24 News Update जयपुर. राजस्थान के सरहदी जिले जैसलमेर में सुरक्षा एजेंसियों ने कांग्रेस के पूर्व मंत्री सालेह मोहम्मद के निजी सहायक (PA) रह चुके शकूर खान मंगालिया को जासूसी के शक में पकड़ा है। सालेह मोहम्मद और उनके परिवार का विवादों से पूर्व में भी नाता रहा है। साल 2013 में तत्कालीन विधायक सालेह मोहम्मद के पिता और मुस्लिम धर्मगुरु गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट खुली थी।

एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हुए थे। उनके एक करीबी को भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े युद्धाभ्यास की जासूसी के आरोप में पकड़ा गया था। हालांकि इन तमाम विवादों के बावजूद फकीर परिवार की मजबूत पॉलिटिकल पकड़ पर कहीं कोई असर नहीं पड़ा। उल्टा विवादों के बाद तत्कालीन SP पंकज चौधरी का वहां से तबादला कर दिया गया था।

अब एक बार फिर शकूर खान की गिरफ्तारी के बाद फकीर परिवार और तत्कालीन जैसलमेर एसपी का एक्शन चर्चा में है। भास्कर ने शकूर खान को लेकर चल रही मौजूदा पड़ताल के बारे में जाना। साथ ही करीब 12 साल पहले हुए उस एक्शन को लेकर तत्कालीन आईपीएस पंकज चौधरी से बात की।

सालेह मोहम्मद परिवार पर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं?

28 मई को जैसलमेर में सुरक्षा एजेंसियों ने जासूसी के शक में जिला रोजगार कार्यालय में क्लर्क (बाबू) शकूर खान मंगालिया को पकड़ा था। आरोप है कि वह अपने विभाग को बिना बताए पाकिस्तान की यात्रा पर गया था। पूछताछ में उसने एजेंसियों का सहयोग भी नहीं किया। इसके बाद शकूर को हिरासत में लिया गया। शकूर खान जैसलमेर के बड़ोड़ा गांव स्थित मंगलियों की ढाणी का रहने वाला है। वह साल 2008 से 2013 तक पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता सालेह मोहम्मद के निजी सहायक (PA) के तौर पर भी काम कर चुका है। उस वक्त सालेह मोहम्मद पोकरण से विधायक थे।

IPS पंकज चौधरी बोले- पाकिस्तान से आते थे लोग

तत्कालीन जैसलमेर एसपी (आईपीएस) पंकज चौधरी बताते हैं- साल 2013 में मैंने जैसलमेर में बतौर एसपी जॉइन किया था। मुझे एयरपोर्ट पर वीआईपी मूवमेंट की जानकारी मिली। इसके बाद मैं एयरपोर्ट पहुंचा। ड्यूटी के दौरान एक जैसे ही कपड़े पहने 10-12 सफेदपोश लोगों को फ्लाइट से आते देखा था।

मैंने पूछा कि ये कौन हैं और कहां से आ रहे हैं? तब मुझे बताया गया था कि ये गाजी फकीर और उनके परिवार के लोग हैं, जो पाकिस्तान के रहिमयार इलाके से आ रहे हैं। ये लोग वहां आते-जाते रहते हैं।

ये बात मुझे तब खटकी थी। ऐसे में मैंने इसका प्रॉपर इन्वेस्टिगेशन करना स्टार्ट किया। पड़ताल में मुझे पता चला कि गाजी फकीर की पूर्व में हिस्ट्रीशीट थी। उसे एडिशनल एसपी लेवल के ऑफिसर ने बंद कर दिया था। संदेह होने पर साल 1965 से लेकर साल 2013 तक का गाजी फकीर का रिकॉर्ड चेक किया गया।

बंद पड़ी हिस्ट्रीशीट खोली

पंकज चौधरी ने बताया- पड़ताल में सामने आया कि गाजी फकीर पर पूर्व में भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर होने वाली तस्करी और असामाजिक गतिविधियों में कथित रूप से लिप्त होने के आरोप थे। साल 1965 में पहली बार गाजी फकीर की हिस्ट्री शीट खोली गई थी। साल 1984 में हिस्ट्रीशीट की फाइल पुलिस रिकॉर्ड से ही गायब हो गई थी। इसके बाद साल 1990 में फिर से हिस्ट्रीशीट खोली गई, लेकिन मई 2011 में एएसपी रैंक के एक अधिकारी ने इसे बंद कर दिया था। यह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला था। इसके बाद मैंने दुबारा से गाजी फकीर की हिस्ट्रीशीट को खोल दिया था।

