

24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। उदयपुर के नए महाराणा विश्वराजसिंह मेवाड़ का आज चित्तौड में पारम्परिक रीति रिवाज से हजारों लोगों की मौजूदगी में राजतिलक हुआ। चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतेह प्रकाश महल में 493 साल बाद राजतिलक रस्म का आयोजन हुआ।21 तोपों की सलामी दी गई, इस समारोह में कई राजे रजवाडो़ं के परिवार व आमजन के साथ ही देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक भी समारोह के साक्षी बने। बरसों बाद हो इस प्रकार के समारोह को लेकर लोगों में भी खासा उत्साह देखने को मिला। राजपरिवार के सदस्य व पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े बेटे विश्वराज सिंह को मेवाड़ गद्दी मिलने प्रदान की गई। समारोह सांकेतिक व दस्तूरी था लेकिन भावनाओं का ज्वार असली था। सोमवार को विश्वराज सिंह के माथे पर रक्त से तिलक हुआ तो मेवाड़ के नाथ एकलिंगनाथ के जयकारे गूंज उठे। इतिहास एक बार फिर जीवंत हो उठा। दस्तूर कार्यक्रम चित्तौडगढ़ दुर्ग में स्थित फतह प्रकाश महल में हुआ। राज परिवारों की दस्तूर की परंपरा को देखने का अपूर्व उत्साह लोगों में देखा गया क्योंकि वे आज भी राज परिवारों से अपना ऐतिहासिक जुड़ाव महसूस करते हैं। उन्हें अपने धर्म का रक्षक मानते हैं। आपको बता दें कि विश्वराज सिंह मेवाड़ अभी नाथद्वारा से विधायक और उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की भाजपा से सांसद हैं। परिवार में उनका पु़त्र देवजादित्य सिंह और पुत्री जयति कुमारी हैं।
ऐसे हुआ पूरा कार्यक्रम मुहूर्त के अनुसार
विश्वराजसिंह मेवाड़ के अधिपति एकलिंगनाथजी के 77वें दीवान बने। दस्तूर या राजतिलक समारोह मुहूर्त के अनुसार हुआ। उत्तराधिकारी के लिए नई राजगद्दी तैयार की गई। सोमवार सुबह करीब 6.30 बजे से हवन, यज्ञ फतह प्रकाश महल परिसर में हुआ। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच फतह प्रकाश महल में सबसे पहले राजगद्दी का पूजन किया गया। इसके बाद सलूंबर के रावत देवव्रत सिंह विश्वराज सिंह मेवाड़ का हाथ थाम कर उनको राजगद्दी तक लेकर गए। वहां पर विराजित किया। राजतिलक की परंपरा में अपनी तलवार से अंगूठे पर चीरा लगाया व रक्त से विश्वराज सिंह मेवाड़ के ललाट पर तिलक किया। यह रस्म सलूंबर ठिकाने की ओर से इसलिए होती है कि राव चुंडा ने अपना वचन निभाने के लिए आजीवन राजद्दी का त्याग किया था। बदले में राव चुंडाजी के वंशजों को यह अधिकार मिला था कि मेवाड़ राजपरिवार में राजतिलक की परम्परा में तिलक सलूंबर ही करेगा। इसके अलावा परम्परा के अनुसार राजतिलक के दिन ही आश्का की परपंरा हुई। इसमें एकलिंगजी मंदिर उदयपुर, कांकरोली द्वारिकाधीश मंदिर और राजसमंद का चारभुजा मंदिर से आश्का लाई गई। एकलिंगजी मंदिर से धूप की राख और फूल, कांकरोली और चारभुजा मंदिर से फूल लाए गए। जो विश्वराज सिंह मेवाड़ को दिए गए।एकलिंगजी, कांकरोली और चारभुजा मंदिर से आश्का परंपरा करने के तीन कारण हैं। एकलिंगजी से आश्का का मतलब है कि विश्वराज सिंह मेवाड़ एकलिंगजी मंदिर के दीवान बन गए। द्वारिकाधीश मंदिर से आश्का इसलिए क्योंकि विश्वराज सिंह मेवाड़ ने वैष्णव गुरु दीक्षा वहां से ही प्राप्त की है। गढबोर चारभुजा मंदिर से फूल लाने की परंपरा है पुरातन है। राजतिलक की रस्म के बाद जयकारों व वैदिक मंत्रों के बीच विश्वराज सिंह मेवाड़ बाहर आकर आमजन से मिले। यहां जितने भी लोग आए, सभी को भोजन की व्यवस्था की गई है।
