24 News Update नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कैश कांड से जुड़ी इन-हाउस कमेटी की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश को चुनौती दी थी। अदालत का यह फैसला न्यायपालिका की आंतरिक अनुशासन प्रणाली को मजबूत करता है।
गौरतलब है कि 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना सामने आई थी, जिसमें 500-500 रुपए के जले हुए नोटों का मामला उजागर हुआ। इस संदिग्ध आग की घटना ने पूरे न्यायिक तंत्र में सनसनी फैला दी थी।
इन-हाउस जांच में दोषी ठहराए गए
कैश कांड की जांच के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया और उनके खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की। इस सिफारिश के खिलाफ ही जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसे अब न्यायालय ने खारिज कर दिया है।
अब क्या विकल्प बचे हैं?
इस्तीफा देकर पेंशन का हक बनाए रखना: यदि जस्टिस वर्मा स्वेच्छा से अपने पद से इस्तीफा देते हैं, तो उन्हें रिटायर्ड जज के तौर पर पेंशन और अन्य सेवानिवृत्त लाभ मिल सकते हैं। इससे वे महाभियोग की प्रक्रिया से भी बच सकते हैं।
महाभियोग का सामना: यदि वे इस्तीफा नहीं देते हैं और संसद में महाभियोग पारित होता है, तो उन्हें पद से बर्खास्त किया जा सकता है और ऐसे में उन्हें पेंशन सहित कोई लाभ नहीं मिलेगा। हालांकि, अब तक उन्होंने इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया है।
संसद में महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन बढ़ा
कैश कांड में बढ़ते राजनीतिक दबाव और न्यायिक साख पर उठते सवालों के बीच लोकसभा में 152 सांसदों और राज्यसभा में 54 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। यह प्रस्ताव अभी संसद में औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन मानसून सत्र में इसे गंभीरता से उठाए जाने की संभावना है।
न्यायपालिका की साख दांव पर
इस प्रकरण ने एक बार फिर न्यायपालिका की पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिकता पर गहन बहस को जन्म दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद अब सबकी नजरें जस्टिस वर्मा के अगले कदम और संसद में होने वाली संभावित कार्रवाई पर टिकी हैं।
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