24 न्यूज अपडेट. भरतपुर। राजस्थान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को डीग भरतपुर डीग के बहज गांव में महाभारत कालीन मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और मौर्यकालीन मातृदेवी प्रतिमा का सिर पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले हैं। ये अवशेष कुषाण, शुंग, मौर्य कालीन, महाजनपद कालीन और महाभारत के जमाने के हैं। यज्ञ कुंड, धातु के औजार, सिक्के, मौर्यकालीन मातृदेवी प्रतिमा का सिर, शुंग कालीन अश्विनी कुमारों की मूर्ति, फलक, अस्थियों से निर्मित उपकरण, महाभारत कालीन मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े हैं। गांव में 4 महीने से खुदाई की जा रही है। ब्रज क्षेत्र में यह गांव आता है। खुदाई में दौरान हड्डियों से बनी सुई के आकार के औजार मिले हैं। जयपुर पुरातत्व विभाग को इनको भेज दिया है। पुरातत्व विभाग का दावा है कि इस तरह के अवशेष और औजार अब तक भारत में कहीं नहीं मिले हैं। दावा है कि खुदाई में अब तक ढाई हजार साल से भी ज्यादा पुराने प्रमाण (अवशेष) मिल चुके हैं। डीग के बहज में 2 हजार वर्ष से भी प्राचीन काल के बर्तनों के अवशेष मिले हैं। अब कार्बन डेटिंग से अंतिम रूप से तय होगा कि इनकी उम्र वास्तव में क्या है। अश्विनी कुमारों को नकुल और सहदेव का मानस पिता माना जाता है। खुदाई में गांव से 700 ईसा पूर्व अश्विनी कुमारों के प्रमाण ही नहीं, बल्कि हजारों साल पहले यज्ञ, धार्मिक अनुष्ठान होने के प्रमाण भी मिले हैं। हवन कुंड से निकली मिट्टी को अलग रखा जा रहा है। इसका विशेष महत्व है। हवन कुंड में धातु के औजारों के सिक्के भी मिले हैं। पुरातत्व विभाग की टीम यहां पिछले 4 महीनों से खुदाई कर रही है। डीग शहर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। डीग को स्कंद पुराण में दीर्घपुर बताया गया है। डीग की मथुरा से दूरी 25 मील बताई गई है। द्वापर युग से लेकर शुंग, कुषाण, मौर्य, गुप्त, मुग़ल जाट काल के चिन्ह इस क्षेत्र में मिल चुके हैं। इससे पहले भरतपुर के नोह में चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति के अवशेष मिल चुके हैं। जिसमें तांबे ढले सिक्के, मिट्टी की मूर्तियां, पत्थर और मिट्टी के मनके, तांबे की चूड़ियां, वलय, चक्की और चूल्हे मिले थे। नोह इलाका शुंग-कुषाण युग की कला का प्रतिनिधित्व करता है। यहां से शुंग युग की कई यक्ष यक्षणियों की मूर्तियां मिली थीं।
डीग में मिला मौर्यकालीन मातृदेवी का सिर और महाभारत कालीन मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े

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