यहां से वे उदयपुर के लिए प्रस्थान कर गए। उदयपुर आने पर महल में प्रयागगिरी महाराज की धूणी पर दर्शन, उसके बाद कुल देवता के दर्शन तथा मावाड के अधिपति एकलिंगजी दर्शन कमेवाड के नाथ एकलिंगनाथजी के दर्शन के बाद एकलिंगनाथजी के दीवान के रूप दर्शन करेंगे व पुजारी रंग दस्तूर में चांदी की छड़ी धारण करवाएंगे। यह छड़ी एक प्रकार का दीवान को दी जाने वाली आज्ञा या सहमति है जिसमें एकलिंगनाथ का आशीर्वाद है। इसके बाद शोक भंग रस्म में श्वेत पाग व परिधान को बदल कर रंगीन परिधान धारण किया जाएगा। विश्वराज सिंह मेवाड़ उदयपुर समोरबाग में परिवारजनों व पुराने जागीरदारों के बीच जाकर शोक भंग की रस्म करवाएंगे। उमराव, बत्तीसा, अन्य सरदार और अन्य समाजों के प्रमुख लोग नजराना पेश करेंगे। आपको बता दें कि महाराणा महेन्द्र सिंह का 1984 में राजतिलक सलूम्बर रावत निर्भय सिंह ने किया था। उसके बाद यह राजतिलक समारोह हुआ।
सिटी पैलेस के बंद किए दरवाजे
इस बीच दूसरे पक्ष की ओर से आज अखबारों में दो बडे विज्ञापन दिए गए हैं जिनमें कहा गया है कि यदि अनधिकृत प्रवेश की चेष्टा की गई तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इससे माहौल गरमा गया है। बताया जा रहा है कि सिटी पैलेस के दरवाजे बंद कर दिए गए हैं तथा एकलिंगजी में भी माहौल में गर्मी आ सकती है।
अर्थशास्त्र. में स्नातक हैं विश्वराजसिंह
सेंट जेवियर्स कॉलेज मुंबई से अर्थशास्त्र में स्नातक मेवाड़ के 77 वें महाराणा विश्वराज सिंह का जन्म 18 मई 1969 को महाराणा प्रताप की जयंती के दिन हुआ। पिछले चुनावों में उन्होंने अचानक भाजपा की सदस्यता ली और नाथद्वारा से विधायक बने। इसके तत्काल बाद भाजपा ने एक बार फिर अपनी परिवारवाद की लाइन से हटकर पत्नी महिमा कुमारी मेवाड़ को राजसमंद सांसद का टिकट देकर चैंका दिया। चुनाव में जीत कर वे वर्तमान में सांसद हैं।
21 तोपों की सलामी दी गई
पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ सबसे पहले दुर्ग के फतह प्रकाश महल पहुंचे।
वहां से मुख्य आयोजन स्थल पर आए। इसके बाद उन्होंने यज्ञ में पूर्णाहुति करने के बाद राजगद्दी की पूजा की।
बटुकों, पंडितों ने मंत्रोच्चारण किया। इसी के साथ विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म अदायगी हुई।
इस दौरान 21 तोपों की सलामी दी गई।
सलूंबर रावत देवव्रत सिंह ने अपना अंगूठा काटकर अपने खून से तिलक लगाया। इसके बाद उन्हें (विश्वराज सिंह मेवाड़) गद्दी पर बैठाया गया।
एकलिंगजी में होगी रंग दस्तूर की विधि
मेवाड़ का राजा एकलिंगनाथजी (उदयपुर) को माना गया है। एकलिंगनाथजी के दीवान के रूप में महाराणाओं ने अपने कार्य का निर्वहन किया है।
इस कारण परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्वराज सिंह मेवाड़ भी एकलिंगजी में दर्शन करेंगे। यहां पुजारी रंग दस्तूर की विधि कराएंगे।
चांदी की छड़ी उनके कंधे पर धारण कराई जाएगी। इस छड़ी को देने का मतलब होगा कि विश्वराज सिंह मेवाड़ दीवान के रूप में काम करेंगे।
इसके बाद पंडितों की ओर से शोक भंग की रस्म निभाई जाएगी। महाराणा के सफेद वाली पाग को बदलकर रंगीन पाग पहनाई जाएगी।
विश्वराज सिंह मेवाड़ उदयपुर समोरबाग आएंगे और अपने परिवारजनों व पुराने जागीरदारों का शोक भंग कराएंगे। इसके बाद सभी उत्सव में शामिल हो सकेंगे और रंग वाली मेवाड़ी पाग पहन सकेंगे।

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