24 न्यूज अपडेट, नेशनल डेस्क। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम द्वारा गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाने की कार्रवाई ने धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण चर्चा का विषय उत्पन्न किया है। इस कदम का उद्देश्य मंदिर की “पवित्रता बनाए रखना“ बताया गया है। तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के सबसे प्रतिष्ठित और अमीर मंदिरों में से एक है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के शेषाचलम पर्वत पर स्थित है और भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है। इसकी देखरेख तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट करता है, जो दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक ट्रस्टों में से एक है। ट्रस्ट ने 18 कर्मचारियों पर गैर-हिंदू धार्मिक प्रथाओं का पालन करने का आरोप लगाया। इन कर्मचारियों को या तो सरकारी विभाग में ट्रांसफर लेने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का विकल्प दिया गया है। यह कार्रवाई मंदिर की धार्मिक परंपराओं की रक्षा और श्रद्धालुओं की आस्था बनाए रखने के लिए की गई है। तिरुमाला मंदिर की स्थापना राजा तोंडमन के शासनकाल में हुई थी, जबकि इसकी प्राण-प्रतिष्ठा 11वीं सदी में संत रामानुजाचार्य ने की थी। भगवान वेंकटेश्वर के प्रति श्रद्धा के कारण यह मंदिर सदियों से धार्मिक परंपराओं का केंद्र बना हुआ है। जनवरी 13, 2024ः लड्डू काउंटर के पास आग लगने से अफरा-तफरी मच गई थी। जनवरी 8, 2024ः वैकुंठ द्वार दर्शन के दौरान भगदड़ मचने से 6 श्रद्धालुओं की मृत्यु और 40 लोग घायल हुए थे। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के पास बैंकों में ₹13,287 करोड़ की एफडी है। मंदिर को हर साल लगभग एक टन सोना दान में मिलता है। भगवान वेंकटेश्वर की पद्मावती से विवाह की कथा के अनुसार भगवान ने कुबेर से कर्ज लिया था। श्रद्धालु आज भी दान के माध्यम से उस “कर्ज का ब्याज“ चुकाने में मदद करते हैं। धार्मिक स्थलों में पवित्रता बनाए रखने के प्रयास कई बार विवादों का कारण बनते हैं। यह निर्णय धार्मिक पवित्रता और धार्मिक सहिष्णुता के बीच संतुलन की बहस को जन्म दे सकता है। यह घटना धार्मिक स्थलों के प्रशासन में पारदर्शिता और कर्मचारियों की आस्था से संबंधित नीतियों की समीक्षा की आवश्यकता पर भी जोर देती है।
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