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सब मिले हुए हैं, किस पर करें विश्वास, मैग्नस अस्पताल वालों ने मेरे जिगर के टुकड़े को मार दिया………..

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(एक पिता की मार्मिक अपील, लापरवाही का आरोप, पूरी खबर पढ़े, वीडियो भी देखें और शेयर करें)
24 न्यूज अपडेट उदयपुर। जिस घर से बच्चे के जन्म की खुशियों के बाद उल्लास और उम्मीदों वाले स्वर गूंजे थे आज वहां पर मातम पसर गया है। रह-रह कर आती रोने-चीखने की मार्मिक आवाजें वहां मौजूद दिलों को तोड़ कर रख देती हैं। आंखें भर आती हैं, सब लोग सिसकने-सुबकने लगते हैं। क्योंकि यहां के लोगों का कहना है कि उनकी उम्मीदों का चिराग, मैग्नस अस्पताल वालों की गलती से बुझा दिया गया। उन्हें न्याय चाहिए। सब मिले हुए हैं, कलेक्टर साहब तक रिपोर्ट नहीं दे रहे हैं। हम न्याय के लिए कहां जाएंगे। किसके पास फरियाद करेंगे। मरहूम बच्चे के पिता शहादत हुसैन बार-बार अपने फोन पर बच्चे के फोटो देख कर सुबक पड़ते हैं। नन्हीं सी जान ने अस्पताल में बहुत दुख देखे और उन्होंने भी इसी उम्मीद में दिन-रात बिना पलकें झुकाए उसके साथ बिताए कि एक न एक दिन उनका बच्चा स्वस्थ्य जरूर होगा। मगर डाक्टरों ने जवाब दे दिया, बच्चे की चार दिन पहले बाल चिकित्सालय में मौत हो गई। मौत के बाद जब शहादत हुसैन असहज हो गए, आपा खो बैठे तो पुलिस को बुला लिया गया। एक बार में एक पुलिस वाला आया, बाद में पूरा दल-बल आ गया। शहादत बस इतनी मांग कर रहे थे कि उन डाक्टर साहब से मेरी बात करवा दो जिन्होंने इसका इलाज किया है। मगर बात नहीं करवाई गई, एक कागज पर साइन करवाए और चुपचाप बच्चे को लेकर घर आ गए और उसको अंतिम विदाई दे दी।
ये वही शहादत हैं जिन्होंने वकील साहब योगेश जोशी के बच्चे के अंधे होने का मामला सामने आने के बाद उनके साथ ही कलेक्टर को मैग्नस अस्पताल में हुए अन्याय के खिलाफ शिकायत दी थी। जांच कमेटी बिठाई गई जिसकी रिपोर्ट दस दिन में आनी थी मगर आज तक उसके अते-पते नहीं है। शायद जिला प्रशासन मामले के ठंडे होने का इंतजार कर रहा है ताकि रिपोर्ट के बाद के गुस्से को भी आसानी से मैनेज किया जा सके।
मो. शहादत ने बताया …………….
मेरा बच्चा 22 अप्रेल को मैग्नस हॉस्पिटल में हुआ था। यहां पर केस बिगाड़ दिया। बच्चे को इंफेक्शन हो गया। वहां पर भी इलाज चला और सबने मिल कर मेरे बच्चे को मार दिया। आज हम मानसिंक रूप से पूरी तरह से टूट चुके हैं। उस मासूम को अचानक याद करने लगती है, उसके कपड़ों को लेकर बच्चे को खैलाती रहती है, चूमते हुए रोने लगती है।
मैंने जांच अधिकारी डाक्टर काजी से बात की तो उन्होंने कहा कि हमने जांच करके सारी रिपोर्ट लिफाफे में बंद करके कलेक्टर साहब को भेज दी है। कलेक्टर साहब भी अत तक कोई जवाब नहीं दे रह हैं। कलेक्टर साहब ही जवाब नहीं दे रहे हैं तो हम किसके पास जाएं। मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं।
