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बिलासपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदू छात्रों से जबरन नमाज पढ़वाने का आरोप: प्रोफेसर दिलीप झा गिरफ्तार, 8 पर एफआईआर; साक्ष्य से छेड़छाड़ और सहयोग न करने पर पुलिस की कार्रवाई

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24 News Update बिलासपुर | गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर में हुए विवाद ने बड़ा रूप ले लिया है। NSS कैंप के दौरान हिंदू छात्रों से कथित रूप से जबरन नमाज पढ़वाने के आरोप में यूनिवर्सिटी के एनएसएस कोऑर्डिनेटर प्रोफेसर दिलीप झा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इस मामले में पुलिस ने कुल आठ लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है, जिनमें कई प्राध्यापक और एक छात्र टीम लीडर भी शामिल हैं। यह विवाद तब शुरू हुआ जब एनएसएस कैंप के दौरान ईद पड़ने पर कुल 159 छात्रों में से केवल 4 मुस्लिम छात्रों की उपस्थिति में 155 हिंदू छात्रों को कथित रूप से नमाज पढ़वाई गई। छात्रों ने इसे जबरदस्ती बताया और कहा कि विरोध करने पर उन्हें प्रमाण-पत्र न देने की धमकी दी गई। घटना के बाद कई हिंदूवादी संगठनों ने विश्वविद्यालय का घेराव कर आक्रोश व्यक्त किया और पुलिस व प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की।
पुलिस का दावा: सबूतों से छेड़छाड़, विवेचना में असहयोग के चलते हुई गिरफ्तारी
सीएसपी और मीडिया प्रभारी रश्मित कौर चावला ने बताया कि मामले की जांच में यह पाया गया कि आरोपीगण ने जांच में सहयोग नहीं किया और साक्ष्यों को प्रभावित करने का प्रयास भी किया। इसके आधार पर कोनी थाने में प्रोफेसर दिलीप झा सहित आठ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, जिनमें डॉ. मधुलिका सिंह, डॉ. ज्योति वर्मा, डॉ. नीरज कुमारी, डॉ. प्रशांत वैष्णव, डॉ. सूर्यभान सिंह, डॉ. बसंत कुमार और छात्र टीम लीडर आयुष्मान चौधरी शामिल हैं। पुलिस ने बताया कि प्रो. झा को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है।
आरोपी का पक्ष: कैंप में शामिल नहीं था, झूठे आरोप लगाए गए
प्रोफेसर दिलीप झा ने अपने बचाव में कहा है कि वे उस एनएसएस कैंप में मौजूद ही नहीं थे, और न ही उन्हें नमाज जैसी किसी गतिविधि की जानकारी थी। उन्होंने कहा कि उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है और बिना किसी साक्ष्य के नामजद किया गया है।
छात्रों की शिकायत और हिंदू संगठनों का आक्रोश
छात्रों की ओर से की गई शिकायत में साफ तौर पर बताया गया कि उन्हें धार्मिक प्रार्थना में भाग लेने के लिए बाध्य किया गया, जो उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। विरोध में कई संगठनों ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रदर्शन करते हुए कहा कि यह घटना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि युवाओं के मानसिक और सांस्कृतिक अधिकारों का भी उल्लंघन है। संगठनों ने प्रशासन से निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई की मांग की है। यह मामला अब न केवल प्रशासनिक स्तर पर, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है। विश्वविद्यालय प्रबंधन की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है, लेकिन लगातार बढ़ते विरोध और जांच की प्रगति को देखते हुए इस मामले में और भी गिरफ्तारियां या अनुशासनात्मक कार्रवाइयां हो सकती हैं।

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