-वैज्ञानिक आधार और सांस्कृतिक महत्व की तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
-तीन दिवसीय आयोजन 28 मार्च से – 30 मार्च को उदयपुर में भव्य आयोजन, गूंजेगा मंगलाचार

24 News Update उदयपुर, 26 मार्च। ब्रह्मपुराण में उल्लेख है, “चैत्रमासे जगदब्रह्मा ससर्ज पृथमेहनि। शुक्ल पक्षे समग्रन्तु तदा सूर्याेदये गति।।” अर्थात, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को की और इसी दिन मानव की उत्पत्ति हुई। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने भी इस तिथि को आधार मानकर प्रथम भारतीय पंचांग की रचना की, जिसमें दिन, महीना और वर्ष की गणना की गई। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि माना गया है।

यह बात भारतीय नववर्ष समाजोत्सव समिति के संरक्षक रमेश शुक्ल ने बुधवार को यहां होटल हिस्टोरिया रॉयल में आयोजित प्रेस वार्ता में कही। उन्होंने भारतीय कालगणना के महत्व को बताते हुए कहा कि भारतीय नववर्ष वैज्ञानिक और सार्वभौमिक उत्सव है, क्योंकि इसकी गणना पृथ्वी के सभी स्थानों पर समान रहती है। उन्होंने बताया कि भारतीय कालगणना अन्य कैलेंडरों की तुलना में अधिक सटीक और सार्वभौमिक है। अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखें विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग समय पर बदलती हैं, जबकि हिन्दू तिथियां सभी स्थानों पर समान रूप से लागू होती हैं। उदाहरणस्वरूप, अंतरराष्ट्रीय तारीख रेखा के दोनों ओर अंग्रेजी तारीखों में एक दिन का अंतर रहता है, लेकिन भारतीय तिथियां पूरे विश्व में एक साथ बदलती हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय ज्योतिष के विद्वानों ने वैदिक युग में ही यह सटीक गणना कर ली थी कि किस दिन, किस समय सूर्यग्रहण होगा। यह कालगणना इतनी अद्भुत है कि तिथि वृद्धि, तिथि क्षय, अधिक मास, क्षय मास जैसी खगोलीय घटनाएं इसे प्रभावित नहीं कर सकतीं। सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या को और चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा को ही होगा, यह सिद्धांत आज भी अचूक रूप से प्रमाणित होता है।

उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी अपने वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध भारतीय नववर्ष और गौरवशाली इतिहास की गरिमा से अनभिज्ञ है। इसका कारण औपनिवेशिक शिक्षा नीति का प्रभाव है, जिसने भारतीयों के मन में हीन भावना भर दी। थॉमस मैकाले ने 12 अक्टूबर 1836 को अपने पिता को लिखे पत्र में उल्लेख किया था कि आने वाले 100 वर्षों में भारत के लोग केवल रंग-रूप से भारतीय रहेंगे, लेकिन विचारों, वाणी और व्यवहार में पूर्णतः अंग्रेज हो जाएंगे।

उन्होंने आह्वान किया कि युवा पीढ़ी अपने गौरवशाली विज्ञानपरक हर विषय में समृद्ध भारतवर्ष के इतिहास को पहचानें, अध्ययन करे और इस विश्व के समक्ष प्रस्तुत करे। नई पीढ़ी को भी भारतीय नववर्ष के महत्व को समझाएं। इसी दिशा में प्रयासरत भारतीय नववर्ष समाजोत्सव समिति नववर्ष को इस बार तीन दिवसीय उत्सव के रूप में मना रही है। उन्होंने जन-जन से नववर्ष के उत्सव में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ उत्सव नहीं, अपितु वैभव और ज्ञान से परिपूर्ण भारतीय इतिहास का स्मरण कर उस गौरव व्यक्त करने का क्षण है और उसे सम्पूर्ण विश्व तक गुंजाने का पर्व है।