मैं दो महीने से दिन रात बच्चे को अवेरता रहा, इन लोगों ने मिल कर मेरे बच्चे को मार दिया। बच्चे के पेट में इंफैक्शन बताया था। मैग्नस वाले डाक्टर मनोज अग्रवाल ने केस बिगाड़ा, मेरा बच्चा कंप्लीट हुआ था। पौने दो किलो का था। तंदुरूस्त था। इन्होंने क्या मालूम कौनस इंजेक्शन लगाया क्या किया। चार दिन बाद आकर कह दिया कि बच्चे के पेट में इंफेक्शन था। इन्होंने कहा था कि आप इसे लेकर कहीं पर भी जाना चाहते हो तो जा सकते हो। मैं यहां से बाल चिकित्सालय लेकर गया, भूखे-प्यासे वहां पर दिन-रात बच्चे के पास रहा। हॉस्पिटल के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए व हमें इंसाफ मिलना चाहिए।
बाल चिकत्सालय में डाक्टर ने कहा-मीडिया में क्यों गए
बच्चे के पिता ने बताया कि मेरा बच्चा डेढ़ महीने तक क्रिटिकल कंडीशन में बाल चिकित्सालय में रहा। इतने लंबे समय में मुझे नहीं बताया गया कि इस बच्चे को कोई जेनेटिकल डिसऑर्डर है या उसे एम्स लेकर जाना है। जब बच्चे ने अंतिम सांस ली उसके दो दिन पहले मुझे कहा गया कि इसका इलाज तो दिल्ली एम्स में होगा, आप वहां पर ले जाने की व्यवस्था करो। मैंने व्यवस्था की, लोगों से बात की मगर तब तक बच्चा वेंटिलेटर पर ले लिया गया व बाद में उसकी डेथ घेषित कर दी गई व कहा गया कि उसको कोई जेनिटिकल डिसऑर्डर है। यदि यह सब था तो मुझे पहले क्यों नहीं बताया गया। इसके अलावा जैसे ही मेरा मामल मीडिया में आया तो डॉक्टर की टीम फिर से लाखन पोसवालजी के नेतृत्व में देखेन आई। मैं कहता हूं कि मैग्नस वाले और ये डाक्टर आपस में सपंर्क में थे। न्यूज मीडिया में आने के बाद जब लाखन पोसवाल साहब आए तो बाद में एक अन्य डाक्टर ने कहा कि आपको मीडिया में नहीं देना चाहिए, डाक्टर मनोज अग्रवाल का फोन आया था मेरे पास। आज वहां का दिया है, कल यहां का भी दोगे। मैंने कहा कि बच्चे का पूरा केस बिगाड दिया इसलिए न्यूज आई है। डाक्टर ने कहा कि आपके बच्चे के लिए मेरे पास बहुत से लोगों का फोन आ रहे हैं।
यह है मैग्नस अस्पताल पर आरोप
पिता का आरोप है कि मैग्नस अस्पताल की लापरवाही से बच्चे की आंतें चली गईं। मैंग्नस अस्पताल में केवल चार दिन में 2 लाख 34 हजार का बिल भरने के बाद भी हमें मायूसी ही हाथ लगी। आंखों में आंसू लिए जिगर के टुकड़े कोएमबी अस्पताल लेकर आए और वहां से बच्चे का शरीर लेकर घर लौटे। मेरा बच्चा पत्थर हो गया। डाक्टरों ने कहा था कि आंतें खत्म हो चुकी हैं। मौत से पहले कहा कि जैनेटिक प्राब्लम हो गई थी। जब मेरे परिवार में किसी को जैनेटिक प्राब्लम नहीं है तो बच्चे को कैसे हो गई। यदि बच्चे को थी व और अच्छे एक्स जैसे उपचार की जरूरत थी तो डाक्टरों ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। पहले दिन जिस खुले और खिले, जिंदगी की उम्मीदों से भरपूर जिस बच्चे को देखा था, अब उसका चेहरा धीरे-धीरे मुरझाता रहा व वह मौत के मुंह में समा गया। पिता कहते हैं-यह सब मैग्नस अस्पताल के डाक्टर की लापरवाही से हुआ। 