भारतीय इतिहास संकलन समिति उदयपुर व साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ का संयुक्त आयोजन
24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। विश्व धरोहर दिवस-2025 के अवसर पर शुक्रवार को “आपदा में बावड़ियों का उपयोग” विषय पर एक सारगर्भित गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह गोष्ठी भारतीय इतिहास संकलन समिति, उदयपुर और साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुई। कार्यक्रम में शहर के इतिहास के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और इतिहास प्रेमियों ने सहभागिता की और मेवाड़ क्षेत्र की ऐतिहासिक बावड़ियों की महत्ता पर प्रकाश डाला।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भारतीय इतिहास संकलन समिति के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने कहा कि “विरासत का संरक्षण देव पूजन के समान है।” उन्होंने बताया कि राजा-महाराजाओं ने जनता की सुविधा के लिए कुएं, सराय और बावड़ियों का निर्माण कराया। मेवाड़ तो बावड़ियों का गढ़ रहा है कृ यहां मंदिर, महल, हवेलियां और धर्मशालाएं बिना बावड़ियों के बनाई ही नहीं जाती थीं। उन्होंने कहा कि आज की आपदा स्थितियों में भी बावड़ियां पेयजल और सुरक्षा का भरोसेमंद स्रोत बन सकती हैं। सार्वजनिक स्थलों पर बनी बावड़ियां आधुनिक सुविधाओं की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी, श्रेयस्कर और टिकाऊ हैं।
समिति के चित्तौड़ प्रांत महामंत्री डॉ. विवेक भटनागर ने गोष्ठी में बताया कि देबारी क्षेत्र में स्थित त्रिमुखी बावड़ी वर्ष 1675 ईस्वी में महाराणा राजसिंह की रानी रामरस दे द्वारा जया बावड़ी के नाम से बनवाई गई थी। यह बावड़ी स्थापत्य की दृष्टि से अद्वितीय है, जिसमें तीन दिशाओं में अलंकृत प्रवेशद्वार हैं, इसी कारण इसे त्रिमुखी बावड़ी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि बावड़ी पर स्थित प्रस्तर लेख में बप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक के शासकों की उपलब्धियों का उल्लेख मिलता है। प्रशस्ति में मालपुरा विजय, चारूमती का विवाह तथा सर्व ऋतु विलास बाग के निर्माण का वर्णन है। इस लेख को रणछोड़ भट्ट ने लिखा और इसके मुख्य शिल्पी नाथू गौड़ थे।
साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने मध्यकालीन भारत की बावड़ियों के सांस्कृतिक और सामाजिक उपयोग की जानकारी देते हुए बताया कि यह केवल जल स्रोत नहीं थीं, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र, धार्मिक अनुष्ठानों के स्थल और सामाजिक मिलन का माध्यम थीं। इन पर गणेशजी, भैरव और ग्रामदेवताओं की स्थापना होती थी और साथ ही रहट प्रणाली के माध्यम से जल निकासी की जाती थी। बावड़ियों पर अंकित शिलालेख न केवल ऐतिहासिक जानकारी देते हैं, बल्कि उन्हें विरासत स्थल भी बनाते हैं।
भारतीय इतिहास संकलन समिति चित्तौड़ प्रांत की महिला मोर्चा प्रभारी डॉ. रेखा महात्मा ने बताया कि महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल कृ नीलकंठ महादेव की छतरी वाली बावड़ी संरक्षण के अभाव में आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। उन्होंने कहा कि यह स्थान न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि इतिहास में भी इसकी विशिष्ट पहचान है।
कार्यक्रम का संचालन इतिहास संकलन समिति उदयपुर के महामंत्री चैन शंकर दशोर ने किया। गोष्ठी में डॉ. मनीष श्रीमाली, दीपक शर्मा, धीरज वैष्णव सहित कई इतिहास प्रेमी, शोधार्थी एवं सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के माध्यम से विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट किया कि ऐतिहासिक बावड़ियों का संरक्षण केवल भूतकाल की रक्षा नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा है। इन धरोहर स्थलों को संरक्षित कर हम न केवल पर्यावरणीय संकटों से लड़ सकते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी अक्षुण्ण रख सकते हैं।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.