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पारसमणि के संग से लोहा भी सुवर्ण बन जाता है, वैसे ही सद्गुरु के संग से पापी भी पावन बन जाता है — जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

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24 News Update उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित नूतन आराधना भवन में गुरुवार को गुरु पूर्णिमा महापर्व को जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में अत्यंत श्रद्धा, भक्ति और धार्मिक उल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का आयोजन श्रीसंघ के तत्वावधान में हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने जानकारी दी कि गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर प्रातः 7 बजे से संतों के सान्निध्य में आरती, मंगल दीपक प्रज्वलन, सर्व औषधियों से महाअभिषेक एवं अष्टप्रकारीय पूजा-अर्चना संपन्न हुई। इस अवसर पर जैनाचार्य श्री रत्नसेन सूरीश्वर महाराज ने प्रवचन में कहा: पारसमणि के संग से लोहा भी सुवर्ण बन जाता है, वैसे ही सद्गुरु के संग से पापी व्यक्ति भी पावन बन जाता है। सद्गुरु के माध्यम से ही हमें परमात्मा और धर्म का बोध होता है। उन्होंने कहा कि यद्यपि वर्ष भर में तीन चातुर्मास होते हैं, परंतु आषाढ़-चातुर्मास का विशेष महत्व है, क्योंकि इस अवधि में सद्गुरु से ज्ञान और धर्म-संस्कार का सर्वोत्तम संयोग प्राप्त होता है।
जैनाचार्य ने कहा कि जैसे जल से शरीर की प्यास बुझती है और शीतलता मिलती है, वैसे ही जिनवाणी से आत्मा की अग्नि शांत होती है और कर्मों की मलिनता दूर होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मानव जीवन क्षणभंगुर है, इसलिए केवल सांसारिक दौड़ में ही नहीं, बल्कि धर्म और साधना के अवसरों का पूर्ण लाभ उठाना चाहिए। जैसे छाछ की थोड़ी-सी बूंद भी दूध को दही बना देती है, जो आगे चलकर मक्खन और घी में परिवर्तित होता है, उसी तरह चातुर्मास आत्मिक रूपांतरण का अमूल्य अवसर है।
इस अवसर पर श्रीसंघ के प्रमुख पदाधिकारी — कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, अध्यक्ष शैलेन्द्र हिरण, नरेंद्र सिंघवी, हेमंत सिंघवी, गौतम मुर्डिया, जसवंत सिंह सुराणा सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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