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सांवलियाजी मंदिर भंडार पर बड़ा फैसला, अब नहीं चलेगा बाहरी दबाव, राजनीतिक योजनाओं में एक रुपया भी खर्च नहीं होगा, कोर्ट ने लगाई स्थायी रोक

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24 News Update चित्तौड़गढ़। मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्णधाम श्री सांवलियाजी मंदिर से जुड़ी करोड़ों रुपये की भंडार राशि के उपयोग को लेकर मंडफिया (चित्तौड़गढ़) सिविल जज विकास कुमार ने ऐतिहासिक आदेश सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि मंदिर की चढ़ावे की राशि का उपयोग किसी भी राजनीतिक, सरकारी या बाहरी क्षेत्र की योजनाओं में नहीं किया जा सकेगा। यह फैसला इसलिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि सांवलियाजी मंदिर के भंडार में हर महीने लगभग 26–27 करोड़ रुपये की भारी राशि जमा होती है, जिस पर लंबे समय से कई संस्थाओं और नेताओं की नजर रही है।
साल 2018 में मंदिर मंडल द्वारा राज्य सरकार की बजट घोषणा के आधार पर मातृकुंडिया तीर्थस्थल के विकास के लिए 18 करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव का स्थानीय निवासियों— मदन जैन, कैलाश डाड़, श्रवण तिवारी सहित अन्य लोगों ने विरोध किया और मंडफिया कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मंदिर की आय को स्थानीय भक्तों की जरूरतों के बजाय बाहरी योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है, जबकि मंदिर परिसर में भोजनशाला, पार्किंग, शौचालय, अस्पताल, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी अधूरी हैं। लाखों भक्तों की मौलिक सुविधाओं की अनदेखी आस्था के साथ खिलवाड़ है।
सुनवाई के बाद सिविल जज विकास कुमार ने आदेश दिया कि भंडारे की राशि का उपयोग केवल मंदिर अधिनियम 1992 की धारा 28 के तहत ही किया जाएगा। बाहरी संस्थाओं, राजनीतिक घोषणा पूर्ति या किसी भी तरह के सरकारी-राजनीतिक दबाव में राशि जारी करना कानून के खिलाफ माना जाएगा। यदि नियमों का उल्लंघन हुआ तो इसे आपराधिक न्याय भंग माना जाएगा और संबंधित अधिकारियों पर व्यक्तिगत कार्रवाई होगी। अदालत ने मंदिर मंडल के CEO और अध्यक्ष को भी स्पष्ट निर्देश दिया कि मातृकुंडिया विकास के लिए प्रस्तावित 18 करोड़ रुपये पर कोई कार्रवाई नहीं की जाए। इस राशि के उपयोग पर स्थायी निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है। यह आदेश भक्तों की वर्षों से उठाई जा रही मांगों को मजबूत करता है। बीते समय में मंदिर भंडार से गोशालाओं, धार्मिक संस्थाओं और सामाजिक संगठनों को करोड़ों रुपये देने की मांग बढ़ रही थी। कई नेताओं, धर्मगुरुओं और संस्थाओं ने लगातार दबाव बनाया, लेकिन कोर्ट के इस फैसले के बाद अब ऐसे सभी प्रयास स्वतः ही बंद हो जाएंगे।
फैसले के बाद स्थानीय भक्तों और निवासियों में संतोष नजर आया। उनका कहना है कि मंदिर की करोड़ों की आय को पहले भोजनशाला, पार्किंग व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं, शौचालय, स्कूल और उपचार केंद्र जैसी आवश्यक सुविधाओं पर खर्च किया जाना चाहिए, ताकि लाखों श्रद्धालुओं को बेहतर व्यवस्था मिल सके। हाल ही में मंदिर पार्किंग का टेंडर जारी किए जाने पर भी लोगों ने सवाल उठाए थे कि जब मंदिर के पास इतना बड़ा भंडार है, तो पार्किंग शुल्क लगाने की क्या आवश्यकता थी।

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