24 न्यूज अपडेट उदयपुर 25 जून / हमारे पास पानी की प्रचुर मात्रा है इसलिए हम इसकी कद्र नहीं करते है, हम इसका सही उपयोग कर देश ओर अधिक तरक्की की राह पर ले जा सकते है। इस अनावश्यक जल उपयोग को कम करने के लिए जल का कुशलतापूर्वक व विवेकपूर्ण उपयोग जरूरी है। समृद्ध भारत जैसे देश में समृद्ध जल प्रबंधन की नीति अत्यंत आवश्यक है। भारतीय दंड विधान के अन्तर्गत जल के दुरूपयोग पर आर्थिक दंड का प्रावधान होना जरूरी है तभी जल संरक्षण का मार्ग सुनिश्चत हो सकेगा। शास्त्रो में पंच महाभूत को प्राकृतिक दृष्टि से देखकर उनके प्रति संवेदनशीलता और अन्तर्मन में प्रकृति के प्रति श्रद्धाभाव का होना नितांत आवश्यक है, उक्त विचार मंगलवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के संघटक विधि विभाग की ओर से प्रतापनगर स्थिति आईटी सभागार में ‘‘ औद्योगिक क्षेत्रों में जल प्रबंधन में वर्तमान प्रवृत्ति और चुनौतियॉ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार में संभागीय आयुक्त राजेन्द्र भटट् ने बतौर मुख्य अतिथि कहे। उन्होंने इजराईल का उदाहरण देते हुए कहा कि वहॉ न तो पानी है और न ही तेल, फिर भी उसने लिमिटेड पानी का सही मैनेजमेंट कर खेती और रहने योग्य बनाया। जहॉ रिसोर्स कम होता है वहॉ उसकी उपयोगिता दिखती है। उन्होंने कहा कि आज कई नदियों का पानी वेस्ट जाता है, आवश्यकता है नदियों को जोड़ने की। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिशा में कार्य भी किया था।
मुख्य वक्ता मैग्सेसे पुरस्कार सम्मानित डॉ. राजेन्द्र सिंह ने कहा कि जल संरक्षण और संबंधित सुचारु व्यवस्था की दृष्टि से आम समाज का जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है। हमारे ज्ञान विज्ञान की प्रवाहित धारा ने हमें प्रकृति से दूर कर दिया जिसमें मैकाले शिक्षा का प्रमुख योगदान है। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय से ही भारत विश्व गुरू था लेकिन मेकाले की शिक्षा ने समाज को वास्तविक मायने में गुलाम बना दिया। उन्होने कहा कि वर्तमान समय चुनौतीपूर्ण वातावरण में आम समाज को प्रकृति के प्रति संवेदनशील होने तथा जल प्रबंधन के विभिन्न स्वरूपों से सभी को लाभान्वित किया।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि वेदों और पुराणों में भी जल संरक्षण व प्राकृतिक सम्पदा के प्रति जागरूकता के विभिन्न सौपान मिलते है। हमें हमारी आने वाली पीढ़ी में भारतीय संस्कृति एवं सनातन मूल्यों को समाहित करने की जरूरत है जिससे वे इनके मूल्यों व महत्व को समझ सके। सीमित संसाधनों के बावजूद प्राचीनकाल में प्राकृतिक जल स्त्रोतों को वर्तमान संदर्भ में विभिन्न प्रयोगों से संरक्षण किया जाता रहा है। जल प्राकृतिक सम्पदा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है शरीर का निर्माण पंच तत्वों से हुआ है जिसमें जल तत्व सर्वाधिक है, जिसका संरक्षण भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने प्रकृति व उसके प्रमुख घटक के साथ साथ जल तत्व का विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से संरक्षण व उनके प्रति जागरूकता को लेकर सभी शिक्षण संस्थानों व समाज को उत्तरदायी माना। उन्होंने सनातम मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता व जारूकता को महत्व देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति व मूल्यों में प्रकृति वंदन के साथ साथ प्राकृतिक सम्पदा के निर्माण व स्त्रोतों पर विशेष बल दिया गया है।
श्री गोविन्द गुरू विवि गोधरा के कुलपति प्रो. प्रताप सिंह चैहान ने जल ही जीवन है कि संकल्पना को परम् वैभव की ओर ले जाने के उद्देश्य से भारतीय शास्त्र, प्राचीन ग्रंथ को आधार मानकर प्राकृतिक सम्पदा के विभिन्न स्त्रोतों के संरक्षण पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे ग्रामीणजन ने कभी पर्यावरण का नुकसान नहीं पहुंचाया उन्होंने ने प्रकृति का संरक्षण किया है।
सेमीनार में समाजसेवी शांतिलाल वेलावत, अतिरिक्त महाधिवक्ता डॉ. प्रवीण खण्डेलवाल, गजपाल सिंह राठौड़ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
प्रारंभ में डॉ. कला मुणेत ने अतिथियों का स्वागत करते हुए तीन दिवसीय सेमीनार की जानकारी दी । तकनीकी सत्र में रमन सुद, रिसर्च चेयर प्रोफेसर अमरीका अलीजाबेथ के सानिध्य में 17 प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए । सेमीनार का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
विधि , पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर इनका हुआ सम्मानः-
प्राचार्य डॉ. कला मुणेत ने बताया कि सेमीनार में अतिथियों द्वारा विधि , पर्यावरण के क्षेत्र मेंएडवोकेट डॉ. प्रवीण खण्डेलवाल, गजपाल सिंह राठौड़, बार अध्यक्ष भरत जोशी, पूर्व अध्यक्ष मनीष शर्मा, हर्षवर्धन जैन, डॉ. अंजु गहलोत, डॉ. सतीश नागर, डॉ. एसडी व्यास, सुनील दईया, शंकर सिंह देवड़ा, गगन श्रीवास्तव, अंकित गुप्ता, दीपक लक्ष्यकार, अरविंद कुमार लौहार का उपरणा, शॉल, स्मृति चिन्ह एवं सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया।
संचालन ऋत्वि धाकड़, डॉ. सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत ने किया जबकि आभार डॉ. के.के. त्रिवेदी ने जताया।
इस अवसर पर साहित्यकार किशन दाधीच, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, प्रो. मंजु मांडोत, डॉ. मीता चैधरी, डॉ. सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत, अंजु कावड़िया, डॉ. प्रतीक जांगिड, डॉ. के.के. त्रिवेदी, भानु कुंवर सिंह, छत्रपाल सिंह, डॉ. ज्ञानेश्वरी सिंह राठौड, डॉ. विनिता व्यास, डॉ. रित्वी धाकड, निरव पाण्डे्य, भानु कुंवर राठौड़, चिराग दवे सहित अकादमिक सदस्य एवं बड़ी संख्यॉ में शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। यह जानकारी निजी सचिव केके कुमावत ने दी।


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By desk 24newsupdate

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