24 News Update सलूंबर। जिले के किसानों के लिए उद्यानिकी फसलों में सीताफल की खेती आमदनी बढ़ाने का बेहतर विकल्प बन रही है। पानी की कम जरूरत और सहनशील स्वभाव के चलते सीताफल पहाड़ी व कम उपजाऊ क्षेत्रों में भी आसानी से लगाया जा सकता है। कोटड़ा, फलासिया और चित्तौड़ क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में सीताफल की उपज अच्छी हो रही है, जिसका लाभ उदयपुर मंडी तक मिल रहा है। चित्तौड़ उद्यानिकी उत्कृष्टता केंद्र पर बालानगर, अर्का सहम और चित्तौड़ किले की देशी किस्म सहित कई किस्में उपलब्ध हैं, जो कम पानी व कठिन मिट्टी में भी फल देने में सक्षम हैं।
उप निदेशक उद्यान विभाग पुरुषोतम लाल भट्ट ने बताया, “सीताफल का पौधा एक बार लगाकर बारिश के पानी से आसानी से पनप जाता है। किसान यदि दो बीघा क्षेत्र में भी खेती करें तो विभागीय अनुदान का लाभ ले सकते हैं। एक हैक्टेअर क्षेत्र में बगीचा लगाने पर 37,500 रुपये का अनुदान मिलता है, जिसमें पहले वर्ष 60 प्रतिशत और दूसरे वर्ष 40 प्रतिशत सहायता दी जाती है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनाने पर ही यह अनुदान दिया जाता है।”
उन्होंने आगे कहा, “सीताफल के पौधे तीन साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं। पहले साल प्रति पौधा लगभग 5 किलो और पाँचवें साल 12 से 15 किलो तक फल मिल सकता है। यह किसानों के लिए अतिरिक्त आय का अच्छा स्रोत है। इच्छुक किसान नजदीकी कृषि पर्यवेक्षक या उद्यान विभाग से संपर्क कर ई-मित्र पोर्टल से आवेदन कर योजना का लाभ ले सकते हैं।”
किसानों ने बताया कि सीताफल की खेती से उन्हें कम लागत में अच्छा लाभ मिल रहा है। विशेष रूप से पहाड़ी व सीमांत क्षेत्रों के किसानों के लिए यह योजना राहत और आजीविका का बेहतर विकल्प बन रही है। ग्रामीण इलाकों में इस योजना के तहत सीताफल की बाड़ी लगाने की पहल से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और जनजातीय क्षेत्रों में कृषि आधारित आय का नया रास्ता खुलेगा।
Discover more from 24 News Update
Subscribe to get the latest posts sent to your email.