24 न्यूज अपडेट उदयपुर। शराबियों के इन दिनों मजे हो रहे हैं। इतनी शांत और सेफ जगह उनको मिल गई है कि बल्ले-बल्ले हो रही है। ना कोई देखने वाला ना पूछ-पाछ कर टोंकने वाला। जब भी चाहिए चले आइये बोतल के साथ। इसके अलावा असामाजिक तत्वों की भी बल्ले-बल्ले है। बेसमेंट में कुछ कोनो में बोतलें तो कुछ में अंतः वस्त्रों के सुलभ दर्शन हो रहे हैं, पता नहीं क्यों निगम के जिम्मेदारों को यहां यह सब क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। कुल मिलाकर सब कुछ खुल्लमखुल्ला है। यह हाल है नगर निगम की हाथी वाला पार्क पार्किंग के बेसमेंट का। जो लंबे समय से असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बन गया है ओर कभी किसी अनहोनी का गवाह बन सकता है। निर्माण के समय से ही विवादों में रहा हाथी वाला पार्क की जगह बना पार्किंग पोर्शन हमेशा सुर्खियों में रहा। मास्टर प्लान की अनदेखी कर हरे भरे बगीचे वाले ऑक्सीजन पॉकेट को खत्म कर यहां पर क्रांतिकारी कदम बताते हुए 14 करोड की पार्किंग बनाई गई फिर घटिया निर्माण और भ्रष्टाचार के कारण यह कम समय मे ही ऐसी जर्जर हो गई है कि अपना सच खुद बयां कर रही है। दीवारें गवाही दे रही हैं कि निर्माण इस कदर घटिया है कि प्लास्तर गिर रहा है। बेसमेंट रो-रोकर कह रहा है कि मुझे जल समाधि से मुक्ति दिलाओ। मगर मजाल कि दस कदम दूर बैठे शहर की इंजीनियरिंग संभालने वाले निगम के लवाजमे को कहीं कोई फर्क पड़ जाए। महीनों से बंद पड़ी पार्किंग की सुरक्षा के लिये कोई गार्ड तैनात नहीं है। बेसमेंट मेंयहाँ वहां बिखरी शराब की बोतले, कांच के टुकड़े, फायर एक्सटिंग्विशर के जंग लगे खाली सिलेंडर, अंदर लगे उपकरण आदि टूट फूट कर गवाही दे रहे है। गंदगी और सीलन इतनी कि यहां पहुंचते ही दम घुटता है। कुछ अंतर्वस्त्र बताते हैं कि देहलीगेट और सूरजपोल पर सरेराह लगने वाला अंधी गलियों वाला बाजार अब यहां तक आ पहुंचा है। बेसमेंट के अंदर छत के बीम का प्लास्टर भी कई जगह टूट रहा है। अपराध करने वालो के लिए शहर के मध्य यह पसंदीदा निःशुल्क, शानदार हॉटस्पॉट हो गया है। पार्किंग में जाने का न तो कोई अवरोध है और न ही कोई गार्ड , सम्भव है कभी कोई हादसा हो जाये या कोई आपराधिक वारदात घटित हो जाए तब शायद जिम्मेदार अपना पल्ला झाड़ने के लिये कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेंगे। हो सकता है इस खबर के बाद बेसमेंट जाने का रास्त बंद किया जाए, यदि होता है तो यही बेहतर रहेगा। नहीं होने पर कल फिर खबर लिखी जाएगी।
अब पार्क की ऐतिहासिक ब्लंडर्स पर आते हैं। पार्किंग निर्माण से पूर्व अश्वासन दिया गया था कि भूमगित पार्किंग के ऊपर पार्क विकसित किया जाएगा लेकिन ऐसा नही होने पर उदयपुर के सिविल इंजीनियर विकास भैरविया ने जोधपुर हाइकोर्ट में जनहित याचिका पेश की जिसमे माननीय न्यायालय ने प्रस्तुत दस्तावेजो के आधार पर इसे मास्टर प्लान औऱ गुलाब कोठारी बनाम राज्य सरकार प्रकरण का उल्लंघन माना। नगर निगम ने बैकफुट पर आते हुए हाई कोर्ट को अंडरटेकिंग देकर छत पर पार्क बनाने की पेशकश कर दी। वर्तमान में केस विचाराधीन है। पिछली पेशी पर नगर निगम द्वारा एक ठेकेदार कंपनी को कार्यादेश जारी करने की बात कहते हुए 7 जुलाई तक पार्क निर्माण पूर्ण करने का लिखित कथन किया था लेकिन मौके पर पार्क का कोई नामोनिशान नही है। अलब्ता अंडरग्राउंड पार्किंग में अव्यवस्थाएं गुल खिला रही हैं। हां, एक काम हो सकता है कि अगर निगम चाहे तो यहां पर एक हॉरर एडवेंचर स्पॉट बना सकता है व उसे डेवलप कर सकता है क्योंकि डरावनेपन के सभी तत्व फिलहाल यहां पर मौजूद है। 14 करोड़ का जिक्र बार-बार करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह उदयपुर की जनता का पैसा है। निगम मेंटेन नहीं कर पा रहा है तो यह प्रशासनिक अक्षमता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का क्लासिक एग्जाम्पल है।
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