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विद्यार्थी कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, शिक्षक उसे विभिन्न रूपों में ढालकर देते हैं आकार : प्रो.सारंगदेवोत

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। उदयपुर के सबसे पुराने स्कूलों में से एक विद्याभवन स्कूल में वार्षिकोत्सव प्रायोजना के तहत प्रदर्शनी का उद्घाटन जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस.एस.सारंगदेवोत द्वारा किया गया। यह विद्यालय की एक विशिष्ठ गतिविधि है जिसके अन्तर्गत विद्यालय प्रति दूसरे वर्ष किसी एक थीम को चुनकर उसका विस्तार से अध्ययन करता है और उस पर एक प्रदर्शनी तैयार करता है। साथ ही थीम के इर्द-गिर्द सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी भी की जाती है।
इस बार विद्यालय ने विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ थीम को चुना। एक महीने तक विद्यार्थियों ने इस पर गहन अध्ययन करते हुए फाईलें, चार्ट, मॉडल्स, पेन्टिंग्स आदि तैयार किये। विद्यालय के कुल 950 बच्चों ने 4 उप-समुहों में बंट कर प्रोजेक्ट एवं मॉडल्स तैयार किये। इन प्रोजेक्ट कार्यों में बच्चों ने पुरातात्विक सिंधु घाटी सभ्यता, मिश्र की सभ्यता, बेबीलोन की सभ्यता (मेसोपोटामिया सभ्यता) और ग्रीक सभ्यता (यूनानी सभ्यता) सभ्यताओं में बांटकर वहां से सम्बन्धित अध्ययन कर विद्यार्थियों द्वारा पोस्टर प्रदर्शनी व विभिन्न प्रकार के मॉडल बनाए गए और उनका प्रदर्शन किया गया।
इस अवसर पर विद्याभवन सोसायटी के अध्यक्ष महोदय डॉ. जितेन्द्र कुमार तायलिया, विद्याभवन सोसायटी के मानद सचिव गोपाल बम्ब, विद्याबंधु संस्थान अध्यक्षा पुष्पा शर्मा और विद्याभवन समिति कार्यकारिणी सदस्य उपस्थित थे। स्वागत् विद्यालय के प्राचार्य पुष्पराज राणावत ने अदा की। मुख्य अतिथि प्रोफेसर सारंगदेवोत ने उद्बोधन में कहा कि हजारों वर्ष पूर्व जिस तरह का शहरीकरण, ग्रामीण जनजीवन, सामाजिक, आर्थिक विकास इन सभ्यताओं में हुआ, उसी ज्ञान का उपयोग करते हुए हम वर्तमान में नगरों, शहरों का निर्माण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम भारत की सिंधु सभ्यता से अनजान थे लेकिन सन् 1922 में की गई खुदाई से जब पुरातत्व स्थलों की खोज की गई और हमें इस सभ्यता के बारे में जानकारी मिली तो इससे भारत के प्रति लोगों की सोच बदली। इतिहास में भारतीय ज्ञान व सभ्यता को वैसा स्थान नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए था। अब इतिहास का पुनर्लेखन हो रहा है और उसमें पुनः हमारा वही गौरव स्थापित हो रहा है।
प्रो. सारंगदेवोत ने बच्चों द्वारा लगाई गयी प्रदर्शनी की सराहना की और उन्हें आशीर्वचन देते हुए कहा कि विद्यार्थी जो की कच्ची मिट्टी के समान होते हैं लेकिन अध्यापक-अध्यापिका उस कच्ची मिट्टी को विभिन्न रूपों में ढालकर आकार दे रहे हैं, यही बच्चे हमारे भारत का भविष्य हैं। हमें समय के साथ आगे बढ़ते हुए अब अपनी कुशलता से अनेक कौशल को जानने के बारे में जिज्ञासा रखनी चाहिए। स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण होने पर हम एक नए और नवीन विकसित भारत की कल्पना कर सकते हैं। कार्यकम में धन्यवाद की रस्म गोपाल बम्ब ने अदा की।

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