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संरक्षित वन क्षेत्रों में होटलों के संचालन के सांसद रावत के सवाल का मंत्रालय ने दे दिया गोलमाल जवाब

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। वन्यजीव क्षेत्रों में होटलों का संचालन हो रहा है या नहीं, यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को नहीं पता है। उसके पास इसका कोई डेटा ही नहीं है। संसद को बताया गया कि देश में आरक्षित वन क्षेत्रों, अभयारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों में होटलों के संचालन और ऐसे होटलों के अवैध निर्माण में किसी व्यक्ति की संलिप्तता का ब्यौरा मंत्रालय के स्तर पर एकत्र नहीं किया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि मंत्रालय के पास वैध या अवैध संचालन का डेटा आखिर क्यों नहीं हैं। वह यह कहने की स्थिति में भी क्यों नहीं है कि अवैध होटलें चल रही है या नहीं चल रही है। उदयपुर डॉ. मन्ना लाल रावत की ओर से संसद में पूछे गए एक सवाल का मंत्रालय ने गोलमाल जवाब दिया है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि मंत्रालय अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहा है व आंकड़ों के नाम पर खानापूर्ति कर रहा है।
उदयपुर सांसद रावत ने पूछा कि क्या पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि –
(क) क्या सरकार को राजस्थान सहित देश के संरक्षित वन क्षेत्रों में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की अनुमति प्राप्त किए बिना होटलों के संचालन के मामलों की जानकारी है।
(ख) यदि हां, तो वन्यजीव अभयारण्यों/उद्यानों के नाम सहित तत्संबंधी ब्यौरा क्या है;
(ग) क्या उक्त मामलों में होटल के अवैध निर्माण में किसी व्यक्ति की संलिप्तता के संबंध में कोई सूचना प्राप्त हुई है.
(घ) यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है, और
(ङ) सरकार द्वारा अवैध रूप से निर्मित संचालित ऐसे होटलों के मालिकों के विरुद्ध की जाने वाली प्रस्तावित कार्रवाई का ब्यौरा क्या है?

इसका उत्तर इस प्रकार मिला
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री
(क) से (ड.)-वन और वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 33 के अनुसार, मुख्य वन्य जीव वार्डन सभी अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों का नियंत्रण, प्रबंधन और संरक्षण करने के लिए प्राधिकारी है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 33(क) के परंतुक के अनुसार, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के अंदर कोई भी व्यावसायिक पर्यटक लॉज या होटल का निर्माण नहीं किया जा सकता है। देश में आरक्षित वन क्षेत्रों, अभयारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों में होटलों के संचालन और ऐसे होटलों के अवैध निर्माण में किसी व्यक्ति की संलिप्तता का ब्यौरा मंत्रालय के स्तर पर एकत्र नहीं किया जाता है।
राज्य में मुख्य वन्य जीव वार्डन या प्राधिकृत अधिकारी को वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत किसी अपराध में संलिप्त किसी भी व्यक्ति को प्रवेश से रोकने, उसकी तलाशी, गिरफ्तारी और हिरासत में लेने का अधिकार दिया गया है।
वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 34 क के अनुसार, कोई अधिकारी जो सहायक वन संरक्षक के पद से नीचे का अधिकारी नहीं हो, किसी भी ऐसे व्यक्ति को अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान से बेदखल करने के लिए सशक्त है, जो अनधिकृत रूप से सरकारी भूमि पर कब्जा करता है और वह वहां बनाए गए किसी भी अनधिकृत ढांचे, भवन या निर्माण को हटा सकता है। मुख्य वन्य जीव संरक्षक या कोई अन्य प्राधिकृत अधिकारी वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अंतर्गत अपराध करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही आरंभ करने तथा अदालतों में शिकायत दर्ज कराने के लिए सशक्त है।
अब सवाल यह उठता है कि ये सब आदर्ष परिस्थितियां हैं। मंत्रालय केवल हां या ना में जवाब क्यों नहीं दे पा रह है कि होटलें वन क्षेत्रों में चल रही है या नहीं????

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