24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। एलिवेटेड फ्लाई ओवर के भूमि पूजन की राजनीतिक औपचारिकता पूर्ण होने के बाद अब यह सवाल खत्म हो गया है कि कौन इसके पक्ष में है और कौन विपक्ष में। अब तो सवाल यह है कि इसकी ड्यूरेबिलिटी, एफिशिएंसी कैसी होगी। इस काम का टेण्डर लेने वाली कंपनी के काम की बारीकी से निगरानी कैसे व कितनी सटीक होगी। एलिवेटेड फ्लाई ओवर में जनता का 137 करोड़ रूपया लग रहा है। चाहे जो दल और विचारधारा हो, सब यही चाहेंगे कि जिसने ठेका लिया है वो अपना काम पूरी ईमानदारी व समयबद्ध रूप से नियमों के अनुसार करे। टेण्डर डाक्यूमेंट क्या व क्यों कह रहा है? उसमें क्या लूप होल्स किसके लाभ के लिए छोड़ दिए गए हैं? इसके परिणाम क्या हो सकते हैं? निगम के किन इंजीनियरों को कॉपी पेस्ट करने पर चार्जशीट मिलनी चाहिए। टेण्डर डाक्यूमेंट का पैसा वापस वसूला जाना चाहिए। इस पर बात होनी चाहिए ताकि आगे कोई इस तरह की लापरवाही करने की जुर्रत ना कर सके।
कल भूमि पूजन समारोह में महामहिम गुलाबचंदजी कटारिया साहब के भाषण की कुछ पंक्तियों से भी सवाल उठने कि कहीं ठेका कंपनी को जरूरत से ज्यादा संरक्षण देने की बात पहले दिन से तो नहीं की जाने लगी है। हम इमोशनल होकर जरूरत से ज्यादा उदार तो नहीं हो रहे हैं। एलिवेटेड के भूमि पूजन पर कटारियाजी ने ठेका कंपनी को आश्वासन देते हुए कहा कि- कम्पीटिशन में लिए टेण्डर में निर्माण के दौरान यदि कंपनी को घाटा या नुकसान होगा तो उसकी भरपाई हम करेंगे। लेकिन काम से किसी तरह का समझौता नहीं होना चाहिए। यदि उदयपुर का विकास होगा तो हमारा भी विकास होगा। महामहिम की इस बात के निहितार्थ भले ही बेहतरीन काम करवाने का हो मगर नुकसान की भरपाई समझ से परे है। आपको बता दें कि इस काम के लिए सरकारी निविदा 179 करोड़ की प्रस्तावित थी। लेकिन जिस फर्म को टेण्डर मिला उसने 137 करोड़ में इस काम को पूरा करने का वादा करते हुए ठेका लिया है। अर्थात सरकारी दरों से 24 प्रतिशत कम पर ठेका दिया गया है। यही नहीं, कई शर्तों के साथ ही ठेका कंपनी इस एलिवेटेड फ्लाई ओवर का 10 साल तक रख रखाव भी देखेगी। ठेका कंपनी ने अपना नफा और नुकसान देखने के बाद ही सरकारी दर से 24 परसेंट से कम रेट में टेण्डर भरा व टेण्डर उसके नाम पर खुल गया। जबकि सरकारी इंजीनियरों ने इस काम की लगत 179 करोड़ तय की थी। याने ठेका कंपनी यह मान कर चल रही है कि उसको नुकसान तो नहीं होना है। काम शुरू होने से पहले ही ठेकेदार को उसके नुकसान की भरपाई देने से यह संदेश भी जा रहा है कि कहीं ओवर प्रोटेक्शन की नीति तो नहीं अपनाई जा रही है? कहीं बाद में क्लैम उठाने के खेल तो नहीं चलेंगे जैसा कि आम तौर पर होता है।
कल महामहिम कटारियाजी यहां तक कह गए कि कंपनी ने बाजार के कम्पीटिशन के चलते यह टेण्डर 137 करोड़ रुपए की लागत में किया है। बाजार में कंपीटीशन पहले भी था, आज भी है व कल भी रहेगा। सारे ठेके कंपीटीशन में ही लिए जाते हैं। ऐसे में यदि कंपनी ने केवल कंपीटीशन के चलते टेण्डर में कम राशि भरी है तो यह चिंता की बात है। कटारियाजी ने कहा कि कंपनी काम में किसी तरह का समझौता ना करें। कंपनी उच्च क्वालिटी की एलिवेटेड रोड का निर्माण कर उदयपुर को दे ताकि शहर में लगने वाले जाम से मुक्ति मिल सके। कटारिया ने महापौर जी.एस टांक की भी तारीफ करते हुए कहा कि टांक जैसे इंजीनियर के कारण ही एलिवेटेड़ की लागत 137 करोड रुपए आई है, जबकि मैं खुद इसे 250 करोड रूपए की सोच कर चल रहा था।
