24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। लेकसिटी उदयपुर में ऐसा लगता है कि बड़े लोग बड़े स्तर पर बड़े लोगों के हितों के लिए ही हमेशा काम करते हैं। राजनेताओं के बारे में तो सुना था कि अफसर चरणवंदना करते नज़र आते हैं मगर अब तो बड़े अस्पतालों के आगे सीएमएचओ दफ़्तर तक नतमस्तक दिखाई दे रहा है।
सीएम पोर्टल पर की गई शिकायत को मज़ाक में लेते हुए परिवादी की शिकायत को चलताऊ तरीके से निपटा रहा है। बिना परिवादी से बात किए हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री के पोर्टल पर यह अपलोड करवा रहे हैं कि शिकायत का निस्तारण कर दिया गया है। यह गंभीर अनियमितता ही नहीं, जांच और पनिशमेंट का भी विषय है।
आपको बता दें कि उदयपुर निवासी एक व्यक्ति ने गत दिनों अपने एक रिश्तेदार के हेल्थ इश्यू को लेकर गीतांजली हॉस्पिटल का रुख किया। इस अस्पताल में सरकारी हेल्थ बीमा के लागू होने व निशुल्क उपचार का प्रावधान होते हुए भी पार्किंग के नाम पर खुली लूट मची हुई है।
पार्किंग में दुपहिया वाहन 12 घंटे रखने पर 10 रुपए और उससे अधिक यानी कि पूरे दिन रखने पर 20 रुपए वसूले जा रहे हैं। इससे पहले यह चार्ज 10 और 20 रुपए था। यानी कि जहां सरकार खुद निशुल्क इलाज जनता का करवा रही है, वहां पर पार्किंग पर बेलगाम और बेहिसाब वसूली हो रही है।
मरीजों का कहना है कि या तो सरकारी बीमा वाले सिस्टम से इस अस्पताल को बाहर किया जाए या फिर पार्किंग वसूली को बंद किया जाए। सरकार खुद 10 रुपए से कम में भरपेट भोजन करवा रही है तो फिर उतने से ज़्यादा का पार्किंग शुल्क क्यों वसूला जा रहा है। क्या इस बारे में सीएमएचओ कोई जांच कर रहे हैं? क्या कोई कार्रवाई की मंशा रखते हैं?
बहरहाल, ताज़ा मामला यह सामने आया है कि गीतांजली हॉस्पिटल में मरीज को अस्पताल में छोड़कर एक युवक जब अपने दुपहिया वाहन को पार्किंग में पार्क करने गया तो उससे 20 रुपए ले लिए गए। जब युवक का ध्यान बोर्ड पर गया तो उसने कहा कि 12 घंटे के 10 रुपए बोर्ड पर लिखे हैं, तो ठेकेदार के कर्मचारी ने कहा कि ठीक है, 10 ही लगेंगे।
कुछ देर तक खड़े रहने के बाद भी जब बचे हुए रुपए नहीं दिए, तो युवक ने कर्मचारी से कहा कि बचे हुए रुपए वापस करो। इस पर उसने रुपए थमाए और “चलो, यहां से” कहते हुए अशोभनीय तरीके से बर्ताव किया। विरोध करने पर उसने कहा कि ज़्यादा परेशानी है तो ठेकेदार से बात कर लो।
ठेकेदार को बार–बार फोन करने पर भी उसने फोन रिसीव नहीं किया। इधर, मरीज को दिखाने की प्रक्रिया में देरी हुई जिससे परेशानी हुई। आखिरकार परेशान युवक ने राजस्थान के सीएम पोर्टल 181 पर शिकायत दर्ज करवाई। कायदे से तो उसी समय शिकायत का निस्तारण किया जाना था लेकिन सीएम पोर्टल पर ऐसा नहीं किया गया।
शिकायत के बावजूद ना तो गीतांजली प्रशासन की ओर से, ना ही सीएमएचओ प्रशासन की ओर से युवक से कोई बातचीत की गई। और चार दिन बाद अचानक युवक के मोबाइल पर संदेश आया कि “आपके परिवाद का निस्तारण कर दिया गया है।”
सवाल यह उठता है कि जब पीड़ित पक्ष को सुना ही नहीं गया तो परिवाद का निस्तारण कहां से हो गया? सीएमएचओ दफ़्तर में ऐसे कौन से लोग हैं जो गीतांजली अस्पताल के सामने इतने पस्त हो गए हैं कि नाम सुनते ही परिवादी की शिकायत को कूड़ेदान में फेंक दिया — वह भी सीएम पोर्टल की शिकायत को।
कलेक्टर के स्तर पर यह जांच का विषय हो सकता है। मामला यहीं नहीं थमा। जब परिवादी ने कहा कि पोर्टल पर शिकायत फिर से खोली जाए, तो शिकायत के कुछ ही पलों बाद गीतांजली से किसी सिक्योरिटी इंचार्ज का फोन आया व मामला पूछा।
इस पर परिवादी ने पूछा कि क्या आपने अपने पार्किंग स्टाफ से बात की है? इस पर उन्होंने कहा कि नहीं। परिवादी ने पूछा कि तो फिर आप अपने सिस्टम से बिना फीडबैक लिए किस बिहाफ पर बात कर रहे हैं? इसके बाद युवक के पास कोई फोन नहीं आया।
मज़े की बात है कि आज उसी परिवाद का फिर से निस्तारण करने का मैसेज आ गया। युवक को नहीं बताया गया कि मामले का क्या हुआ, क्या न्याय मिला, क्या राहत दी गई।
जब सीएम पोर्टल पर पूछा गया तो बताया गया कि सीएमएचओ कार्यालय की ओर से कोई जवाब अस्पताल से मांगा गया है। यह बात परिवादी को भी बताई जा सकती थी, मगर सीएमएचओ के होनहार कर्मचारी गीतांजली अस्पताल को किसी नोटिस देने की बात को सार्वजनिक नहीं होने देना चाह रहे हैं।
युवक ने बताया कि अगर ऐसा चलता रहा तो कहां सुनवाई होगी, न्याय कैसे मिलेगा। राहत तुरंत चाहिए थी, सुनवाई तुरंत होनी थी, मगर सीएमएचओ ने गीतांजली अस्पताल के साथ मिलकर मामले को ही जलेबी बनाकर रख दिया। इस बारे में अगर विधायक व सांसद संज्ञान लें तो बेहतर रहेगा।

