24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर ‘जनुभाई’ की 114वीं जयंती प्रतापनगर परिसर में श्रद्धा और संकल्प के साथ मनाई गई। कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर, पूर्व कुल प्रमुख प्रफुल्ल नागर, पूर्व कुलपति प्रो. दिव्यप्रभा नागर, पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा, रजिस्ट्रार डॉ. तरुण श्रीमाली सहित तीनों परिसर के कार्यकर्ताओं ने जनुभाई की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लिया। इस अवसर पर आईटी सभागार में ‘वैदिक संस्कृति ही भारत का जीवन है’ विषयक व्याख्यानमाला आयोजित हुई।
कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की आत्मा वेद और उपनिषदों में समाई हुई है, जो केवल पूजा-पाठ तक सीमित न होकर सम्पूर्ण जीवन दर्शन और व्यक्तित्व विकास का आधार है। उन्होंने कहा कि योगः कर्मसु कौशलम् का भाव भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है, जो कर्म, धर्म और कर्तव्य के साथ जीवन को श्रेष्ठ बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति विश्व बंधुत्व का भाव जागृत करती है, जिसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चरितार्थ करने की परंपरा है। भारतीय संस्कृति मानव मात्र ही नहीं, पशु, पक्षी और प्रकृति के प्रत्येक घटक का सम्मान करती है। इसी कारण भारतीय संस्कृति में न केवल मानव कल्याण की कामना है, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण का भाव भी समाहित है।
प्रो. सारंगदेवोत ने जनुभाई के कार्यों को स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने शिक्षा को केवल जीविकोपार्जन का साधन न मानकर मानव निर्माण का माध्यम माना। जनुभाई का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर, चरित्रवान और राष्ट्रहित के लिए समर्पित बनाना है। उन्होंने आज़ादी के 10 साल पहले मात्र पांच कार्यकर्ताओं और तीन रुपये के बजट से विद्यापीठ की नींव रखी थी, जिसे आज हजारों विद्यार्थियों और कार्यकर्ताओं का एक वटवृक्ष रूप मिल चुका है। उन्होंने कहा कि विद्यापीठ की सफलता जनुभाई की सोच, कार्यकर्ता निर्माण और संस्कार आधारित शिक्षा प्रणाली का परिणाम है। हमें उनकी परंपरा को जीवंत बनाए रखते हुए वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर कार्य करना होगा। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि हमारी वर्ण व्यवस्था कभी जन्म आधारित नहीं थी, बल्कि कर्म आधारित थी। दुर्भाग्यवश आज यह स्वार्थ और व्यक्तिगत लाभ का साधन बनती जा रही है। भारतीय संस्कृति ‘आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः’ के भाव के साथ सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की कामना करती है और हमें भी उसी भावना के अनुरूप शिक्षा व संस्कृति के क्षेत्र में कार्य करना चाहिए। अंत में उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं और विद्यार्थियों से आह्वान किया कि जनुभाई द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर विद्यापीठ को और ऊँचाई तक पहुँचाएं और वैदिक संस्कृति व भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनर्जागरण में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।
पूर्व कुलपति प्रो. दिव्यप्रभा नागर ने जनुभाई के संघर्षशील जीवन का उल्लेख करते हुए कहा कि आज़ादी से पहले ही उन्होंने शिक्षा की आवश्यकता को समझकर संस्था की स्थापना की। पूर्व कुल प्रमुख प्रफुल्ल नागर ने कहा कि विद्यापीठ ऐसी अनूठी संस्था है, जहां कार्यकर्ता ही छोटे से बड़े पद तक आते हैं। जनुभाई ने कार्यकर्ताओं का निर्माण कर संस्था को परिवारवाद से मुक्त रखा। पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा ने कहा कि समय पालन, अनुशासन और कर्म ही कार्यकर्ता का प्रमुख दायित्व है। इस अवसर पर प्रो. मलय पानेरी, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. मंजु मांडोत, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, प्रो. गजेन्द्र माथुर, डॉ. कला मुणेत, डॉ. एस.बी. नागर, डॉ. नवीन विश्नोई सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्टर और कार्यकर्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीश चैबीसा ने किया।
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