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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। इस शीर्षक को पढ़कर आपके मन में विचार आ रहे होंगे कि आखिर प्लॉट कैसे गुमशुदा हो सकते हैं। लेकिन झीलों की नगरी उदयपुर के उदयपुर विकास प्राधिकरण में यह सब ही नहीं और भी बहुत कुछ मुमकिन है। यहीं से चलकर निगम तक गए 272 प्लॉट रास्ता भटक कर गलत हाथों में चले गए और आज तक एसीबी तक को ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। इन पर दोनों पार्टियों के नेताओं की काली छांया पड़ गई है। यहां बात हो रही है शहर के गोविंदनगर फूटा तालाब की जहां पर इन दिनों चर्चा बड़ी गर्म है कि यूडीएके प्लान में अनुमोदित सविना खेड़ा खसरा संख्या 486 से 492 जो राजस्व खाते में फूटा तालाब के रूप में दर्ज है। अनुमोदित प्लान में इसका नाम किरण बाग है। उसके अधिकृत नक्शे और मौके से प्लॉट संख्या 5 और 8 लापता हो चुके हैं। ये दोनों प्लॉट कैसे व कब लापता हुए, इसके बारे में कोई भी अफसर मुंह खोलने को तैयार नहीं है। ना ही अधिकृत रूप से यूडीए की ओर से कोई जानकारी दी जा रही है। लोगों में चर्चा है कि कहीं ये प्लॉट किसी भू माफिया के डर से किसी नेता का हाथ पकड़ तो नहीं गायब हो गए। या फिर किसी जमीन माफिया के रैकेट ने इनका रातोंरात अपहरण कर लिया।
दस्तावेजों से प्लॉट हो गये गायब
यूडीए की ओर से ही जारी किए गए दस्तावेजों में हमें बार-बार ढूंढने पर भी दोनों प्लॉट नहीं मिले। नक्शे के अनुसार नंबरिंग में बाकी सारे प्लॉट अपनी जगह पर है लेकिन प्लॉट संख्या 5 और 8 कहीं भी अंकित नहीं किए गए हैं। यह मानवीय भूल होगी, यह कहना मूखर्तापूर्ण तर्क होगा क्योंकि यूडीए के पास अभियंताओं और वास्तुकारों की फौज है जो मोटी तनख्वाह लेती है।उसको अनुमादित करने के लिए अफसरशाही बड़ी लंबी और बारीक स्क्रूटनी वाली प्रक्रिया अपनाती है। इसे आंखों का भ्रमजाल भी नहीं कहा जा सकता है ना ही नजर का दोश। हां, यह हो सकता है कि यूडीए के दफ्तर में ही किसी की बुरी नजर पड़ गई हो और दोनों प्लॉट नजरों से ओझल कर दिए गए हों, किसी खासमखास को लाभ दिलाने के लिए। प्लान की खासियत यह है यह फूटा तालाब की हत्या करके 2002 में अनुमोदित किया गया था। तब सबको पता था यहां पर तालाब है लेकिन सबको पता था कि इसी तालाब से उनको प्लॉट काट कर करोड़ों रूपया कमाना है। ऐसे में नेताओं व भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत से तालाब के पेटे में प्लान बनाकर अनुमोदित कर दिया गया।
हाईकोर्ट के फैसले की हो रही अवहेलना
इस अनुमोदित प्लान को यूडीए आगे बढ़ा पाती इससे पहले ही भयंकर बाढ़ ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। तब यहां बने अनधिकृत मकानों तक नावें चला कर रेस्क्यू करना पड़ा था। पूरा शहर त्राहिमाम कर रहा था। उसके बाद 2 अगस्त 2004 को राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अब्दुल रहमान बनाम सरकार की जनहित याचिका में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए एक कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए आदेश दिया कि प्रदेश के जलस्रोतों की 1947 की स्थिति बहाल की जाए। जब यह आदेश आया तो इस प्लान पर अमल करना संभव नहीं हो सका। क्योंकि अगर यूडीए इस प्लान पर आगे बढ़ती तो यह हाईकोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होता। यही स्थिति आज भी है। लेकिन इतने सालों में अफसरों और नेताओं ने फिर से मिलीभगत करते हुए इस प्लान की सड़क को लगातार आगे बढ़ाया। साथ ही अवैध रूप से मकानों का बनना भी जारी रहा। कॉलोनियां बस गई।
बिल्ली को दे दी दूध की रखवाली
हालत ऐसी हो गई जैसे बिल्ली को दूध की रखवाली का जिम्मा दे दिया गया हो और वो बार-बार रखवाली करने का दिखावा कर रही हो। यहां बिल्ली कौन है आप खुद समझ जाइये।
कर दिया बड़ा खेल, कोई नहीं गया जेल
इस मामले में नक्शे को देखने से साफ हो रहा है कि तकनीकी रूप से जहां पर प्लॉट नंबर 8 व 5 होने चाहिए वहां पर सड़क निकाल दी गई है। और जो प्लॉट 8 व 5 को नक्शे ओैर मौके से ही गायब कर दिए गए हैं। जिनके पास ये दोनों प्लॉटों के स्वामित्व हैं अब वे बार-बार कागज लेकर यूडीए, सांसद, विधायक आदि के दरबार में अर्जियां लगाते फिर रहे हैं कि उनका भूखंड आखिर कहां पर गया। यूडीए ने 5 और 8 को छोड़ कर प्लान आखिर अनुमोदित कैसे कर दिया। कहीं बाद में इस प्लान में बनाते समय छेड़छाड़ तो नहीं की गई। यह प्लान 22 साल पहले का है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यूडीए या उससे पहले के यूआईटी के अफसरों के सामने यह बात नहीं आई होगी कि ये दोनों प्लॉट या भूखंड आखिर कहां पर चले गए। इतने सालों के बाद भी आखिर इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई । क्या कोई राजनीतिक दबाव है या फिर किसी अफसर या कर्मचारी के इस मामले के खुलासे होने पर जेल जाने जैसा अंदेशा है। यदि अब भी इस मामले की निष्पक्ष जांच हों तो बड़ा घोटाला व करोडों की हेरफेर का मामला सामने आ सकता है। जमीन माफिया की मिलीभगत से रोडों को छोटा-बड़ा करना, 60-40 के रेशो की जगह 70-30 के रेशों में प्लान पास करने की कलाकारी व कलाबाजी तो सब जानते हैं लेकिन ये पहली बार हुआ है कि प्लान में प्लॉट की सीरीज के मध्य से पूरे के पूरे भूखंड ही गायब कर दिए गए हैं। इस मामले में भूखंडधारियों को न्याय कैसे व कब मिलेगा, इसमें पूरा संदेह है क्योंकि मिलीभगत का खेल उपर तक है। यदि एक फंसेगा तो सब फंसेगे इसलिए किसी एक को बचाने के लिए सब कूद पड़ेंगे। चाहे सरकार किसी की भी हो।
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