24 न्यूज अपडेट, साइंस डेस्क। अंग्रेजों ने कोरोना की वैक्सीन का एक फार्मूला तैयार किया और भारत में उनके फार्मूले पर एस्ट्राजेनेका कंपनी की कोवीशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई गई। सीरम इंस्टीट्यूट की इस वैक्सीन को कोरोनाकाल में मेड इन इंडिया कहकर खूब प्रचारित किया गया और देश में 175 करोड़ डोज लगाए गए। दुनियाभर में यह वैक्सीन काम में ली गई। वैक्सीन लगने के बाद लोगों के अचानक मरने की कई अपुष्ट खबरें आती रहीं मगर खुद ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। एस्ट्राजेनेका पर आरोप लग रहे हैं कि उनकी बनाई वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो गई है और कई अन्य को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा है। कंपनी का ताजा शोध बताता है कि इससे थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम हो सकता है जिसमें खून का थक्का जमता है। हालांकि यह बीमारी दुर्लभ बीमारियों की श्रेणी में आती है। स बीमारी में पहले खून के थक्के जमते हैं और उसके बाद प्लेटलेट्स की संख्या अचानक कम हो जाती है। इसके बाद दिल का दौरा पडता है। ब्रिटेन में इस कंपनी के खिलाफ अब तक 51 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं व एक हजार करोड का हर्जाना मांगा गया है। हालांकि, वैक्सीन में किस चीज की वजह से यह बीमारी होती है, इसकी जानकारी फिलहाल कंपनी के पास नहीं है। सबसे खास बात यह है कि एस्ट्राजेनेका कंपनी इस वेक्सीन से 60 लाख लोगों की जान बचाने का दावा करता है और वैक्सीन का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है। बाजार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था। इसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरे वैक्सीन का भी डोज दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे। इन आंकडों के सामने आने के बाद भारत में भी इस पर शोध व तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।
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