24 न्यूज अपडेट उदयपुर। उदयपुर में बन रहे एलिवेटेड फ्लाई ओवर को लेकर हाईकार्ट की डबल बैंच के आदेश के बाद बनने या नहीं बनने को लेकर तमाम अटकलों पर विराम लग गया है। लेकिन इस फैसले में कोर्ट ने साफ लिखा है कि तकनीकी खामियों को एक्सपर्ट देखें। अर्थात फ्लाई ओवर के निर्माण में जो भी तकनीकी खामियां कोर्ट को बताई गईं उनको एक्सपर्ट को देखना होगा। अब यह नगर निगम की जिम्मेदारी है कि वो उन सभी खामियों को देखें व दूर करे जो कोर्ट में बताई गईं है।
अब सवाल यह उठ रहा है कि निगम के जो इंजीनियर टेण्डर डाक्यूमेंट तक नहीं पढ़ सकते हैं और उसमें कॉपी पेस्ट की कलाकारी को काम में लेकर निगम को ही मजाक का पात्र. बनाते हैं वे तकनीकी खामियों को कैसे देख पाएंगे। देखने के लिए बिना राजनीतिक पर्दे वाली खुली आंखें होना जरूरी है। जिस डॉक्यूमेंट को आधार बना ठेका दिया गया उसके 500 पेज कॉपी पेस्ट के सूरमा इंजीनियरों से पढ़े नहीं गए, उनसे जनता यह कैसे उम्मीद कर सकती है कि वे 137 करोड़ के भारी भरकम काम की हर तकनीकी का बारीकी से निरीक्षण सफलतापूर्वक कर लेंगे। जो तकनीकी खामियां हाईकोर्ट को बताई गई थीं उनका परीक्षण-निरीक्षण करके उनमें सुधार करके जनता का विश्वास कैसे बहाल करेंगे?? उन सवालो ंका जवाब कैसे देंगे जो टेण्डर डाक्यूमेंट में कमियों से स्वाभाविक रूप से ऑन पेपर उठ खड़े हुए हैं। जिन सवालों पर अब निगम के बड़े अफसरों से लेकर नेता तक भागते हुए नजर आ रहे हैं।
निगम तुरंत बनाएं टेक्निकल एक्सपर्ट पैनल
क्या निगम बाहर से तकनीकी विशेषज्ञ बुलाकर हाईकोर्ट की भावना के अनुरूप खामियों का परीक्षण करवाएगी?? नगर निगम को काम शुरू होने से पहले ही यह स्पष्ट करना चाहिए ताकि संदेह की गुंजाइश ही ना रहे। दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। क्योंकि बिल्ली को दूध की रखवाली देने जैसा काम तो निगम पहले ही कर चुका है। ठेकेदार से कह चुका है कि लाखों का जनता का पैसा खर्च करके हमने जो डिजाइन बनाई है वो तो बस आपके देखने के लिए है। उसमें बदलाव आप अपनी जरूरत के अनुसार कर लीजिए।
नेता माने या रूठे, जनता को कोई लेना-देना नहीं, विकास का महायज्ञ है आहुतियां शुद्ध होनी चाहिए
एलिवेटेड रोड बनाना विकास का महायज्ञ है। इसकी निगरानी कर रहे नेताओं को अब अति उत्साह में पक्ष या विपक्ष में बंटने, एलिवेटेड के बनने या नहीं बनने पर हां व ना पक्ष की राजनीति से बाज आज जाना चाहिए। मूल बात एलिवेटेड फ्लाई ओवर की सेहत का है बाकी सब गौण है। कौन रूठ रहा है, कौन मना रहा है। कौन क्रडिट ले रहा है, कौन घोंचे कर रहा है इससे जनता को कोई लेना-देना नहीं है। कई नेता डिजाइन को बदलने की बात कर रहे हैं लेकिन पास कर दिए गए टेण्डर डाक्यूमेंट के अनुसार