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मानवाधिकार दिवस पर संगोष्ठी का हुआ आयोजन

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मानवाधिकार कानून को और अधिक सशक्त करने की जरूरत – आरसी झाला
मानवीय मूल्यों को पुनर्स्थापित करने की जरूरत – कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत
हर वर्ग के लिए हो समान कानून – बीएल गुर्जर

24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर. 10 दिसम्बर / द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मानवाधिकारों का जमकर उल्लंघन हुआ , आमजन पर कई प्रकार के अत्याचार हुए, इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व के 58 देशों ने तय किया कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कोई संस्था बननी चाहिए। आज ही के दिन 48 देशों ने मिलकर एक सामूहिक संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र तैयार किया । जो अधिकार संविधान में दिये गये है वही अधिकार मानवाधिकार में भी दिये गये है, लेकिन जागरूकता के अभाव में आमजन अपने अधिकारों से वंचित है। मानवाधिकार कानून को और अधिक सशक्त करने की जरूरत है आयेाग को कई प्रकार की शक्तियॉ दी गई है लेकिन क्रियांविति के लिए उन्हें सम्बंधित संस्था को उसे भेजना होता है, जिससे सम्बंधित को उचित न्याय मिलने मंें देरी होती है। ़उक्त विचार मंगलवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय)के संघटक विधि महाविद्यालय के सभागार में मानवाधिकार दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर के पूर्व न्यायाधीश एवं राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्य आर.सी. झाला ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। झाला ने मानवाधिकार की प्रक्रिया को बताते हुए कहा कि आम व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने का जिम्मा विधि के विधार्थियों का है। इसमें अपील करने का बहुत ही सरल तरीका है, बहुत सी बार आयेाग के सदस्य अखबारों की सूचना से भी उस विषय पर संज्ञान ले लेता है।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि मानवाधिकार का ध्येय वाक्य हमारे धार्मिक गंथों में सर्वे भवंतु सुखिनः एवं वसुधैव कुटुम्बकम की बात कही गयी है, लेकिन हम हमारी संस्कृति एवं परम्परा से भटक गये। आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम हमारे देश में चरित्र निर्माण नहीं कर सके। हमें हमारे मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना करने की जरूरत है। हमारे संविधान की प्रस्तावना अद्भूत है जिसमे न्याय, स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारा समाहित है। आयोग का मुख्य उद्देश्य किसी भी इंसान की जिंदगी , आजादी , बराबरी व सम्मान के अधिकारों के बारे में जागरूक करना और उन्हे अपना हक दिलाना है। देश में लोगों के बीच नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार , राष्ट्रीयता व सामाजिक, उत्पत्ति, सम्पति, जन्म आदि के बारे में भेदभाव नहीं हो सकता। उन्होने कहा कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में मानवाधिकार से जुड़े अध्यायों को प्रमुखता से शामिल किया जाए, इसके जरिए नई पीढ़ी को मानवाधिकारों के प्रति सजग और संवेदनशील बनाया जा सके। महात्मा गांधी ने कहा था कि सामाजिक समरसता और लोकतान्त्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए मानवाधिकारों का संरक्षण नितान्त आवश्यक है।

विशिष्ठ अतिथि कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि मानवाधिकार के कानून सभी के लिए समान हो, इसका पुरा ध्यान रखा जाना चाहिए, विशेषकर महिलाओं के प्रति संवेदनशील होना होगा। आज भी बड़ी संख्यॉ में महिलाए अपने घरों एवं कार्यस्थलों पर प्रताड़ित हो रही है। जागरूकता के अभाव में वह अपने अधिकारों से वंचित है, हमें उन्हें जागरूक कर आगे लाना होगा।

प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए प्राचार्य डॉ0 कला मुणेत ने कहा देश को आजाद हुए भले ही कई दशक बीत चुके हों, लेकिन वर्तमान में भी शोषण पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। महिलाओं में घूंघट और अंगूठे की निशानी सदियों से चली आ रही है। इसके लिए हमे परिवर्तन लाने की जरूरत है।

संचालन डॉ. प्रतीक जांगीण ने किया ।

इस अवसर पर कला संकाय अधिष्ठाता प्रो. मलय पानेरी, सहायक कुल सचिव डॉ. धमेन्द्र राजोरा, लेखाधिकारी भगवती लाल सोनी, डॉ. मीता चौधरी, डॉ. सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत, डॉ. प्रतीक जांगिड, डॉ. के.के. त्रिवेदी, निजी सचिव के.के. कुमावत, अंजु कावडिया, भानु कुंवर सिंह, छत्रपाल सिंह, डॉ. ज्ञानेश्वरी सिंह राठौड, डॉ. रित्वी धाकड, डॉ. लोकेन्द्र सिंह राठौड, चिराग दवे सहित अकादमिक सदस्य उपस्थित थे।

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