इसी दौरान हमें इनपुट मिला कि गाजी फकीर और उनके बेटे तत्कालीन पोकरण विधायक सालेह मोहम्मद के पेट्रोल पंप पर AK-47 और कई दूसरे अवैध हथियार जमा किए हुए हैं। पुलिस टीम को वहां रेड के लिए भेजा गया। तब वहां एक कॉन्स्टेबल को बंधक बनाकर उसे जान से मारने की धमकियां दी गई थीं। इसके बाद सालेह मोहम्मद के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया था। इसके अलावा तिरंगे के अपमान को लेकर भी तब इसी परिवार के एक शख्स के खिलाफ एक और मुकदमा दर्ज किया गया था।

12 साल पहले भी रडार पर था शकूर खान

पंकज चौधरी बताते हैं- हाल में जासूसी के आरोप में पकड़ा गया शकूर खान तब विधायक सालेह मोहम्मद का पीए हुआ करता था। इसी दौरान विधायक सालेह मोहम्मद का एक और करीबी सुमेर खान को भी पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में पकड़ा गया था। उस दौरान सुमेर खान से हुई पूछताछ के बाद शकूर खान भी हमारी रडार पर आ गया था। कुछ कार्रवाई करते उससे पहले ही मेरा जैसलमेर से ट्रांसफर हो गया था। इसके बाद जो हुआ सबके सामने है।

ISI से ट्रेनिंग लेकर लौटा था सुमेर खान

भास्कर पड़ताल में सामने आया कि जैसलमेर के पोकरण में वायुसेना के ऑपरेशन आयरन फीस्ट की जानकारी पाकिस्तान भेजने के आरोप में साल 2013 फरवरी में सुमेर खान को पकड़ा गया था। वह गाजी फकीर के विधायक बेटे सालेह मोहम्मद का दायां हाथ माना जाता था।

सुमेर खान को उसके चांधण रेंज में करमा की ढाणी से पकड़ा गया था। आरोप था कि उसने 22 फरवरी 2013 को हुए भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े युद्धाभ्यास की फोटो और जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को ई-मेल के जरिए भेजी थी।

विशेष टीम को खान से प्रारंभिक पूछताछ के बाद उसके घर से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज व साक्ष्य मिले थे। इंटेलिजेंस से पूछताछ में उसने बताया था कि उसका मामा रहीमयार खान है, जो आईएसआई के हेडक्वार्टर (पाकिस्तान) में तैनात है। जासूसी की ट्रेनिंग वहीं पाकिस्तान में हुई थी। इसके बाद वह दो साल से वायुसेना के युद्धाभ्यास से जुड़ी जानकारी भेज रहा है। तब खान को जयपुर लाकर न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे पहले आठ दिन की पुलिस रिमांड और बाद में जेल भेज दिया गया था।

7 बार पाकिस्तान जा चुका शकूर खान

2013 तक सालेह मोहम्मद का पीए रहने के बाद शकूर खान जिला रोजगार कार्यालय में बतौर क्लर्क जॉइन कर चुका था। इंटेलिजेंस सूत्रों के मुताबिक, शकूर खान पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान की 7 बार यात्रा कर चुका है। शकूर खान की पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहिमयार खान, सक्खर, घोटकी आदि क्षेत्रों में नजदीकी रिश्तेदारी है।

पूछताछ में खुफिया एजेंसियों को उसके मोबाइल में पाकिस्तान के कई अनजान नंबर मिले हैं। इनके बारे में वह कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। इसके अलावा दावा है कि शकूर ने अपने फोन से कई दस्तावेज डिलीट भी किए हैं, जिन्हें रिकवर करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं।

