24 न्यूज अपडेट, जयपुर। जालोर जिले के आहोर थाना क्षेत्र की एक शांत सी रात, जहां अमूमन सिर्फ सन्नाटा बोलता है—वहीं एक टूटी-फूटी बाइक और पास पड़ी लाश ने पुलिस को हैरानी में डाल दिया। मृतक की जेब से निकले आधार कार्ड ने उसकी पहचान भैरू सिंह राव के रूप में करवाई, लेकिन इस हादसे की बदबू कुछ और ही इशारा कर रही थी—यह कोई साधारण एक्सीडेंट नहीं था।
एसपी ज्ञान चन्द्र यादव ने मौके पर पहुंचकर जब शव की हालत देखी, तो पहली ही नजर में मामला संदेहास्पद लगा। मृतक का शरीर सड़ने लगा था, बाइक दुर्घटनाग्रस्त दिख रही थी, लेकिन उसके इर्द-गिर्द बिखरे तथ्य, झूठ की परत को धीरे-धीरे उधेड़ रहे थे। भैरू सिंह के भाई की ओर से दर्ज एफआईआर में साफ कहा गया—यह हत्या है, एक्सीडेंट नहीं।
हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए जालोर पुलिस ने एक मल्टी-लेयर इन्वेस्टिगेशन प्लान शुरू किया। डॉग स्क्वाड, एफएसएल टीम, टेक्निकल एनालिसिस और साइबर सैल की मदद से टीम ने अपराध की डोर को पकड़ना शुरू किया। कॉल डिटेल्स, बीटीएस लोकेशन, संदिग्ध मोबाइल नंबर और संदिग्ध गतिविधियों ने तीन नामों को घेर लिया—पुरा राम घांची, लखमा राम घांची और नरेन्द्र दास उर्फ नीतू।
पूछताछ की कड़ी जब टूटी, तो पीछे छिपी कहानी चौंका देने वाली निकली। भैरू सिंह ने तीन महीने पहले पुराराम से एक भूखंड का सौदा किया था—7 लाख में। दो लाख एडवांस दिए गए, लेकिन बाकी की रकम चुकाने से बचने के लिए पुराराम ने अपने दो दोस्तों लखमा और नरेन्द्र के साथ मिलकर भैरू सिंह को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया।
15 अप्रैल की रात, लखमा के घर के पास के एक सुनसान मकान में उन्हें बुलाया गया। शराब पिलाई गई, और फिर सिर पर लोहे की रॉड से वार कर हत्या कर दी गई। शव को रातभर उसी घर में छिपा कर रखा गया। अगली रात, पुरा राम की कार में लाश रखी गई, मृतक की बाइक साथ ली गई और जोगावा-शंखवाली रोड पर ले जाकर एक्सीडेंट का सीन सेट किया गया।
कहानी को और विश्वसनीय बनाने के लिए बाइक को तोड़ा-फोड़ा गया, कार के टायर के घसीटने के निशान बनाए गए, और मृतक के मुंह के आगे लाल रंग बहाकर खून जैसा दृश्य रचा गया। मृतक का मोबाइल ट्रेस न हो, इसके लिए एक खराब फोन में उसकी सिम डाल कर वहीं फेंक दी गई।
जांच में सामने आया कि लखमा राम पहले से ही दो चोरी के मामलों में आरोपी है। पुलिस की इस तहकीकात में साइबर सैल के कांस्टेबल किशन कुमार और थाना आहोर की पूरी टीम ने अहम भूमिका निभाई।
इस केस की जटिलता और पेशेवर साजिश ने एक बात फिर साबित कर दी—अपराध कितनी भी चालाकी से किया जाए, अगर जांच ईमानदारी और तकनीकी दक्षता से हो, तो सच को दबाया नहीं जा सकता।
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