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एआई और भारतीय ज्ञान परंपरा एक-दूसरे के पूरक , खुद को अपस्किल और रिस्किल करने की जरूरत प्रो. सारंगदेवोत

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24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ एवं भावनगर, गुजरात के नंदकुंवरबा महिला आर्ट्स कॉलेज व जेके सरवैया कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में “एआई की उत्कृष्टता द्वारा स्थिरता हेतु बहुविषयक शोध को प्रोत्साहन” विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने एआई के प्रभाव और बहुविषयक शोध के महत्व पर अपने विचार रखे।

भारतीय ज्ञान परंपरा और एआई का सामंजस्य

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और भारतीय ज्ञान परंपरा कई स्थानों पर एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने भारत की शिक्षा नीति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि डॉ. डी.एस. कोठारी द्वारा प्रस्तावित शिक्षा नीति के कई पहलू आज की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी परिलक्षित होते हैं। यदि ये सुधार पहले लागू हो गए होते, तो भारत को “विश्वगुरु” बनने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की तुलना गंगा नदी के प्रवाह से की, जिसमें ऋग्वेद को गौमुख, उपनिषदों को देवप्रयाग और वेदांत को अंतिम स्वरूप बताया।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोजगार का भविष्य

प्रो. सारंगदेवोत ने एआई के प्रभावों पर चर्चा करते हुए कहा कि रोजगार उन्हीं का प्रभावित होगा जो स्वयं को अपस्किल और रिस्किल नहीं कर पाएंगे। एआई प्रतिस्थापन नहीं बल्कि एक ऐसा उपकरण है, जो कुशल उपयोगकर्ताओं के लिए अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होगा। उन्होंने भारतीय संगीत शास्त्र का उदाहरण देते हुए बताया कि इसमें गणितीय सूत्रों को गीतों के रूप में लिखा गया, जो बहुविषयक अध्ययन का उत्कृष्ट उदाहरण है।

वैश्विक स्तर पर बहुविषयक सहयोग अनिवार्य

सेमिनार के मुख्य अतिथि प्रो. प्रताप सिंह चौहान ने कहा कि प्रबंधन, वाणिज्य, विज्ञान, मानविकी, इंजीनियरिंग, वास्तुकला, कृषि, विधि और पत्रकारिता जैसे विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों को मिलकर एआई संचालित एक समग्र एवं प्रभावशाली पद्धति विकसित करनी चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि अन्तःविषयक शोध से ही वैश्विक चुनौतियों का समाधान संभव है।

एआई आधारित शोध के निष्कर्ष

डॉ. रविंद्र सिंह सरवैया ने सेमिनार में प्रस्तुत शोध पत्रों के निष्कर्ष साझा करते हुए बताया कि जलवायु परिवर्तन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक असमानता, ऊर्जा संरक्षण और कृषि उत्पादकता जैसी चुनौतियों के स्थायी समाधान के लिए एआई आधारित बहुविषयक शोध अनिवार्य हैं।

सम्मान और पुरस्कार

इस अवसर पर रिद्धि त्रिवेदी, डॉ. नम्रता सोलंकी, तन्वी सोलंकी, युवराज उपाध्याय और प्रिन्सिबा गोहिल को बेस्ट पेपर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

समारोह की मुख्य झलकियां

सेमिनार के प्रारंभ में प्राचार्य डॉ. समकित शाह ने स्वागत उद्बोधन दिया और मेनेजिंग ट्रस्टी भरत सिंहजी गोहिल का सान्निध्य प्राप्त हुआ। सेमिनार का संचालन प्रिन्सिबा गोहिल ने किया एवं आभार समन्वयक डॉ. नम्रता सोलंकी ने व्यक्त किया।

इस आयोजन में प्रो. एकता भालिया, प्रो. केयूर शाह, अंकिताबेन पटेल, प्रो. पूनम, प्रो. अल्पेशसिंह, प्रो. जितेंद्र भट्ट, डॉ. सत्यकी भट्ट, प्रो. दृष्टिबेन, प्रो. हेमिशबेन, प्रो. दीपक मकवाना, प्रो. श्रद्धाबेन मकवाना, निजी सचिव के.के. कुमावत, डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी, विकास डांगी, प्रो. हेमिशबेन, प्रो. दीपक मकवाना, प्रो. श्रद्धाबेन मकवाना सहित अनेक शिक्षाविद् एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

यह सेमिनार एआई और बहुविषयक शोध की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी, जिससे शोधार्थियों को नवीन दृष्टिकोण प्राप्त हुआ।

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