24 न्यूज अपडेट. नई दिल्ली। चुनाव लड़ना अब आम आदमी के बूते का नहीं रह गया हैं पैसा पानी की तरह बह रहा है। ये सारा धन काला है और इसमें नेता ही नहीं जनता भी जमकर मजे लूट रही है। नेता चाहते हैं कि दे धनाधन करते हुए चुनाव जीत लिया जाए और पांच साल के लिए राज, जीवनभर के लिए पेंशन का इंतजाम हो जाए तो जनता चाहती है कि नेता की जेब से निकला जुगाड का पैसा अगर उसकी आर्थिक तंगहाली को दूर कर दे ंतो इसमें हर्ज क्या है। अनाप-शनाप खर्च होने वाला धन लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर रहा है और इस धन की वजह से जमनत प्रभावित हो रहा है। आंकडों को देखें तो भारत में दुनिया का सबसे महंगा लोकसभा चुनाव इस बार हुआ हैं। खर्चे के आंकड़े बहुत ही चौंकाने वाले हैं। 2024 में चुनाव पर हुआ कुल खर्च 2019 के मुकाबले करीब दोगुना हो गया है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल खर्च 55 से 60 हजार करोड़ रहा था। 2024 में कुल चुनावी खर्च 1.35 लाख करोड़ के आसपास रहने का अनुमान है। कई लोग कहते हैं कि चुनाव का मतलब ब्याव मांडना है। मगर जो चुनाव 6 चरणों में चले उसके तो कहने ही क्या? नेताओं ने इतना जी भरकर धन लुटाया मानो उनके पास कुबेर का खजाना पड़ा हुआ हो। मानों उन पर धनवर्षा हो रही हो। खर्चे की फेहरिस्त साड़ी-दारू से शुरू होकर चुनाव के बाद और पहले खबरियों की बख्शीश तक जाकर खत्म होती है। धन की आवक के कई स्त्रोत हैं। स्थापित पार्टी का प्रत्याशी है तो इसके लिए धन आवक की पूरी गुप्त चेन बनी हुई हैं। उद्योगपति से लेकर अफसरों तक गुप्त चैनलों से धन पहुंचाते हैं ताकि बाद में जीते हुए प्रत्याशी का भरपूर दोहन किया जा सके। चुनाव आयोग ने जो खर्चे की सीमा तय की है वह भी एक आम मध्यमवर्गीय गरीब व्यक्ति के बूते से बाहर की बात है। लोकसभा चुनाव लड़ने वाला हर प्रत्याशी अधिकतम 95 लाख रुपये खर्च कर सकता है। इस उपरी सीमा का देख कर ही कहा जा सकता है कि आखिर वे कौन लोग हैं जो 95 लाख खर्च करने का माद्दा रखते हैं। या तो बहुत बडे उद्योगपति हैं या फिर दो नंबर का काम करके खूब धन बनाया है और दुनिया की नजरों में ईमानदारी का चोला ओढ कर बैठे है। पूरे चुनावों में बिरले ही ऐसे प्रत्याशी होते हैं जो चंदा लेकर या फिर बहुत ही फ्री एंड फेयर अंदाज में खर्चा कर चुनाव लड़ते व जीतते हैं। इनके साथ जन भावना जुड़ी होती है। विधानसभा चुनाव के लिए खर्च की लिमिट अधिकतम 40 लाख रुपये है. अरुणाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्यों में तो यह लिमिट सांसद के लिए 75 लाख और विधायकों के लिए 28 लाख रुपये ही रखी गई है।
इस बार के लोकसभा चुनावों के चौंकाने वाले नतीजों के अलावा चौंकाने वाले खर्चे भी हैं। साल 2024 में चुनाव पर हुआ कुल खर्च 2019 के मुकाबले करीब दोगुना से भी ज्यादा पहुंच गया हैं। अमेरिका में हुआ हालिया चुनाव का खर्च भी इसके आगे फीका पड़ गया और भारत सबसे महंगा चुनाव कराने वाला देश बन गया है। 35 साल से चुनावी खर्च के बारे में बहुत ही बारीकी से अध्ययन कर रिपोर्ट जारी करने वाली गैर लाभकारी संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने इस बार के अनुमान जारी किए हैं जिनके अनुसार इस बार लोकसभा चुनाव में करीब 1.35 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए है ंजो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल खर्च 55 से 60 हजार करोड़ के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा हैं। अमेरिका में भी 2020 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में करीब 1.20 लाख करोड़ रुपये ही खर्च किए थे। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज का दावा है कि लोकसभा चुनाव में सिर्फ 3 राजनीतिक दलों भाजपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) का खर्च ही 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा तो पिछले चुनाव के कुल खर्च से भी करीब डेढ़ गुना ज्यादा है। वहीं, कुल चुनावी खर्च 1.35 लाख करोड़ के आसपास रहने का अनुमान जताया जा रहा हैं पिछले लोकसभा चुनाव में हुए कुल खर्च का करीब 45 फीसदी सिर्फ भाजपा ने किया। चुनाव आयोग के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि देश में मतदाताओं की संख्या करीब 96.6 करोड़ है. इस लिहाज से देखा जाए तो चुनाव में हुए कुल खर्च के सापेक्ष एक वोट की कीमत करीब 1,400 रुपये होगी. पिछले लोकसभा चुनाव में एक वोट की कीमत 700 रुपये रही थी। आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में हर कैंडीडेट के चुनावी खर्च की लिमिट महज 25 हजार रुपये थी. अब तक यह 300 गुना बढ़कर 75-90 लाख रुपये पहुंच गई है. साल 1998 में लोकसभा चुनाव का खर्च 9 हजार करोड़ था, जो 2019 में 60 हजार करोड़ और इस बार तो 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।
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