अब एजेंसियां ये पता लगाने का प्रयास कर रही हैं कि उसके बार-बार पाकिस्तान जाने के पीछे क्या कारण रहा। वह भारत में पाक दूतावास के किन अधिकारी व कर्मचारियों से लगातार संपर्क में था। पाकिस्तान में किसके संपर्क में रहा और उसके परिचित रिश्तेदार कौन-कौन लोग पाकिस्तान में रहते हैं।

अब बताते हैं कौन थे गाजी फकीर? जिसके एक इशारे से बदलते थे सियासी समीकरण

गाजी फकीर भारत में सिंधी मुसलमानों के धर्म गुरु माने जाते थे। उन्हें यह पद पाकिस्तान के पीर पगारों के नुमाइंदे के रूप में मिला था। यहां वे उनका प्रतिनिधित्व करते थे। 4 साल पहले गाजी फकीर के निधन के बाद उनकी पदवी उनके बड़े बेटे सालेह मोहम्मद को दी गई। मौलवियों ने तब सालेह मोहम्मद को साफा पहनाकर खलीफत-ए-पीर पगारा की जिम्मेदारी सौंपी।

इंतकाल (देहांत) होने से पहले तक गाजी फकीर 50 साल से जैसलमेर की राजनीति में किंग मेकर की भूमिका में थे। साल 1995 में एक बार जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़े। उसके अलावा उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा।

साल 1970 के करीब गाजी फकीर दलगत राजनीति में सक्रिय हुए थे। 70 के दशक में गाजी फकीर ने बड़ोड़ा गांव (जैसलमेर) के भोपाल सिंह का साथ दिया और उन्हें विधायक बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद भोपाल सिंह की मदद से ही वे बड़ोड़ा गांव के निर्विरोध सरपंच बने। इस दौरान धीरे-धीरे फकीर को अपनी ताकत का एहसास हुआ। बाद में वे हर चुनाव में सक्रिय रहकर किसी भी एक उम्मीदवार पर हाथ रखते और उसकी जीत होती।

पार्टियों से किनारा कर खुद का सियासी गठजोड़ बनाया

साल 1985 में गाजी फकीर ने सभी पार्टियों से किनारा किया। जैसलमेर में मुस्लिम और मेघवाल समाज का नया गठबंधन बनाया। इस दौरान मुल्तानाराम बारूपाल निर्दलीय खड़े हुए और इसी गठबंधन की ताकत पर वे चुनाव जीत गए। इससे फकीर का कद बढ़ गया। तब से लेकर 2020 तक यह गठबंधन चला और कांग्रेस के साथ रहा।

फकीर का चुनाव में फरमान जारी होता था। उसी तरह से इनके भाई फतेह मोहम्मद भी राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहते थे। गाजी फकीर ने 1993 में फतेह मोहम्मद को जैसलमेर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़वाया, लेकिन वो हार गए।

गाजी फकीर परिवार ने 15 साल तक जैसलमेर जिला परिषद पर राज किया। जिला प्रमुख का पद हमेशा इनके परिवार के पास ही रहा। वर्ष 2000 में भाई फतेह मोहम्मद को जिला प्रमुख और बेटे सालेह मोहम्मद को पंचायत समिति जैसलमेर का प्रधान बनाया गया था। साल 2005 में सालेह मोहम्मद जिला प्रमुख बने। इसके बाद साल 2010 में दूसरे बेटे अब्दुला फकीर जिला प्रमुख बने और 2015 में तीसरे बेटे अमरदीन फकीर प्रधान बने।

साल 2008 में गाजी फकीर के बेटे सालेह मोहम्मद पोकरण विधायक बने। हालांकि 2013 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 2018 में सालेह मोहम्मद जीते और एक बार फिर विधायक बनने के साथ ही कैबिनेट मंत्री बनाए गए। मानेसर प्रकरण के दौरान जब गहलोत सरकार पर संकट आया तो अस्वस्थ होने के बावजूद तब गाजी फकीर जयपुर आए। गहलोत समर्थक विधायकों से मिले थे। वर्तमान में भी गाजी फकीर के परिवार के कई सदस्य पॉलिटिक्स में एक्टिव है और अलग-अलग पदों पर काम कर रहे हैं।


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By desk 24newsupdate

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