प्रेसवार्ता में महंत इंद्रदेव दास व संत समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुलाबदास महाराज ने भी भारतीय नववर्ष के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व पर विचार रखे। संत गुलाबदास महाराज ने आह्वान किया कि हम बच्चों गीता और अन्य धर्मग्रन्थों को पढ़ाने की शुरुआत करें। उन्होंने सभी से कहा कि जब हमें गीता का पहला श्लोक ही ध्यान नहीं है तो इस स्थिति पर स्वचिन्तन करना होगा और स्वयं से ही शुरुआत करनी होगी।

भारतीय संवत्सरों की ऐतिहासिक यात्रा

-महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि में लिखा है कि भारत में प्रचलित सभी संवत्सरों का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हुआ है। भारतीय जनमानस में विक्रम संवत ही मान्य है। हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं इसी के अनुसार संचालित होती हैं।
-विक्रम संवत – कलि संवत के 3044 वर्ष बाद आरंभ हुआ।
-शक संवत (शालिवाहन संवत) – विक्रम संवत से 135 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ।
-ईसवी संवत – विक्रम संवत से 57 वर्ष बाद आरंभ हुआ।
-युगाब्द संवत – इसे कलियुग का आरंभ बिंदु माना जाता है और इसकी गणना 5000 वर्ष से अधिक पुरानी है।

इसलिए शुरू हुआ विक्रम संवत

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारी शकों को परास्त कर भारत से खदेड़ दिया और इस विजय पर समाज ने उन्हें ‘शकारि’ की उपाधि से संबोधित किया। यह ऐतिहासिक विजय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही हुई थी। उन्होंने न केवल द्वादश ज्योतिर्लिंगों और अयोध्या में श्रीराम मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, बल्कि हिंगलाज भवानी (हिंदूकुश, पाकिस्तान) से लेकर कामाख्या देवी (असम) तक एक विशाल सड़क मार्ग का निर्माण कराया। इस प्रकार, उन्होंने अखंड भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने का कार्य किया। इन्हीं राष्ट्रहितकारी कार्यों के कारण चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के सम्मान में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ‘विक्रम संवत’ का आरंभ किया गया। भारतीय जनमानस ने इसे अपने राष्ट्रीय नववर्ष के रूप में स्वीकार किया।

शक्ति आराधना का पर्व भी चैत्र नवरात्रा

-चैत्र नवरात्रा शक्ति आराधना का पर्व भी है। प्रतिपदा से नवमी तक विभिन्न मातृ स्थानकों, शक्तिपीठों, लोक स्थानकों पर विशेष साधना, पूजानुष्ठान, नवाह्न पारायण, दुर्गा सप्तशती पाठ आदि होते हैं।

महत्वपूर्ण यह भी

-इसी दिन भगवान श्रीराम और सम्राट युधिष्ठिर ने राजसत्ता संभाली थी।
वरुणावतार संत झूलेलाल और गुरु अंगददेव की जयंती इसी दिन है।
-आर्य समाज का स्थापना दिवस भी भारतीय नववर्ष से जुड़ा है।
-और भी कई महापुरुषों का जन्म इसी तिथि को हुआ।

तीन दिवसीय आयोजन का भव्य स्वरूप

भारतीय नववर्ष समाजोत्सव समिति के संयोजक डॉ. परमवीर सिंह दुलावत ने बताया कि पिछले तीन वर्षों से उदयपुर में भारतीय नववर्ष को भव्य रूप से मनाया जा रहा है। इस बार नववर्ष विक्रम संवत 2082 के आरंभ अवसर पर आयोजनों का विस्तार किया गया है। इस बार तीन दिवसीय आयोजनों की रचना की गई है।

