24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। नगर निगम में इन दिनों गजब का खेल चल रहा है। राजनीतिक हस्तक्षेप से खुल्ला खेल फर्रूखाबादी की कहावत चरितार्थ हो रही है। चुन चुन कर कार्रवाइयां होने से अब पब्लिक में परसेप्शन बन गया है कि नेताओं के दबाव में जिसे जब चाहे आसानी से निशाना बनाया जा रहा है। जिन नियमों के तहत खुद निगम के अफसरों व कर्मचारियों को नोटिस जारी किए जाने थे उन ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए कार्रवाइयां की जा रही हैं। सवाल उठ रहे हैं कि यदि निगम 2022 में मांगी गई परमिशन दो साल बाद भी नहीं दे सकता है तो फिर निगम में काम क्या हो रहा है?? या तो आवेदन को खारिज करें या स्वीकार नहीं करने का कारण बताएं। अटकाने का मकसद कहीं कोई आर्थिक लाभ उठाना या फिर बाद में किसी पर कार्रवाई की पृष्ठभूमि तैयार करना तो नहीं है? नियमानुसार अगर तय समय में परमिशन नहीं देंगे तो संबंधित आवेदक को यह अधिकार है कि वह निर्माण कर ले। लेकिन यहां तो खेल ये हो रहा है कि निर्माण करने पर कोई नोटिस नहीं दिया जाता। कई साल गुजर जाने के बाद अचानक अधिकारों को किसी राजनीतिक दबाव में आकर आत्मज्ञान होता है कि यहां तो परमिशन ही नहीं है। उसके बाद दस्तूरी रूप से नोटिस देने का खेल चलता है और आनन फानन में सीज की कार्रवाई हो जाती है। हंसी तो तब आती है जब नोटिस किसी और के नाम, सीज किसी ओैर के नाम की बिल्डिंग हो रही है। ऐसा लग रहा है कि किसी के आदेश हैं इसलिए कुल मिलाकर कार्रवाई हर हाल में तुरत फुरत में करनी ही है, फिर चाहे नाम व प्लॉट नंबर गलत ही क्यों ना हो? अब यह कहा जाने लगा है कि ऐसा रवैया इज ऑफ डुइंग बिजनेस वाली भावना के विपरीत है और इसके व्यापार जगत पर गहरे असर होने वाले हैं। अगर कार्रवाई हो तो समग्र रूप से अभियान चला कर हो, सिलेक्टिव रूप से कार्रवाई होगी तो उंगलियां नेताओं व उन अफसरों पर भी उठेगी जो कथित रूप से ईमानदारी का तगमा लिए हुए घूम रहे हैं।
उदयपुर में शनिवार को सरकारी छुट्टी के दिन राडाजी चौराहे पर वैदेही फूड प्लाजा की बिल्डिंग सीज की गई। इसक बाद नगर निगम प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए। सवाल उठ रहे हैं कि क्या नगर निगम के अफसर राजनीतिक दबाव में आकर आनन-फानन में नेताओं को पसंद आने वाले फैसलों को एग्जीक्यूट कर रहे हैं। या कहीं न कहीं किसी के आर्थिक हितों पर कुठाराघात करने का सुनियोजित प्रयास हो रहा है। वैदेही फूड प्लाजा पर कार्रवाई के बाद आज 35 कर्मचारियों के घर में चूल्हे नहीं जले, वे बेरोजगार हो गए। उनकी सैलरी 8 हजार से लेकर 30 हजार तक की थी। हमने कर्मचारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि कोई उत्तराखंड से है तो कोई बिहार से तो कोई स्थानीय है। नए साल में और तरक्की की उम्मीद थी लेकिन यहां पर तो निगम की कृपा से नौकरी और रोजगार तक लाले पड़ गए।
मिलीभगत के लग रहे आरोप
निगम की इस कार्रवाई में मिलीभगत का आरोप इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि जो नोटिस टाइप हुआ था उसमें सात दिन का समय दिया गया था जिसे मैन्युअली तीन दिन का कर दिया गया। प्रशासनिक भाषा में कानूनी प्रभाव से बचने के लिए इसे टाइपो एरर कहा जाता है। आज सुबह छुट्टी के दिन अचानक निगम का दस्ता दल बल के साथ कार्रवाई करने पहुंचा व आनन -फानन में पूरी बिल्डिंग को ही सीज कर दिया। हद तो यह है कि 2022 में इस बिल्डिंग की लिखित परमिशन मांगी गई थी जो आज तक नहीं दी गई। क्यों नहीं दी किसने नहीं दी? इसकी जांच कौन करेगा? कौनसा अधिकारी किस नेता के कहने पर कुंडली मारकर फाइल पर बैठा इसका जवाब कोन देगा? उन पर कार्रवाई कौन करेगा?
