आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी

24 News Update उदयपुर, 23 जुलाई। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कच्छवागड़ देशोद्धारक अध्यात्मयोगी आचार्य श्रीमद विजय कला पूर्ण सूरीश्वर महाराज के शिष्य गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय कल्पतरु सुरीश्वर महाराज के आज्ञावर्तिनी वात्सलयवारिधि जीतप्रज्ञा महाराज की शिष्या गुरुअंतेवासिनी, कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की।
आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में बुधवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने प्रवचन में बताया कि लोगस्स सूत्र के माध्यम से हम चौबीस जिनेश्वर परमात्मा का नाम स्मरण करते हैं और उनको वंदन करते है। हृदय में आदर और बहुमान पूर्वक परमात्मा का नाम स्मरण करने से सम्यक दर्शन गुण की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार मयूर की टहुकार के साथ ही चंदन वृक्ष पर लिपटे हुए सभी सर्प एक क्षण में पलायन कर जाते हैं। उसी प्रकार परमात्मा आपके नामस्मरण के माध्यम से आप जिसके हृदय मंदिर में पधारते हो, उस आत्मा के कर्मों के बंधन शीघ्र ही शिक्षिक हो जाते हैं। घाति कर्मों के क्षय के बाद तीर्थकर नाम कर्म उदय में आता है, उस कर्म के उदय से जन्म से चार, कर्मक्षय से ग्यारह, और देवकृत से उचीस अतिशय यानि चौंतीस अतिशय सभी तीर्थकरों के एक समान होते हैं।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागोरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भण्डारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।
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