24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही एक बार फिर सामने आई जब उदयपुर के गोगुंदा उपखंड क्षेत्र के नांदेश्मा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर जरूरतमंदों को मदद के बजाय बंद दरवाजा मिला। प्रसव पीड़ा से जूझती एक महिला ने रास्ते में ही निजी वाहन में बच्चे को जन्म दिया और जब उसे आगे इलाज के लिए पीएचसी लाया गया, तो वहां ताले जड़े मिले। छह घंटे तक प्रसूता दर्द से कराहती रही, लेकिन चिकित्सा सहायता दूर-दूर तक नहीं दिखाई दी। चलवा गांव निवासी लेरकी गमेती, पत्नी कमलेश गमेती को अलसुबह अचानक तेज प्रसव पीड़ा हुई। घबराए परिजन उसे आनन-फानन में निजी वाहन से नांदेश्मा पीएचसी ले जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही गाड़ी में प्रसव हो गया। हालात गंभीर थे, ऐसे में वे तुरंत महिला और नवजात को लेकर सुबह करीब 4 बजे पीएचसी पहुंचे। वहां का दृश्य और भी भयावह था। स्वास्थ्य केंद्र के मुख्य द्वार पर ताला लटका हुआ था, कोई चिकित्सक, नर्स या सहायक कर्मचारी नजर नहीं आया। बेबस परिजन प्रसूता को लेकर पीएचसी के बरामदे में बैठ गए। नन्हे नवजात की नाल गांव की एक बुजुर्ग महिला ने काटी, जो स्वयं अनुभवहीन थी। बिना किसी चिकित्सकीय सहायता के, प्रसूता और नवजात को खुले बरामदे में छह घंटे तक दर्द और असुरक्षा के बीच समय बिताना पड़ा। परिजन असहाय थे, वापस घर ले जाना भी संभव नहीं था क्योंकि वाहन किराये के लिए पैसे नहीं थे, और घर पहुंचने के बाद पुनः स्वास्थ्य जांच के लिए पीएचसी आना मुश्किल होता।
ग्रामीणों में उबाल, बीसीएमओ मौके पर पहुंचे
सुबह होते-होते ग्रामीणों में गुस्सा फूट पड़ा। नाराज ग्रामीणों ने बीसीएमओ डॉ. दिनेश मीणा को मामले की जानकारी दी। शिकायत मिलते ही बीसीएमओ मौके पर पहुंचे और हालात का जायजा लिया। उन्होंने बताया कि नांदेश्मा पीएचसी में डॉ. प्रवीण कुमार नियुक्त हैं, लेकिन उनके अवकाश पर होने की कोई सूचना प्रशासन को नहीं दी गई थी। उन्होंने कहा कि स्टाफ की जिम्मेदारी तय करते हुए जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
सीएमएचओ ने दिए जांच के आदेश
घटना की गंभीरता को देखते हुए ग्रामीणों ने इसकी शिकायत मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) से भी कर दी। सीएमएचओ ने तुरंत बीसीएमओ को पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने और अनुपस्थित स्टाफ के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। घटना से आक्रोशित ग्रामीणों ने कहा कि अगर समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होती, तो न सिर्फ महिला की पीड़ा कम होती बल्कि नवजात के स्वास्थ्य की भी सही तरीके से देखभाल हो पाती। लोगों का कहना था कि सरकारी अस्पतालों में ताले लगना प्रशासनिक विफलता का घिनौना उदाहरण है, जो आमजन की जान से खिलवाड़ के समान है।
जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों ने इस मामले में लापरवाह चिकित्सक और स्टाफ के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे। उन्होंने मांग की कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों और स्टाफ की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जाए ताकि भविष्य में किसी मासूम की जान खतरे में न पड़े।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.