24 News Update जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए मृतक डिस्ट्रिक्ट जज बी.डी. सारस्वत की बर्खास्तगी को अवैध ठहराया है। कोर्ट ने फुल कोर्ट की सिफारिश और राज्यपाल के आदेश दोनों को निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि सारस्वत के रिटायरमेंट की तारीख तक का पूरा वेतन और पेंशन लाभ उनके परिवार को दिया जाए। जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण और जस्टिस बिपिन गुप्ता की डिवीजन बेंच ने यह फैसला 3 नवम्बर 2025 को सुनाया। अदालत ने कहा कि सारस्वत के खिलाफ की गई विभागीय जांच “गलत और असंगत साक्ष्यों” पर आधारित थी। यह फैसला उस 15 वर्ष पुराने मामले में आया है, जिसकी सुनवाई पूरी होने के बाद 8 अगस्त को निर्णय सुरक्षित रखा गया था।
मामले की पृष्ठभूमि: बी.डी. सारस्वत वर्ष 2004-05 में प्रतापगढ़ में एनडीपीएस एक्ट के विशेष न्यायाधीश थे। एक आरोपी की तीसरी जमानत याचिका स्वीकार करने पर उन पर “अवैध उद्देश्यों से दी गई जमानत” का आरोप लगाया गया था। शिकायत के आधार पर जांच अधिकारी जस्टिस एन.पी. गुप्ता ने 2009 में अपनी रिपोर्ट में उन्हें दोषी बताया था, जिसके बाद 2 फरवरी 2010 को फुल कोर्ट ने बर्खास्तगी की सिफारिश और 8 अप्रैल 2010 को राज्यपाल ने आदेश जारी किया। सारस्वत की 2012 में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनकी पत्नी, पुत्र अमित सारस्वत और पुत्री मधु सारस्वत ने न्याय के लिए यह केस लड़ा।
हाईकोर्ट का विश्लेषण: कोर्ट ने पाया कि जिस आरोपी को जमानत दी गई थी, वह सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत “वैधानिक/डिफॉल्ट जमानत” का हकदार था, क्योंकि 90 दिन से अधिक समय बीतने पर भी चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी। इस स्थिति में जज के पास जमानत देने के अलावा कोई वैधानिक विकल्प नहीं था। बेंच ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी ने “रमेश और अयूब” जैसे असंबंधित मामलों के जमानत आदेशों को भी सबूत के रूप में लिया, जो न्यायिक अनुशासन के सिद्धांतों के विपरीत था। कोर्ट ने 2009 की जांच रिपोर्ट, 2010 के फुल कोर्ट प्रस्ताव और राज्यपाल के आदेश — तीनों को निरस्त कर दिया। साथ ही यह निर्देश दिया कि 8 अप्रैल 2010 से 28 फरवरी 2011 तक का पूरा वेतन व सेवा लाभ परिवार को दिया जाए। सारस्वत को “काल्पनिक रूप से बहाल” माना जाएगा और उनके परिवार को पेंशन सहित सभी सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान किए जाएंगे।
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