22 अप्रेल को पत्नी के ऑपरेशन से डिलीवरी मैग्नस हॉस्पिटल में हुई। डाक्टर ने बुलाकर बच्चा दिखाया व कहा कि स्वस्थ व कंप्लीट है। मैंने फोटो लिया, बच्चा स्वस्थ था। डाक्टर ने कहा कि आईसीयू में ले जा रहा हूं। क्लीन करके ऑक्सीजन चेक करके वापस वार्ड में शिफ्ट कर दूंगा। दूसरे दिन बच्चो ंके डाक्टर मनोज अग्रवाल ने कहा कि बच्चा कंप्लीट है, आज भी उसको आईसीयू में ही रहने दो। मैंने सोचा बच्चे के स्वास्थ्य में सबकी भलाई है। दो चार दिन में छुट्टी मिल जाएगी। चार दिन बाद डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने बुलाकर कहा कि बच्चे के पेट में इंफेक्शन है व 12 घंटे के लिए ट्रीटमेंट बंद कर दिया हैं। चौबीस घंटे बाद भी डाक्टर को समझ ही नहीं आया व कहा कि पेट फूल रहा है। उसके बाद पूछा कि क्या आगे करना है तो उन्होंने कहा कि आप देख लो कहीं पर ले जाना चाहते हो तो ले जाओ। 27 अप्रेल को बाल चिकित्सालय में भर्ती करवाया। यहां बताया कि बच्चे की आंतें खत्म हो गई, सीरियस था। डाक्टर मनोज अग्रवाल ने बच्चे के साथ लापरवाही की। बता रहे हैं कि मैग्नस अस्पताल में 80 परसेंट सीजेरियन हुए हैं।
डॉक्टर बोले, हमारी सहानुभूति घर वालों के साथ
इस मामले में डाक्टर मनोज अग्रवाल ने कहा कि बेबी बहुत ही ज्यादा प्री मैच्चोर था व मदर को भी सिवरय बीपी की शिकायत थी। इसलिए टाइम से पहले सीजेरियन करना पड़ा। बच्चे की एक्टिविटी कम थी इसलिए एनआईसीयू में रखना पड़ा। हमने केवल पांच दिन ही बच्चे को एनआईसीयू में रखा था उसके बाद अटेंडेंट को फाइनेंशियल इश्यू आया था। उसकी वजह से बच्चे को सरकारी में शिफ्ट करना पडा। इसकी हमारे पास लिखित में कसेंट है कि बच्चे को सरकारी में शिफ्ट करना चाहते हैं। सरकारी में भी ये बच्चा 49 डेज रहा है। वहां पर बच्चे की किस्मत और कह दो कि उपर वाले का साथ नहीं था कि बच्चे को बचा नहीं पाए। उसके शरीर में मेटाबोलिक डिसऑर्डर था व जेनेटिक बीमारी थी। उनका एम्स ले जाने का प्लान था। हमारी घर वालों के साथ सहानुभूति हैं हम भी इंसान हैं भगवान नहीं हैं। आरोप गलत व बेबुनियाद हैं। वे खुद सरकारी में शिफ्ट करने ले गए थे।
पिता ने कहा-डाक्टर साहब झूठ बोल रहे हैं
वकील साहब के मामले में भी डाक्टर अग्रवाल का यही तर्क है कि पैसा खत्म हो गया था इसलिए बच्चे को शिफ्ट कर दिया। यह उनका बचने के लिए बनाया हुआ रटा रटाया जवाब है। मैं अगर आर्थिक सक्षम नहीं होता तो पहले ही वाइफ की डिलीवरी बड़े अस्पताल में ही करवाता। मेरी पत्नी का पूरा इलाज ही इसी अस्पताल में हुआ है। फाइनेंस की प्राब्लम होती तो मैं गॉरमेंट में क्यों नहीं जाता। डाक्टर साहब तो कुछ भी बोल सकते हैं। मैंने आठ महीने तक बच्चे का इलाज करवाया। डाक्टर शिल्पा गोयल ने अच्छा ट्रीटमेंट किया। बच्चे की देखभाल मनोज अग्रवाल के जिम्मे थी। वहां पर लापरवाही रही। जहां तक शूगर की बात है तो वाइफ को छठे महीने से शूगर की समस्या हुई वो भी 130 से 140 ही थी। मैग्नस में दिखाने के बाद पांचवें महीने से शूगर की गोली शुरू हुई थी। रोज सरस्वती अस्पताल में वाइफ की बीपी चेक करवाते व शूगर काउंट करते थे। मेरे पास तो पेपर हैं इसके। मैग्नस हॉस्पिटल में 85 परसेंट बच्चे सिजेरियन से होते हैं। बच्चे को जब आईसीयू में ऑपरेशन होने के बाद दिखाने को बुलाया तो कहा कि आपका बच्चा देख लो स्वस्थ व कंप्लीट है। उस समय का फोटो शूट है मेरे पास। उसके बाद क्या हो गया।