फाइनल डिजाइन को तय करने का जिम्मा हमने ठेकेदार पर छोड़ दिया है वो चाहे सो करे। सीधी और सपाट बात है कि तकनीकी पक्ष पर जनता को विश्वास में लेना ही होगा। नहीं लेंगे तो जवाब आज बार-बार और भविष्य में कई बार उठेंगे। उत्साह में आकर – हम निगरनी कर लेंगे, हम अच्छा बनाएंगे, बेहतरीन काम होगा, शानदार काम होगा आदि तर्क देने से काम कतई नहीं चलने वाला है। जनता को तो रोडमेप चाहिए कि तकनीकी खामियों का क्या किया, कैसे दूर की। यह सब ऑन पेपर बताया जाना चाहिए ताकि बाद में कोई परेशानी ना हो। इसके अलावा सबसे बडी बात ये है कि हम ऐसा काम ही क्यों छोड़ें कि बाद में उसकी बार-बार मॉनिटरिंग करके आश्वासन देना पड़े कि काम सही हो रहा है या नहीं, अभी से सब कुछ ऑन पेपर होना चाहिए।
कॉपी-पेस्ट वालों को चार्जशीट जरूरी
इस मामले में ब्लंडर मिस्टेक करने वाले नगर निगम के कॉपी पेस्ट इंजीनियरों को बचाने के प्रयास उपरी स्तर तक तेज हो गए है। इसमे लाभार्थी ंनेताओं का भी पूरा इन्वोल्वमेंट दिखाई दे रहा है। पूरी बहस को एलिवेटेड रोड बने या नहीं बने पर केंद्रित कर दिया गया है। उसके लिए बकायदा सोशल मीडिया कैम्पेन चलाया जा रहा है। ओपीनियन मोल्डर्स को काम पर लगाया गया है। ताकि वे लों का ओपीनियर मैन्यूफेक्चर्ड कर सकें। लोगों की आंखों में धूल झोंक कर ये प्रयास हो रहे हैं कि किसी भी तरह से ब्लंडर करने वाले इंजीनियरों को कार्रवाई से बचा लिया जाए। शहर के जागरूक लोगों का मत है कि ऐसे इंजीनियरों को चार्जशीट जरूर मिलनी चाहिए जो अर्थ का अनर्थ करने पर तुले हुए हों। उन्होनें टेण्डर डाक्यूमेंट में इस फ्लाई ओवर को कोटा का हाईवे बता दिया है। ठेका मिलने के एक महीने में 5 किलोमीटर के आस-पास रोड के अतिक्रमण हटा कर सुपुर्द करने की बात लिखी है जबकि एलिवेटेड फ्लाई ओवर की कुल लंबाई ही इतनी नहीं है। इसके अलावा रेलवे से एक महीने में परमिशन लाने की बात लिखी है जबकि रेलवे का कोई लेना है ना देना। पूरा का पूरा काम ही ’’उदड़े पर दे दियां कॉपी पेस्ट वालों की मेहरबानी से टेण्डर डाक्यूमेंट में कहीं जिक्र नहीं है कि पूरे निर्माण में सामान की विशिष्टियां क्या होंगी। सामान की विशिष्टियां मतलब कि हर चीज की बारीकी। उदाहरण के लिए लोहा टाटा स्टील का लगेगा या री रोड या लोकल गला हुआ लगेगा। सीमेंट कौनसे ग्रेड की लगेगी, गिट्टी रेत आदि की गुणवत्ता की कोई चर्चा नहीं की गई है। जबकि ये टेण्डर की बेसिक्स हैं। अगर विशिष्टियां नहीं लिखी जाएंगी और ठेकेदार लोकल भंगार से बने सरिये लगा देगा तो क्या करोगे?? कम ग्रेड की सीमेंट काम में लेगा तो हमारे कापी पेस्ट वाले इंजीनियर साहब उन्हें कैसे रोकेंगे। तब ठेकेदार के पास लीगल शील्ड भी होगी कि मेरी क्या गलती है, टेण्डर डाक्यूमेंट