24 न्यूज अपडेट उदयपुर। जहां तक नजर जा रही है होर्डिंग नजर आ रहे हैं। छतों, घरों, दीवारों और दुकानों के उपर से झांकते होर्डिंग। कुछा आड़े, कुछ तिरछे, कुछ छोटे कुछ मोटे। तो कुछ आसमान तक तने हुए विशाल होर्डिंग। बस नजर उठा कर दूर से देखते ही चले जाइये। ड्राइविंग करते हुए देखिये, पैदल चलते हुए देखिये, रिक्शा और बस में बैठे हुए देखिये। किसी पर स्कूल का विज्ञापन है तो कोई जुबां केसरी की बात कर रहा है। किसी होर्डिंग में नेताजी को जन्मदिन की बधाई है तो किसी में ऑफरों की भरमार। तो कोई देश के नंबर वन सीमेंट के बारे में बता रहा है। उदयपुर शहर की शायद ही ऐसी कोई सड़क हो जिस पर होर्डिंग नहीं लगे हों। यदि ऐसी कोई सड़क है तो यकीन जानिये, उस पर आज ही होर्डिंग लगने ही वाला होगा। इन होर्डिंग से नगर निगम को हर महीने मोटी कमाई हो रही है। मंजर खुशनुमा है मगर कल मुंबई में आए तूफान के बाद होर्डिंग और सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया हैं। मुंबई में जो होर्डिंग गिरा उसने 14 लोगों की जान ले ली, 74 लोग घायल हो गए। यह होर्डिंग 100 फीट ऊंचा और 250 टन वजन का जो तूफान के दौरान पेट्रोल पंप पर गिर गया। लोगों को संभलन का मौका ही नहीं मिला और मौत उनके उपर आकर गिर गई। मुंबई के इस हादसे के बाद आज 24 न्यूज अपडेट ने उदयपुर शहर के होर्डिंग का जायजा लिया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। शहर के लगभग हर गली-चौराहे व नुक्कड़ पर बड़े-बड़े होर्डिंग मौत को दावत देते हुए नजर आ रहे हैं। इनकी लंबाई, चौड़ाई और उंचाई एक जैसी नहीं है। कई होर्डिंग ऐसी इमारतों पर लगे हैं जा जर्जर हो रही है तो कई होर्डिंग जिन खंभों पर टिके हुए हैं उनकी ईंटें नजर आ रही हैं। हम इस खबर के माध्यम से बड़ा सवाल उठा रहे हैं कि क्या इन होडिंग की कोई सेफ्टी ऑडिट की गई है। यदि की गई है तो कब, उसकी रिपोर्ट सावर्जनिक की जाए। क्या इनको लगाने के कोई स्टेण्डर्ड मानक हैं। क्या कोई सरकारी एजेंसी यह बता सकती है या प्रमाणित कर सकती है कि इन होर्डिंग में कितनी स्पीड के तूफान को सहन करने की क्षमता है। इनके गिरने की आपताकालीन स्थिति में ऐसे कौनसे उपाय है जिससे जनहानि को बचाया जा सकता है। इन प्रश्नों के उत्तर शायद किसी के पास नहीं है। एक्पर्ट्स का कहना है कि हर उंचे होर्डिंग के पास खतरे की चेतावनी लिखी होनी चाहिए। उसका वजन और उंचाई भी पता होनी चाहिए ताकि बारिश और तूफान के समय लोग उसके नीचे खड़े नहीं हों। इसके अलावा होर्डिंग को बनाने में काम में लिए गए सरिये और अन्य मेटेरियल की भी जांच होनी चाहिए। तीन दिन पहले उदयपुर में हवा के जोर से चेतक सर्कल, उदियापोल और सूरजपोल पर होर्डिंग में लगे बैनर फटकर सड़क पर आ गिरे थे। क्या इसके लिए भी कोई नियम और पनिशमेंट का प्रावधान नहीं होने चाहिए। राह चलते बैनर गिर जाए और कोई घायल हो जाए तो किसी को तो फर्क पड़ना चाहिए। मगर यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। पहली बारिश में ही यह हाल हैं तो मानसून के दिनों में क्या होगा, इसका अंदाजा अभी से लगाया जा सकता है। दरअसल होर्डिंग आसमान में मंडराती मौत जैसे हो गए हैं। जगह-जगह से मौत झांक रही है। जाने कब किसकी किस्मत खराब हो और होर्डिंग सिर पर आ गिरे। इसे लेकर कोई जवाबदेही नजर नहीं आ रही है। ठोकर चौराहे पर दो साल पहले जहां बड़ा सा होर्डिंग फुटपाथ पर गिर गया था, अब वहां उससे भी उंचा होर्डिंग लग गया है। देहलीगेट पर बरसों पहले एक बीएड के छात्र की होर्डिंग का सरिया गिरने से हुई खौफनाक मौत का मंजर आज भी शहरवासी नहीं भूले हैं। ऐसे में जरूरत है कि तुरंत उंची इमारतों पर लगे होर्डिंग की सुरक्षा का ऑडिट कर जिला प्रशासन, निगम और यूडीए एक रिपोर्ट जारी करे ताकि शहरवासी अपनी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो सके। लोगों को भी चाहिए कि वे जन प्रतिनिधियों से यह आश्वासन लें कि उनकी लोकलिटी में लगे होर्डिंग की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी रहेगी। यदि हादसा हुआ तो वही जिम्मेदार होंगे। फिर देखिये, उनमें कैसे जगता है सबकी सुरक्षा का भाव और होता है तुरंत एक्शन। उम्मीद है कि जिला प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेगा।
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