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मानवाधिकार केवल अधिकार नहीं, एक जीवन शैली है — कुलपति सारंगदेवोत

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24 News Update उदयपुर। राजस्थान विद्यापीठ के संघटक विधि महाविद्यालय में शनिवार को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर सात दिवसीय जागरूकता पखवाड़े की शुरुआत हुई। कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार ही मानवाधिकार का आधार हैं, लेकिन जागरूकता के अभाव में बड़ी संख्या में लोग आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि व्यक्ति को उसके अधिकार जन्म से ही मिल जाते हैं और ये अधिकार शाश्वत होते हैं। उन्होंने कहा— “मनुष्यता ही मानवाधिकार है। भारतीय संदर्भ में मानवाधिकार कोई कानूनी प्रावधान भर नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है। हमारी परंपरा ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ में ही मानवाधिकारों का सार निहित है।”
उन्होंने विश्वभर में बढ़ते संघर्षों, युद्धों और भेदभाव का ज़िक्र करते हुए कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा आज पहले से कहीं अधिक जरूरी है।

“जागरूकता की कमी से लोग अपने अधिकारों से वंचित” — पूर्व न्यायाधीश आर.सी. झाला
मुख्य अतिथि जस्टिस (सेवानिवृत्त) आर.सी. झाला, सदस्य – राज्य मानवाधिकार आयोग, ने कहा कि मानवाधिकार कानून में 43 प्रमुख प्रावधान हैं, परंतु आमजन इनसे अनभिज्ञ हैं।
उन्होंने कहा— “जीवन, समानता और गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार सिर्फ कागजों में सीमित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे विस्तृत करते हुए ‘सम्मानपूर्वक जीने’ के अधिकार को भी जोड़ा है। लेकिन जानकारी के अभाव में कई लोग आज भी अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते।” उन्होंने घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई, यह बताते हुए कि कई महिलाएं सामाजिक भय से शिकायत दर्ज नहीं करातीं। उन्होंने अधिवक्ताओं को ऐसे पीड़ितों की सहायता कर उचित न्याय दिलाने की जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया।

“अधिकारों के साथ कर्तव्यों का पालन भी अनिवार्य” — कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर
कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि यदि नागरिक केवल संविधान में दिए मौलिक अधिकार और कर्तव्यों को समझ लें, तो समाज में अधिकांश समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी। उन्होंने सुझाव दिया कि मानवाधिकार विषय को शिक्षा में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी अधिक संवेदनशील और जागरूक बन सके।

“परंपराओं में छिपा है मानवाधिकार का मूल सार”
कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि भारत में मानवाधिकार की अवधारणा नई नहीं है। हमारे धार्मिक ग्रंथों और दर्शन में मानव कल्याण का संदेश सदियों से मौजूद है। 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी विश्व मानवाधिकार घोषणा-पत्र ने इस पर वैश्विक रूप दिया, और 1950 से प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जा रहा है।

सात दिवसीय पखवाड़े में होंगे जागरूकता कार्यक्रम
प्राचार्य डॉ. कला मुनेत ने बताया कि सप्ताहभर चलने वाले पखवाड़े में पोस्टर प्रतियोगिता, संगोष्ठियां, जनजागरूकता कार्यक्रम और विधि छात्रों के लिए विशेष सत्र आयोजित किए जाएंगे।
उन्होंने कहा— “आज भी समाज में महिलाओं से जुड़ी कई कुप्रथाएं जारी हैं। जागरूकता ही इन्हें समाप्त करने का सबसे प्रभावी साधन है।”

कार्यक्रम का संचालन व उपस्थितजन
कार्यक्रम का संचालन डॉ. रित्वी धाकड़ ने और आभार डॉ. मीता चौधरी ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. के.के. त्रिवेदी, डॉ. सुरेंद्र सिंह चूंडावत, डॉ. ज्ञानेश्वरी राठौड़, डॉ. विनिता व्यास, भानु शक्तावत, सहित कई अकादमिक सदस्य उपस्थित रहे।

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