24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। जल स्वावलंबन पखवाड़े और मानसून पूर्व बाढ़ प्रबंधन तैयारियों को लेकर शुक्रवार को कलक्ट्रेट सभागार में एक अहम संभाग स्तरीय सरकारी बैठक आयोजित हुई। बैठक में जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत, संभागीय आयुक्त, आईजी, सभी जिले के कलक्टर, विधायकगण और विभागीय अधिकारी मौजूद थे। बैठक का उद्देश्य बेहद गंभीर था-जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाना और आगामी मानसून में संभावित आपदाओं से निपटने की रणनीति तय करना। लेकिन इस गहन प्रशासनिक बैठक में उदयपुर भाजपा शहर जिलाध्यक्ष की ’समाजसेवी’ के रूप में उपस्थिति ने कई हलकों में चर्चा का विषय बना दिया है। जब राज्य सरकार के मंत्री, विधायक, आईएएस-आईपीएस और विभिन्न जिलों के प्रशासनिक अधिकारी किसी रणनीतिक और संवेदनशील सरकारी बैठक में शामिल हों, तो वहां राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों की गैर सरकारी हैसियत से मौजूदगी सवाल खड़े करती है। ऐसे समाजसेवी, जो किसी निर्वाचित निकाय का हिस्सा नहीं हैं, जिनके पास न तो कोई प्रशासनिक जिम्मेदारी है और न ही जवाबदेही है, उनकी उपस्थिति क्या बैठक की शुचिता और डेकोरम को प्रभावित नहीं करती है यह चर्चा का विषय है?
बैठक में मीडिया तक सीमित, पर ’समाजसेवी’ अंदर
गौरतलब है कि इस बैठक में पत्रकारों को भी केवल फोटो और कुछ फुटेज तक की सीमित अनुमति दी गई थी। मीडिया को बाहर रखकर बैठक की गोपनीयता बनाए रखना यदि प्रशासन की प्राथमिकता थी, तो फिर गोपनीय सरकारी चर्चा में ’समाजसेवी’ के नाम पर कैसे प्रवेश मिला? क्या यह प्रशासन और राजनीति के एक नए समीकरण की शुरुआत है?
क्या अब सरकारी बैठकों में दिखेंगे ’राजनीतिक समाजसेवी’? बैठक में जल संरक्षण के साथ-साथ बाढ़ प्रबंधन, पौधारोपण, अतिक्रमण हटाने जैसे विषयों पर विस्तृत योजनाएं बनीं। स्वाभाविक है कि ऐसी बैठकों में नीतिगत दिशा तय होती है और कई ऐसे तथ्य साझा होते हैं जो आम जनता या गैर-जवाबदेह व्यक्तियों के लिए नहीं होते। ऐसे में इस उपस्थिति को लेकर यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या अब प्रशासनिक अधिकारियों को राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों के प्रति भी जवाबदेह होना होगा? सरकारी बैठकों में पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीद हमेशा से रहती है, लेकिन यदि राजनीतिक प्रभाव के चलते किसी प्रतिनिधि को ‘समाजसेवी’ के रूप में अंदर आने की छूट मिलती है, तो यह न केवल बाकी राजनीतिक दलों बल्कि पूरे लोकतांत्रिक प्रशासनिक ढांचे के लिए चिंता का विषय है।
क्या कहता है सिस्टम?
सवाल यह भी उठता है कि यदि बैठक ‘सार्वजनिक’ थी, तो अन्य समाजसेवियों, स्वयंसेवी संगठनों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं को भी क्यों नहीं बुलाया गया? और यदि बैठक सरकारी एवं गोपनीय थी, तो उस व्यवस्था को भेदकर एक राजनीतिक प्रतिनिधि कैसे भीतर पहुंचे? इसमें सभी दलों के सभी प्रतिनिधि बतौर समाजसेवी मौजूद होते तो बैलेंसिंग एकट दिखाई देता। यह एक साधारण बात नहीं है। यह एक संकेत है प्रशासनिक कार्यप्रणाली में धीरे-धीरे राजनीतिक प्रभाव की बढ़ती पैठ का। यदि यही चलन बना रहा तो आने वाले समय में ऐसी सरकारी बैठकों की विश्वसनीयता, गंभीरता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगना तय है। क्या सरकार और प्रशासन इस पर कोई स्पष्ट नीति बनाएंगे? या फिर यह नया ‘नॉर्मल’ बनने जा रहा है?

नोट : यह समाचार सरकारी तथ्यों के इनपुट के आधार पर बनाया गया है। इसमें किसी भी पक्ष का कोई वर्शन प्राप्त होने पर समाचार का पुनर्गठन, पुनर्लेखन किया जा सकता है।


Discover more from 24 News Update

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By desk 24newsupdate

Watch 24 News Update and stay tuned for all the breaking news in Hindi ! 24 News Update is Rajasthan's leading Hindi News Channel. 24 News Update channel covers latest news in Politics, Entertainment, Bollywood, business and sports. 24 न्यूज अपडेट राजस्थान का सर्वश्रेष्ठ हिंदी न्‍यूज चैनल है । 24 न्यूज अपडेट चैनल राजनीति, मनोरंजन, बॉलीवुड, व्यापार और खेल में नवीनतम समाचारों को शामिल करता है। 24 न्यूज अपडेट राजस्थान की लाइव खबरें एवं ब्रेकिंग न्यूज के लिए बने रहें ।

Leave a Reply

You missed

error: Content is protected !!

Discover more from 24 News Update

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Discover more from 24 News Update

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading