ 300 कर्मचारी सेवा मुक्त होते हैं तो क्या तब भी कोई भूचाल नहीं आएगा? क्या तब भी बॉम के सदस्य बनकर चुपचाप बैठे और यस मैन बने हमारे जन प्रतिनिधि चुप्पी की चादर ओढ़कर अपने अकर्मण्य होने का सुबूत देंगे। यह भी अचरज की बात है कि जिन डीन-डायरेक्टर्स के अंडर में तीस-तीस साल से ये कर्मचारी काम कर रहे हैं वे भी इनके लिए आवाज नहीं उठा रहे। हड़ताल खत्म कराने का कोई प्रयास नहीं कर रहे। ना ही विश्वविद्यालय के शिक्षक आगे आ रहे हैं जो अपनी हर छोटी सी मांग पर खुद हड़ताल का रास्ता अपनाने को और अपनी समस्याओं को मीडिया के माध्यम से जगजाहिर करने को सदा तैयार रहते हैं।
कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष नारायणलाल सालवी ने कहा कि कुछ लोग चाहते हैं कि सुखाड़िया विश्वविद्यालय की ख्याति गर्त में चली जाए। प्रतिष्ठा धूमिल हो जाए और वे बैठे-बैठे तमाशा देखते रहें। ऐसे लोगों का मंसूबा कभी पूरा नहीं होने वाला है। जो लोग 15 से 30 साल तक नौकरी कर चुके हैं क्या उनको एक कागजी आदेश से निकाला जा सकता है? प्रशासन को चाहिए कि ईगो छोड़कर पहल करें।
इस बीच जिन दो महिला कर्मचारियों ने वीसी पर मारपीट करने और शाब्दिक अभद्रता के आरोप परिवाद देकर लगाए थे, वे भी आज धरने में शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि एसटी एससी का मामला होने के बाद भी प्रताप नगर थाना पुलिस ने 24 घंटे बीत जाने पर एफआईआर तक नहीं की है। यह उनके कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि उन पर तरह तरह से दबाव बनाए जा रहे हैं। दोनों ने साफ कहा कि वीसी साहिबा झूठ बोल रही हैं कि उनके यहां हमने काम नहीं किया। इसका गवाह पूरा स्टाफ है। और भी सुबूत हैं जो पुलिस और न्यायालय को समय आने पर दे दिए जाएंगे। किरण तंवर 17 साल से सुखाडिया विश्वविद्यालय में सेवा दे रही हैं व सालभर से वीसी निवास पर सेवाएं दे रही थीं। उन्होंने बताया कि पूर्व प्रभारी अधिकारी आरती प्रसाद जो अब रिटायर हो गई है, उन्होंने उन्हें वीसी निवास पर भेजा था। उसके बाद वर्तमान में लाइब्रेरी प्रभारी प्रो. मीरा माथुर व असिस्टेंट लाइब्रेरियन राजाराम भाट ने उन्हें वीसी आवास पर काम करने भेजा। अब उनके साथ अन्याय होने के बाद वीसी आवास पर काम करने से मना किया तो वापस लाइब्रेरी में साइन ही नहीं करने दे रहे थे। सबने मौखिक आदेश पर उनको वीसी आवास पर भेजा था। बेबी गमेती ने कहा कि उनकी पोस्टिंग गेस्ट हाउस में थी। करीब छह महीने से वीसी के घर पर काम किया। घटना होने पर नौकरी छोड़ कर चली गई व अब पुनः हॉस्टल में काम कर रही है।ं
MLSU वीसी का पुतला फूंका, पीड़ित महिला कर्मचारियों ने कहा-झूठ बोल रही वीसी, हमने उनके निवास पर काम किया

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