में ही यह सब नहीं लिखा है। यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि ना निगम के सबसे बड़े वाले इजीनियर साहब ने इसे पढ़ा है ना इंजीनियर महापौर साहब ने इस डाक्यूमेंट को खोल कर देखा लगता है। यदि नहीं देखा तो उसके साइड इफेक्ट की जिम्मेदारी उन पर ही डाली जानी चाहिए व चार्जर्शीट जरूर दी जानी चाहिए। क्योंकि अगर ये आज बच जाएंगे तो कल किसी और काम में बड़ा खेल कर देंगे।
जनमाशंकर दवे पर कोर्ट की टिप्पणी, कल और आज
डीबी रिट पर जोधपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पिटिशनर जमनाशंकर दवे पर टिप्पणी की है कि वे एलिवेटेड रोड पर बहुत ज्यादा सवाल उठा रहे हैं। इस बिंदु पर बड़ी चर्चा हो रही है। आपको बता दें कि जनमाशंकर दवे 81 साल के हैं। जब हमने दवे से संपर्क करना चाहा तो पता चला कि इन दिनों वे गंभीरी बीमारी से जूझ रहे हैं। आपको बता दें कि 2018 में जब हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई थी, तब दवे के साथ स्वर्गीय ओमप्रकाश खत्री और उदयपुर सिटीजन सोसायटी साथ थे। उस समय इन्हीं पिटिशनर जमनाशंकर दवे के निवेदन को स्वीकर करते हुए हाईकोर्ट ने तकनीकी खामियों के मद्देनजर एनएचएआई को कई निर्देश दिए थ। एनएचएआई से कहा गया कि इंडियन रोड कांग्रेस के नियमों के अनुसार सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट नई दिल्ली से ओपीनियन लेने के निर्देश दिए थे। इसके बाद एनएचएआई ने कोर्ट को बताया कि सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट इस काम के लिए 30 लाख 24 हजार 930 रूपए की डिमांड कर रहा है। यह कहते हुए एनएचएआई ने अपनी एप्लीकेशन कोर्ट से विड्रो कर ली। तब हाईकोर्ट ने तकनीकी पक्ष को ही ध्यान में रखते हुए आदेश दिया था कि आगे भविष्य में भी अगर यूआईटी इसे बनाती है तो उसकी परमिशन लेना जरूरी होगा।
अब क्या किया जाना चाहिए
- ब्लैम गेम बंद करके सीधा सपाट सवाल पूछना चाहिए कि कॉपी-पेस्ट वाले इंजनियरों पर क्या कार्रवाई की।
- कॉपी पेस्ट वाला टेण्डर डाक्यूमेंट अब नहीं बदला जा सकता, ऐसे में उसे बनाने का पूरा खर्च इंजीनियर्स से वसूला जाए
- ठेकेदार को पाबंद किया जाए कि वो किस किस ग्रेड का समान काम में लेगा, इसकी लीगल वेल्यू वाले डाक्यूमेंट पर घोषणा करे।
- एलिवेटेड फ्लाई ओवर की जो खामियां हाईकोर्ट में बताई गई उनके निरीक्षण के लिए एनएचएआई के इंजीनियरों की मदद ली जाए। बिना उनकी परमिशन के काम शुरू नहीं किया जाए।
- ठेकेदार को पाबंद किया जाए कि वो रेलवे की परमिश, एक महीने में 5 किलोमीटर, कोटा का हाईवे आदि कॉपी पेस्ट की गलतियों का कोई लाभ नहीं उठाएगा।
- ठेकेदार को निगम खुद डिजाइन बना कर दें, डिजाइन को उसके हवाले छोड़ने की मूर्खता नहीं करे।