वकील साहब के मामले में क्या हुआ
वकील साहब योगेश जोशी ने बताया कि उनके मामले में 21 दिन तक बच्चे की आंखों की जांच नहीं की गई। जब बच्चा डॉक्टरों के पास था तो उसकी जांच क्यों नहीं हुई। यह शिशुरोग विशेषज्ञ का सामान्य काम है कि सभी जांचें करनी होती हैं। मैं जहां भी जिस डाक्टर से मिला, सबकी सिंगल लाइन है कि बच्चा पैदा होते ही उसकी सारी जांचें होती हैं। अगर डिस्चार्ज कर देते हैं तो भी उसकी जांचें लिखते हैं। यह सामान्य बात है। आरओपी अर्थात रेटिनोपेथी ऑफ प्री मैच्योरिटी की जांच। अगर सेकण्ड स्टेज पर भी बता देते तो बच्चे को चश्मा लगता व जिंदगी भर देख सकता। मेरे बच्चे की आरआपी चौथी स्टेज पार हो गई। इस बीच में बच्चा आंखें चोरों तरफ घूमा रहा था डाक्टर से कहा तो उन्होनें कहा कि कोई बात नहीं है। बच्चा 360 डिग्री आंखें घूमा रहा था आंखों से पानी आ रहा था। जब दिल्ली गया तो पता चला कि पांच सात दिन में ही बच्चे की आरओपी की जांच हो जाती तो अंधा नहीं होता। वे खुद चकित हो गए व कहा कि यह कोई कैसे कर सकता है। आखिर कोई ऐसा कैसे कर सकता है। वहां कहा गया कि हम आपको निराश नहीं करेंगे मगर फोर्थ स्टेज पर बच्चा ब्लाइंड हो जाता है। हम टूट गए, हार कर जैसे जिंदगी खत्म हो गए। हमारी जिंदगी में अंधेरा छा गया। उसके बाद मैग्नस ने फाइलें मंगवा कर जो किया वो सबके सामने है।
एसपी के स्तर पर हुई लापरवाही, जांच कमेटी की रिपोर्ट अब तक क्यों नहीं
इस मामले में पुलिस प्रशासन की भी भयंकर लापरवाही रही। वकील साहब योगेश जोशी कहते हैं कि गोयल साहब का दबाव होने से पेरशानी हो रही है। इस मामले में जब एसपी साहब को ज्ञापन दिया गया तो दो महीने तक कुछ भी नहीं किया। ज्ञापन को कूडेदान में डाल दिया, सोचा कि थोडे दिनों में मामला ठंडा हो जाएगा। यह कोई साधारण ज्ञापन नहीं था, बार सदस्यों की ओर से दिया गया ज्ञापन था, उसका ट्रीटमेंट ऐसा हुआ तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा। उसके बाद जब प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई व हंगामा हुआ तो जिला कलेक्टर ने 27 मई को कमेटी गठित कर दी। इस मामले में शहादत हुसैन के बच्चे के मामले में मैग्नस अस्पताल की लापरवाही के मामले को भी शामिल किया गया। कमेटी में ज्वाइंट डायरेक्ट काजी, सीएमएचओ शंकरलाल बामनिया, एचओडी आरएनटी डॉक्टर आसिफ, आई स्पेशलिस्ट डॉ बैरवा, स्त्री रोग विशेषज्ञ में डाक्टर मीरा सामर और राधा रस्तौगी की कमेटी इसकी जांच कर ही है। इस मामले की जांच रिपोर्ट दस दिन में आनी थी। 17 दिन बाद भी कमेटी की रिपोर्ट के अते-पते नहीं हैं। कलेक्टर साहब ने कहा था कि दो परसेंट भी गलती होगी तो हॉस्पिटल को बंद करेंगे और कार्रवाई होगी। कहां हुई कार्रवाई। 4 अप्रेल को एसपी को ज्ञपन दिया गया था। 4 अप्रेल से एसपी साहब उस ज्ञापन को लेकर बैठ गए और कोई कार्रवाई नहीं की।

नोटः खबर लिखें जाने तक जांच रिपोर्ट नहीं आयी । रिपोर्ट आने तक खबर पर अलग से खबर बनाई जायेगी ।

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