24 न्यूज अपडेट. जयपुर। सरकारी तंत्र नींद में सोया पड़ा है। उच्च स्तर पर आदेश निकल रहे हैं जिनको कोई देखने वा जांचने वाला तक नहीं है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि गलती पर उच्च स्तर पर पनिशमेंट का कोई प्रावधान ही नहीं है। राजस्थान के विधि विभाग ने एक खत्म हो चुके कानून का हवाला देकर 12 जिलों की अदालतों में सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति आदेश निकाल दिए। जिस विभाग ने आदेश निकाले हैं उसी विभाग पर विधि (कानून) की पूरी जिम्मेदारी हैं। विभाग के आदेशों के बाद जानकारों ने कहा कि 30 जून को ही पुराने कानून समाप्त हो गए हैं। ऐसे में ये वाली नियुक्तियां पूरी तरह से अवैध व गैर संवैधानिक हैं। गलती सामने आने के बाद विभाग में हड़कंप का माहौल है। अब गलती को ठीक करने के लिए विभाग इसे लेकर संशोधित आदेश निकालने की तैयारी कर रहा है। आपको बता दें कि 1 जुलाई से अंग्रेजों के जमाने के तीन आपराधिक कानूनों को समाप्त करके तीन नए कानून लागू कर दिए गए हैं। इंडियन पीनल कोड (प्च्ब्)की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) ने ले ली है। सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति भी नए कानूनों के तहत ही की जा सकती है। जो कानून अस्तित्व में ही नहीं है वो लागू कैसे होंगे। नए कानून के तहत भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 18 (3) के तहत सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति की जानी है मगर विभाग ने सीआरपीसी की धारा 24 (3) के तहत यह नियुक्ति आदेश निकाल दिए।
आपको बता दें कि विधि विभाग ने गुरुवार को अलग-अलग आदेश निकालकर प्रदेश के 12 जिलों में 50 से अधिक अधिवक्ताओं को लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक, विशिष्ठ लोक अभियोजक व अन्य पदों पर नियुक्ति आदेश निकाले थे। इन आदेशों के जरिए विभाग ने बांसवाड़ा, डीडवाना-कुचामन, दूद-फागी, श्रीगंगानगर, जालोर, राजसमंद, खैरथल-तिजारा, कोटपूतली-बहरोड़, सलूम्बर, सांचौर, शाहपुरा सहित सिरोही जिले में सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति की थी।
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