24 न्यूज अपडेट, बांसवाड़ा। क्या हम अंधे कानून वाले अंधे तंत्र में जी रहे हैं। महिला पर जानलेवा हमला होता है, वह गुजरात में भर्ती रहती है। कई महीनों तक गायब रहने के बाद अपराधी पकड़ा जाता है। फिर उसका भाई महिला पर दबाव बनाकर समझौता करवा देता है। उससे लिखवा देता है कि अब उसे आरोपी से कोई खतरा नहीं है। इसके बाद कानून भी अपराधी को आजाद कर देता है। बिना इस खतरे ही आहट भांपे कि बाहर आकर यही व्यक्ति उसी महिला का तलवार से बेरहमी से कत्ल कर देगा।
बांसवाड़ा जिले में एक सरकारी शिक्षिका की दिनदहाड़े सड़क पर तलवार से हत्या ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया है। 36 वर्षीय लीला ताबियार की जान उस व्यक्ति ने ली, जिसे कभी उसने अपने जीवन का हिस्सा बनाया था। यह हत्या महज एक व्यक्तिगत रंजिश या संबंध-विच्छेद का मामला नहीं है, बल्कि यह सामाजिक दबाव, न्याय तंत्र की असफलता और डर के साये में किए गए समझौतों की परिणति है।
1 जुलाई की सुबह करीब 10ः30 बजे, बांसवाड़ा के कलिंजरा बस स्टैंड पर लीला रोज़ की तरह स्कूल जाने के लिए तैयार थी। सज्जनगढ़ ब्लॉक के छाया महुड़ी स्थित सरकारी स्कूल में संस्कृत पढ़ाने वाली लीला, अपने ही गांव अरथूना के तरीयापाड़ा से बस पकड़ने आई थी। तभी नीले रंग की अल्टो कार से उसका पूर्व प्रेमी महिपाल भगोरा वहां पहुंचा। उसने लीला से कहा कि वह उसे स्कूल छोड़ देगा। पहले तो लीला झिझकी, लेकिन उसे यह अंदाजा नहीं था कि कुछ ही मिनटों में उसकी जिंदगी खत्म होने वाली है।
कार में बैठते ही दोनों के बीच बहस शुरू हो गई। लीला ने गाड़ी रुकवाई और बस स्टैंड की एक दुकान के बाहर बैठकर बस का इंतजार करने लगी। महिपाल वहां से चला गया। लेकिन कुछ ही देर में वह वापस लौटाकृइस बार हाथ में तलवार लेकर। जैसे ही लीला ने उसे देखा, वह संभल पाती इससे पहले ही महिपाल ने उस पर हमला कर दिया। सड़क पर दौड़ते हुए वह लीला की ओर लपका और एक के बाद एक कई वार किए। भीड़ कुछ समझ पाती, उससे पहले लीला लहूलुहान होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। मौके पर ही उसकी मौत हो गई। फरार होने की कोशिश में महिपाल की कार एक पेड़ से टकरा गई, लेकिन वह गाड़ी छोड़कर भाग निकला। अभी तक पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई है।
इस निर्मम हत्या से पहले भी लीला पर जानलेवा हमला हो चुका था। अगस्त 2023 में भी महिपाल ने तलवार से लीला के गले और हाथ पर ताबड़तोड़ वार किए थे, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हुई थी। महीनों तक इलाज चला। मामला पुलिस तक पहुंचा, महिपाल जेल गया, लेकिन सजा पूरी करने से पहले ही लीला पर फिर दबाव बनने लगा। महिपाल के भाई चेतन भगोरा ने डेढ़ महीने पहले उसके घर जाकर धमकी दी कि अगर महिपाल को जेल से नहीं छुड़ाया तो वह बाहर आकर लीला को जान से मार देगा।
इस धमकी ने वह काम किया जो कोर्ट के आदेश नहीं कर सके। डर, सामाजिक दबाव और बदनामी के भय ने लीला को झुकने पर मजबूर कर दिया। उसने केस वापस ले लिया, अदालत में बयान दिया कि अब उसे महिपाल से कोई खतरा नहीं है। नतीजा यह हुआ कि आरोपी जेल से छूट गया और जैसे ही छूटा, वही डर हकीकत बन गया।
मृतका के भाई श्रवण ताबियार ने बताया कि लीला संविदा पर गढ़ी उपखंड के सरेड़ी बड़ी गांव के कस्तूरबा विद्यालय में कार्यरत थी, यहीं उसकी महिपाल भगोरा से मुलाकात हुई थी। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे और लिव-इन में रहने लगे। लीला तलाकशुदा थी और महिपाल उस पर अधिकार जताने लगा था। जब 2023 में लीला को सरकारी नौकरी मिली और उसने दूरी बनानी शुरू की, तो महिपाल ब्लैकमेल करने लगापैसों के लिए, भावनात्मक दबाव डालकर। दूरी बढ़ी तो महिपाल ने हिंसा का रास्ता अपना लिया।
इस हत्या से ठीक पहले महिपाल ने दो वीडियो भी शूट किए, जिनमें उसने खुद को ठगा हुआ बताया। वीडियो में वह कहता है कि लीला ने उसे पढ़ाया, आगे बढ़ाया और फिर छोड़ दिया। कार की अगली सीट पर उसकी मां बैठी थी, जो रोती रही, बेटे को रोकने की कोशिश करती रही, लेकिन महिपाल की आंखों में सिर्फ खून उतर आया था।
लीला की हत्या सिर्फ उसके जीवन की समाप्ति नहीं, बल्कि एक सिस्टम की असफलता है। वह सिस्टम जो पीड़िता से ही यह साबित करवाने की मांग करता है कि खतरा खत्म हो गया है। वह समाज जो महिला से यह अपेक्षा करता है कि वह समझौता करे, भले ही उसकी कीमत उसकी जान क्यों न हो।
आज महिपाल फरार है और पुलिस उसकी तलाश में है। लेकिन सवाल यह है कि अगर पहली बार के हमले को गंभीरता से लिया गया होता, अगर धमकी को कानूनी सुरक्षा मिली होती, अगर लीला को समझौता करने पर मजबूर नहीं किया गया होता तो क्या वह आज जिंदा होती? इस सवाल का जवाब अब न पुलिस के पास है, न अदालत के पास। यह जवाब समाज को खुद से मांगना होगा।
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