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जो विचार निंदनीय हैं, उन्हें अपने भीतर न जाने दें — संत तिलकराम

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24 न्यूज अपडेट, सागवाड़ा (जयदीप जोशी)। नगर के आसपुर मार्ग लोहारिया तालाब के सामने स्थित कान्हड़दास धाम बड़ा रामद्वारा में चातुर्मास कर रहे रामस्नेही संत तिलकरामजी ने आज के सत्संग में कहा कि जो विचार निंदनीय हैं, उन्हें अपने भीतर न जाने दें तथा अच्छे विचारों का स्वागत करें। संत ने कहा वर्तमान मानव धर्म की नकारात्मक व प्रतियोगी वैचारिकी से ग्रस्त है। यदि किसी नकारात्मक और जीवन से निराश व्यक्ति को धर्म के बारे में बताने लगो, तो वह अत्यधिक नकारात्मक हो धर्म और धार्मिक गतिविधियों को कुतर्कों से मिथ्या सिद्ध करने लगता है। धर्म जीवन की प्राकृतिक धारणाओं को पूर्वाग्रह के बिना स्वीकार करने की पुण्य प्रवृत्ति है। हमारा जीवन हमने नहीं बनाया, इसकी रचना के माध्यम तो हमारे माता-पिता हैं, परंतु जिन पंचतत्वों के सम्मिश्रण से हमारे माता-पिता व हमारा जन्म होता है, उनको निर्मित, व्यवस्थित व संतुलित करने वाला तो कोई और ही है। इसके लिए जगतपति की शुभकामनाएं समर्पित करनी चाहिए।
संत ने कहा कि जिस प्रकार फूल में खुशबू होती है, तिल में तेल पाया जाता है, लकड़ी में अग्नि होती है, दूध में घी छुपा रहता है, गन्ने में गुड़ होता है, उसी प्रकार यदि हम ठीक से देखें तो हर व्यक्ति में परमात्मा के सदृश अनेक गुण छुपे रहते हैं। उन गुणों की पहचान करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ होता है। संत ने बताया सन्यास का अर्थ — कामनाओं के सम्यक न्यास से है। अतः सन्यासी होना, अर्थात अग्नि, वायु, जल और प्रकाश हो जाना है। सन्यासी के जीवन का प्रत्येक क्षण परमार्थ को समर्पित होता है।
प्रवक्ता बलदेव सोमपुरा ने बताया संत प्रसाद मयंक दोसी परिवार का रहा। इस अवसर पर देवीलाल सोनी, विष्णु दोसी, विजय पंचाल, सुधीर वाडेल, सुरेंद्र शर्मा, नाथूलाल परमार सहित कई पुरुष व महिला भक्त उपस्थित रहे।

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