24 न्यूज अपडेट उदयपुर। राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र की अलग-अलग परम्पराएं हैं, जिन पर उन क्षेत्रों के लोग विश्वास करते आए हैं। ऐसी ही एक परंपरा है प्रदेश के दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाके में जहां मकर संक्रांति के दिन एक चिडिय़ा को पकडऩे के बाद उसे उड़ाकर इस साल का भविष्य जानते हैं। यह अनोखी परम्परा साल में एक दिन मकर संक्रांति के दिन ही निभाई जाती हैं। आदिवासी समूह इस साल का भविष्य जानने के लिए एकत्रित होते हैं। उदयपुर और सलूंबर जिले के झाड़ोल, सराड़ा, गोगुंदा आदि क्षेत्रों में यह परंपरा निभाई जा रही हैं। परंपरा है कि आदिवासी युवक इस चिड़ियां जिसे डूसकी, डूचकी या देवी पक्षी बोलते हैं। उसे घौंसले से पकड़कर लाते हैं। इसे दिनभर दाना-पानी खिलाने के बाद ढोल बजाकर इस पक्षी को आसमान की ओर उड़ा दिया जाता है। यदि चिडिय़ा किसी हरे पेड़ पर या पानी वाली जगह पर बैठती हैं तो माना जाता है कि आने वाले दिन यानी यह साल उनके लिए अच्छा रहेगा। यानी इस साल अच्छी बारिश होगी। यदि यह चिडिय़ा किसी सूखे पेड़ या पथरीली जमीन पर जाकर बैठती है तो माना जाता है कि आने वाले दिन मुश्किल भरे रहेंगे।
बच्चे गाते हैं डूचकी मारू, खीसड़ो आलो..
आदिवासी एवं छोटे से लगाकर बड़े ग्रामीण एक दिन पूर्व रात को जंगल जाकर घोंसलें मे बैठी डुसकी (चिडिय़ां) को पकड़कर ले आते हैं। मकर संक्रति की सुबह चिडिय़ां को हाथ में पकड़ कर ग्रामीणों को दिखाने पर शगुन के तौर पर ग्रामीणों से रुपए, मिठाई, ऊनी वस्त्र, पुराने कपड़े, गेहूं का दान पुण्य लेते हैं। इसके बाद ग्रामीण उस आदिवासी के हाथों मे पकड़ी चिड़ियां को मुक्त करा देते हैं। सराड़ा. इस परंपरागत के तहत सराड़ा के मोकात फला के समस्त फलां में युवाओं व नन्ने मुन्ने बालक बालिका की टोली बनाकर डूचकी पकड़कर घर- घर जाकर डूचकी मारू, खीसड़ो आलो, कहकर घर घर घुमाते है।
चिड़िया उड़ाकर भविष्य बताया, घर-घर गूजा- डूचकी मारू, खीसडो आलो…..

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