जिन्होंने परमिशन नहीं दी उनको कब मिलेगी चार्जशीट
नियमानुसार अगर निगम 45 दिन में परमिशन नहीं दी गई तो बिना परमिशन के बिल्डिंग बनाई जा सकती है। बिल्डिंग बनने के दो साल तक निगम सोता रहा। कोई नोटिस नहीं दिया गया और आज अचानक नेताओं व अफसरों की लॉबी के दबाव में कार्रवाई कर दी गई। आपको जानकार आश्चर्य होगा जो नोटिस दिया गया है वह भी बिल्डिंग बनाने वालों की जगह राजकुमार पामेचा के नाम पर है। प्लॉट नंबर भी दूसरा लिखा गया है। सवाल उठता है कि क्या निगम के कर्मचारी इतने बचकाने तरीके से काम करते हैं कि उनको यह भी नहीं पता कि किसके नाम पर नोटिस देना है?ऐसा तो नहीं कि पर्दे के पीछे से खेल कोई और खेल रहा है और मोहरा सरकारी कारिंदे बन रहे हैं। बताया जा रहा है कि उदयपुर में 156 बिल्डिंग ऐसी हैं जो बिना सेटबेक के बनी हुई है। लेकिन निगम उन पर कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। अगर सब पर एक साथ कार्रवाई की जाए तो पूरे शहर में भूचाल आ जाए। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है क्योंकि नेतागिरी ढाल बनकर आड़े आ जाती है। यही नेतागिरी सिलेक्टिव होकर कार्रवाई करवा रही है यह आरोप है।
राइजिंग राजस्थान के सबसे बडे इन्वेस्टर समूह पर कार्रवाई से उठे सवाल
एक तरफ राजस्थान के सीएम राइजिंग राजस्थान में इज ऑफ डुइंग बिजनेस को प्रमोट कर रहे हैं। प्लॉट और जमीनें सहित कई रियायतों देने के फैसले हो चुके हैं। तो दूसरी तरफ राइजिंग राजस्थान में उदयपुर का सबसे बड़ा 900 करोड़ का इन्वेस्ट करने वाले समूह पर अवकाश के दिन ऐसी त्वरित कार्रवाई साफ बता रही है कि या तो दाल में कुछ काला है या पूरी दाल ही काली है।
पार्षदों पर हफ्ता वसूली का आरोप
वैदेही समूह के डायरेक्टर राजकुमार पामेचा ने 24 न्यूज अपडेट को दिए इंटरव्यू में बताया कि अब वे न्यायालय शरण लेंगे। उन्होंने सीधी सीधा आरोप लगाया कि जहां पार्किंग की जगह है वहां पर निगम ने अवैध ठेले खड़े कर रखे हैं जहां पर पार्षद हफ्ता वसूली कर रहे हैं। उदयपुर में ऐसे 25 ठेले हैं जो पार्षदों के नाम पर है व उनको चला कोई और रहा है। उनकी बिल्डिंग प्रोपर सेटबेक छोड़कर बनाई गई है। सुबह साढे पांच बजे प्रतिष्ठान खुला, साढे आठ बजे स्वास्थ्य अधिकारी आ गए। सुबह स्टाफ तक नहीं पहुंचा था कि ये लोग पहुंच गए। हमारे यहां सेम्पल लेने में इनको दो से तीन घंटे लगे, दूसरों के यहां पर दस मिनट ही लगे। अगर पांच जगह के सेम्पल लिए तो किसी का नाम नहीं लिया केवल हमारा नाम ही दिया गया। हमने लाइसेंस केवल फ्रेम में नहीं कर रखा था बस इतना सा कुसूर था। यह कार्रवाई किसी उपरवाले की ओर से हो रही है। नोटिस इंडीविजुअल नाम से आया है जबकि यह पार्टनरशिप फर्म है। ऑइल ग्रीस चेम्बर लाइन में डिफाल्ट आने से सही करवाया जा रहा था। ग्र्रीस चेम्बर केवल फिट करना ही बाकी था। हमारे पास निर्माण स्वीकृति की रसीद है नक्शा हैं। 2022 में स्वीकृति नहीं मिली तो हमने नियमानुसार निर्माण किया। प्रॉपर सेटबेक भी है। इन्होंने प्लॉटनंबर 2 एक नोटिस दिया जबकि प्लॉट नंबर 10 है। चस्पा नोटिस में भी यही है। इंटेंशनली कार्रवाई हुई है।
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