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नेतागिरी है तो मुमकिन है-ध्यान से पढ़िये!! कैसे एलिवेटेड से हाथ खींचने वाली यूडीए बन गई सबसे बड़ी ‘‘धनदाता’’,,, कैसे निगम का हिस्सा बढ़ा कर उदयपुर की जनता को लगा दी ‘चपत’

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24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। उदयपुर के एलिवेटेड फ्लाई ओवर बनाने के नाम पर जो राजनीतिक दखल के बाद पॉलिटिकल इकोनोमिक्स चल रही है वो बहुत ही इंटरेस्टिंग और गजब हो गई है। एक उदाहरण से समझें कि – किसी की व्यक्ति की इनकम केवल इतनी ही है कि घर का बिजली का बिल, राशन, किराया, बच्चों की फीस ही भर पा रहा है। अगर वो बेसिक जरूरतों पर खर्च की बजाय अचानक कार पर खर्चा कर दे तो उसे क्या कहियेगा। आम जनता की भाषा में मूर्खता और सभ्य भाषा में ‘‘ऐसा नहीं करते तो शायद ज्यादा उचित रहता’’ कहा जाएगा। नगर निगम ठीक ऐसा ही कर रहा है।
निगम के जरिये जिन नेताओं ने उदयपुर को फ्लाई ओवर देने का ख्वाब पूरा किया उनकी जिम्मेदारी थी कि आर्थिक प्रबंध ऐसा करें कि जनता की जेब पर डाका नहीं डाला जाए। हींग लगे ने फिटकरी, रंग चोखा आ जाए। लेकिन उन्होंने जी भाई साहब के चक्कर में ऐसा नहीं किया। पूरे 136 करोड के प्रोजेक्ट में से 47 करोड़ खर्च करने का जिम्मा खुद निगम ने ओढ़ लिया। जबकि खुद के खजाने में इतना पैसा ही नहीं है। इस धन को जुटाने के लिए अब उदयपुर की जनता का वहीं हाल होगा जो कार खरीदने वाले उदाहरण वाले भाई साहब के परिवार का होगा। हम बिजली,पानी, सड़कों के लिए बार-बार निगम में जूतियां घिसेंगे, वो फ्लाई ओवर के लिए पैसा देकर साफ कह देंगे कि धन बचा ही नहीं है। और ज्यादा दबाव आया तो टेक्स बढ़ा दिए जाएंगे। जबकि होना यह चाहिए था कि एलिवेटेड रोड के लिए सबसे ज्यादा धनराशि सरकार से ली जाती। इस प्रोजेक्ट में धन के बंटवारे के आज जो आंकडे आए हैं वो चौंकाने वाले हैं। राज्य सरकार जिसने बजट घोषणा की है वो इस प्रोजेक्ट में केवल 20 परसेंट धन दे रही है। बाकी का 80 परसेंट पैसा दोनों स्थानीय निकाय निगम और यूडीए के माथे पर डाल दिए गए।
उससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि जिस एलिवेटेड रोड को बनाने के लिए यूडीए से पैसा लिया जा रहा है वो तो हाईकोर्ट में पहले ही एनओसी का एफिडेविट देकर कह चुका है कि हम फ्लाई ओवर नहीं बना रहे हैं । उसने तो नगर निगम को एनओसी थमा दी थी व कहा था कि भाई, हमसे ना होगा। हम तो यह जिम्मा आपको दे रहे हैं। वे यूडीए पूरे प्रोजेक्ट में 45 प्रतिशत पैसा याने कि 61 करोड़ रूपया दे रहा है। अब सवाल उठ रहा है कि यदि यूडीए से पैसा लेना ही था व उसको प्रोजेक्ट में सबसे बडा धनदाता बनाना ही था तो फिर इसे बनाने का पूरा का पूरा जिम्मा उसको क्यो ंनहीं दिया। किसका दबाव था, किसको लाभ देना था, किसकी खुशामद करनी थी?? यह बड़े सवाल हैं क्योंकि जनता तो पूछे कि भाई साहब, नगर निगम को जब अपने बेसिक काम बिजली, सड़क और पानी सफाई आदि के इंतजाम करने में ही पसीना छूट रहा है वो इतने बड़े फ्लाई ओवर को बनाने का जिम्मा क्यों ले रहा है जबकि दूसरी सरकारी एजेंसी यूडीए इसमें सर्वाधिक पैसा लगा रही है?
एक और सवाल उठ रहा है कि क्या डीएमएफटी और सीएसआर फंड से पैसा नहीं लिया जा सकता था ताकि नगर निगम याने कि उदयपुर की जनता पर कम बोझ पड़ता। यह कैसा वित्तीय प्रबंधन है। जो सबसे ज्यादा पैसे दे रहा है वो काम नहीं करवा रहा। जो काम करवा रहा है वो पेट काट कर पैसा दे रहा है। जो बजट घोषणा कर वाहवाही लूट रहा है वो केवल 20 प्रतिशत पैसा दे रहा है। स्थानीय नेताओं या कहें कि निगम के कर्णधारों को पता है कि उदयपुर में सीएसआर फंड से रोजाना 54 लाख रूपया खर्च हो रहा है। 100 दिन का सीएसआर का पैसा ही ले लिया जाता तो उदयपुर की जनता का एक पैसा लगाए बिना एलिवेटेड फ्लाई ओवर बन जाता। आपको बता दें कि इस काम का जिम्मा ट्रांसरेल लाइटिंग प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया है जिसने 136.89 करोड़ में इसे बनाने का जिम्मा लिया है।
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