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3.6 करोड़ के राशन के टेण्डर में हो गया खेल, अंतिम दिन उदयपुर के अखबार में छापा डूंगरपुर का टेण्डर, बड़ा सवाल-डूंगरपुर में क्यों नहीं किया टेण्डर साया, किसको लाभ देने की मंशा!

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24 न्यूज अपडेट. डूंगरपुर। जिस टेण्डर को दस्तावेजों में गड़बड़ी के चलते दिसंबर में निरस्त करना पड़ा था उसमें फिर से खेल किया जा रहा है। आज उदयपुर में एक अखबार में डूंगरपुर में राशन सामग्री के परिवहन का टेण्डर देख कर लोग चौंक गए। खास बात यह रही कि डीएसओ डूंगरपुर की ओर से जारी किए गए इस 3.6 करोड़ के टेण्डर में टेण्डर डालने की अंतिम तिथि भी 30 जनवरी ही लिखी हुई थी जो शाम को समाप्त हो गई। याने कि आज ही विज्ञापन आया व आज ही टेण्डर की लास्ट डेट थी। डूंगरपुर वाले इंतजार ही करते रह गए। खास बात यह रही कि इस टेण्डर के आदेश 14 जनवरी के हैं। इस अखबार में आज ही क्यों साया किया गया इस पर बड़े सवाल उठे व दिनभर यह बात डूंगरपुर में चर्चा का हॉट टोपिक रही। आपको बता दें कि इससे पहले डूंगरपुर में राशन सामग्री के वेयरहाउस से राशन की दुकानों तक परिवहन के टेण्डर 24 दिसंबर को निकाले गए थे। इसमें तीन फर्म ने भाग लिया था। इसमें से एक फर्म के नाम टेण्डर खुल गया। बाकी को टेक्निकल फाल्ट बताते हुए बाहर किया गया। जब लोगों ने टेण्डर के डाक्यूमेंट को फर्जी बताते हुए कलेक्टर से इसकी शिकायत की तो कलेक्टर को एक्शन लेना पड़ गया। टेण्डर निरस्त कर दिए गए मगर डाक्यूमेंट के कथित रूप से फर्जी होने पर कोई कार्रवाई या फर्म को ब्लेक लिस्ट करने की कोई कार्रवाई नहीं की गई।
13 जनवरी को टेण्डर निरस्त हुए व उसके अगले ही दिन व 14 जनवरी को टेण्डर फिर से नया जारी किया गया । बताया जा रहा है कि यह ई-प्रोक्योर सरकारी वेबसाइट पर ऑनलाइन हुआ लेकिन उसे उसी दिन या उसके बाद तक अखबारों में साया नहीं किया गया। जानकार बता रहे हैं कि उनकी जानकारी यह है कि डूंगरपुर में इस बिड का कोई विज्ञापन अखबार में नहीं दिया गया। आज अंतिमम तारीख याने कि 30 जनवरी को अचानक पता चला कि उदयपुर व एक अन्य किसी जिले में विज्ञापन दिया गया है। वह भी अंग्रेजी में है। यह सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्या हो गया कि अंतिम दिन ही यह विज्ञापन दिया गया। क्या किसी कार्रवाई का डर था कुछ छिपाना था क्योंकि आम तौर पर कभी ऐसा नहीं होता है। अंदेशा ये है कि किसी व्यक्ति विशेश को फायदा दिखाने के लिए किया गया है। इससे एक सीनियर बाबू स्तर के कर्मचारी की हठधर्मिता भी सामने आ रही है जिसको पहले भी कुछ विभागों से शिकायतों पर हटाया गया था। डीएसओ ऑफिस पर भी सवाल उठ रहे हैं जिनके जवाब उनको आने वाले दिनों में देने पड़ सकते हैं। ये सालभर के राशन पहुंचाने का ठेका है। वेयर हाउस से गेहूं उठा कर राशन डीलर तक भेजना होता है। यह काम केवल डूंगरपुर का है। इसमें महीने में 30 से 40 लाख का काम होता है व सालभर में करोडों का। अब तक यह हो रहा था कि 15 से 20 साल तक वहां की प्राइवेट ट्रकएसोसिएशन कोपरेटिव संस्थान को यह काम मिलता था जिसके पास सैंकड़ों ट्रक चालक व मालिकों का बेड़ा है। इसके पदाधिकारी बिना प्रॉफिट लॉस के काम करते हुए बिल पास होने पर लाभ का अंतिम पंक्ति तक वितरण कर रहे थे। अब बताया जा रहा है कि इस चेन को तोड़ कर किसी ऐसे धन्नासेठ को काम देने का प्रयास हो रहा है जो सीधे सीधे आर्थिक गणित की गंगा बहा सके। इस बारे में हमने ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन डूंगरपुर के अध्यक्ष गुरू प्रसादजी पटेल से बात की। उन्होंने कहा कि टेण्डर के कागज पूरे करने में 10 दिन का समय लगता है। बाहर के लोग आते हैं तो स्वस्थ कंपीटीशन होता है। अखबार में साया आज ही किया तो इसमें फेयर प्ले कैसे होगा। ज्यादा समय मिलता तो पारदर्शिता भी बढ़ जाती। इस बारे में जब हमने डीएसओ डूंगरपुर से बात की तो उन्होंने कहा कि वे रात्रि चौपाल में व्यस्त है। इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया।

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