28 मार्च को शुभारंभ घोष वादन से

भारतीय नववर्ष कार्यक्रमों का शुभारंभ 28 मार्च शुक्रवार को प्रातः 7.30 बजे भव्य शंखनाद घोषवादन से किया जाएगा। यह आयोजन शहर के प्रमुख मंदिरों जैसे बोहरा गणेशजी मंदिर, जगदीश मंदिर, गुरुद्वारा सचखण्ड दरबार सिख कॉलोनी, रामदेव मंदिर ठक्करबापा कॉलोनी, जैन मंदिर सेक्टर-4, एकलव्य कॉलोनी खेड़ादेवी मंदिर में किया जाएगा। घोषवादन के लिए उन समाजों से भी आग्रह किया जा रहा है जिनके पास समाज के घोषदल तैयार हैं।

28 सायंकाल स्थानीय प्रतिभा प्रकटीकरण कार्यक्रम

इसी दिन 28 मार्च को ही सायंकाल 6 बजे नगर निगम प्रांगण में स्थानीय प्रतिभाओं का प्रकटीकरण समारोह होगा। इस अवसर पर स्थानीय प्रतिभाओं की लोक संस्कृति और राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत प्रस्तुतियां होंगी।

29 को विशाल भगवा युवा वाहन रैली का आयोजन

नववर्ष उत्सव के तहत 29 मार्च शनिवार अपराह्न 4 बजे विशाल भगवा युवा वाहन रैली का आयोजन किया जाएगा। यह रैली फतेह स्कूल से प्रारंभ होकर सूरजपोल, हाथीपोल, चेतक सर्कल, लोक कला मंडल, मीरा कन्या महाविद्यालय, कोर्ट चौराहा, शास्त्री सर्कल, शक्तिनगर, टाउन हॉल तक निकाली जाएगी। वाहन रैली कार्यक्रम में बेणेश्वर धाम के पीठाधीश अच्युतानंद महाराज का सान्निध्य प्राप्त होगा। वाहन रैली में सभी प्रतिभागी केसरिया साफा और श्वेत परिधान में शामिल होंगे। इसके साथ ही शहर के विद्यालयों और महाविद्यालयों से नववर्ष पर प्रभात फेरी निकालने का आग्रह भी किया जा रहा है।

30 मार्च को भव्य शोभायात्रा और भजन संध्या

30 मार्च रविवार को भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया जाएगा, जो दोपहर 3 बजे गांधी ग्राउंड से प्रारंभ होकर हाथीपोल, देहलीगेट, बापू बाजार, सूरजपोल, टाउन हॉल नगर निगम प्रांगण पहुंचेगी। इस शोभायात्रा में मातृशक्ति मंगल कलश धारण किए मंगलाचार गाते हुए चलेंगी। शोभायात्रा में झांकियां, अखाड़े, धार्मिक ध्वज, ढोल-नगाड़े और विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियां शामिल होंगी। नगर निगम प्रांगण पहुंचने के बाद सायंकाल 7 बजे से नगर निगम प्रांगण में भव्य भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रसिद्ध भजन गायक प्रकाश माली अपनी मधुर प्रस्तुतियां देंगे। इस मुख्य आयोजन में बड़ीसादड़ी स्थित गोपाल पुरुषोत्तम आश्रम के पीठाधीश सुदर्शनाचार्य महाराज तथा झाड़ोल स्थित मांकड़ादेव धाम के गुलाबदास महाराज का सान्निध्य प्राप्त होगा।

यह झांकियां रहेंगी विशेष

  • पंच परिवर्तन
  • अहिल्याबाई होल्कर की सेवा समरसता
  • ग्राम विकास और पर्यावरण संरक्षण
  • नागरिक कर्तव्य बोध और भारत की प्रगति
  • प्रयागराज महाकुंभ, स्वावलंबन और साक्षरता अभियान

विगत वर्षों में भी रहा था संतोें का सान्निध्य

  • विक्रम संवत 2079 में साध्वी दीदी मां साध्वी ऋतंभरा
  • विक्रम संवत 2080 में बागेश्वर धाम के महंत पं. धीरेन्द्र शास्त्री और पं. देवकीनंदन ठाकुर
  • विक्रम संवत 2081 में महामंडलेश्वर पूज्य उत्तम स्वामी महाराज

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By desk 24newsupdate

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