अब दूसरे बिंदु पर आते हैं जिसमें कटारियाजी ने कहा कि काम की गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। लेकिन इतने बड़े प्रोजेक्ट की रिपोर्ट और टेण्डर डाक्यूमेंट में यहां के इंजीनियरों ने जो कॉपी-पेस्ट का खेल खेलकर भ्र्रष्टाचार किया है उसका क्या होगा? टेण्डर डाक्यूमेंट में कुछ ऐसी बातें लिखी हैं जो मुमकिन ही नहीं है। मसलन रेलवे से परमिशन लेने की शर्त समझ से परे है। इस काम से रेलवे का कोई लेना-देना नहीं है। ना तो काई पटरी बीच में आ रही है ना कोई पुल। दूसरा, एक महीने में पूरे के पूरे मार्ग से अतिक्रमण हटा कर उसको खाली करवा कर ठेका कंपनी को सौंपना। यह करना संभव ही नहीं है। उससे भी बड़ा सवाल ये है कि सब चाहते हैं कि काम गुणवत्तापूर्ण हो। लेकिन क्या ऐसा संभव है। इसे संभव से परे हमारे निगम के ही इंजीनियर बना रहे हैं। ठेका कंपनी इन लूप होल्स के सहारे बड़ी ही आसानी से किसी भी जिम्मेदारी से बच सकती है या फिर गुणवत्ता की बात होती ही कानूनी रूप से पल्ला झाड़ सकती है कि यह सब को टेण्डर की शर्तों में लिखा ही नहीं है। निगम जो इंजीनियर निगम के टेण्डर के 500 पेज का डाक्यूमेंट ठीक से नहीं जांच सकते वो इतने बड़े काम की गुणवत्ता को क्या व कैसे जांचेंगे। इसकी उम्मीद करना ही बेमानी है।
टेण्डर डाक्यूमेंट को देख कर ऐसा लग रहा है मानों पूरा का पूरा काम ही ‘‘उदड़े’’ पर दे दिया गया है। कॉपी पेस्ट वाले टेण्डर डाक्यूमेंट में कहीं पर भी जिक्र नहीं है कि पूरे निर्माण में सामान की विशिष्टियां क्या होंगी। सामान की विशिष्टियां मतलब कि हर चीज की बारीकी। उदाहरण के लिए लोहा टाटा स्टील का लगेगा या री रोड या लोकल गला हुआ लगेगा। सीमेंट कौनसे ग्रेड की लगेगी, गिट्टी रेत आदि की गुणवत्ता की कोई चर्चा नहीं की गई है। अगर विशिष्टियां नहीं लिखी जाएंगी और कल को ठेकेदार उदयपुर में ही भंगार से बने हुए सरिये लगा देगा व कम ग्रेड की सीमेंट काम में लेगा तो हमारे कापी पेस्ट वाले इंजीनियर साहब उन्हें कैसे रोकेंगे। क्योंकि टेंडर में ही कहीं नहीं लिखा है कि कौनसा लोहा-स्टील, सीमेंट लगेगा। ऐसे में कोई लायबिलिटी भी नहीं बनेगी। यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि ना बड़े वाले इजीनियर साहब ने इसे पढ़ा है ना महापौर साहब ने इस डाक्यूमेंट को खोल कर देखा है जिनकी तारीफ की जा रही है।
कॉपी पेस्ट वालों को मिलनी चाहिए चार्जशीट
कापी पेस्ट करके पूरे के पूरे टेण्डर डाक्यूमेंट का कबाड़ा निगम के जिन अफसरों ने किया उनको चार्जशीट मिलनी चाहिए व पूरे डाक्यूमेंट का हुआ खर्च उनकी तनख्वाह से वसूला जाना चाहिए। साथ ही जांच होनी चाहिए कि ऐसा हुआ या किया गया। उस फर्म को ब्लैक लिस्ट करना चाहिए जिसने यह बनाया है। एलिवेटेड रोड के डाक्यूमेंट में ऐसी लापरवाही करने वाले अफसरों के नाम भी सार्वजनिक होने चाहिए। इतने बड़े काम में ऐसी लापरवाही अक्षम्य है। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि टेण्डर लेने वाली कंपनी को लाभ देने के लिए डाक्यूमेंट में लूप हॉल छोड़ दिए गए जिनके सहारे बाद में क्लैम उठाए जा सकते हो। जो निगम के अफसर नक्शे में एक-एक इंच का हिसाब किताब करते हुए नोटिस जारी कर देते हैं। वे यदि ऐसी ब्लंडर टेण्डर डाक्यूमेंट में छोड़ दे ंतो भ्रष्टाचार की आशंका दिखना आना स्वाभाविक है।
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