
24 न्यूज अपडेट उदयपुर। भाई साहब, निगम के इन कापी पेस्ट वाले इंजीनियरों से एलिवेटेड रोड का काम नहीं हो पाएगा क्योंकि ये अपनी ड्यूटी तक ठीक से नहीं निभा रहे हैं। लाखों की फीस देकर जो टेण्डर डाक्यूमेंट बनवाया है उसमें इतनी खामिया हैं कि एक्सपर्ट उनको पढ़-पढ़ कर हंस रहे हैं और उसकी वजह से निगम की जग हंसाई हो रही है। माना कि मेयर साहब खुद इंजीनियर हैं व वो खुद चाहते तो गंभीरता से टेण्डर डॉक्यूमेंट देख सकते थे लेकिन अल्टीमेट जिम्मेदारी तो इंजीनियर साहब की थी जिन्होंने आंखें मूंद कर कॉपी पेस्ट किए हुए टेंण्डर डाक्यूमेंट को ज्यों का त्यों पास करवा दिया, उसे कोर्ट में भी पेश कर दिया। सबसे पहली बानगी इन कागजी सूरमाओं की ये है कि जिन्हें हम अब तक बहुत ही काबिल और जानकार समझते थे वे एक 500 पेजों का एक दस्तावेज तक नहीं जांच सकते। वह दस्तावेज जिसके आधार पर 137 करोड़ का काम होना है। जिसके एक-एक क्लॉज और सब क्लॉज पर टेंडर लेने वाली कंपनी को निगम के इंजीनियर्स की मूर्खता की वजह से कानूनी उपचार ही नहीं, मुआवजा तक पाने का हक मिल रहा है। अगर कॉपी पेस्ट से ही काम चलाना था तो लाखों रूपए देकर प्रोजेक्ट का टेण्डर डॉक्यूमेंट ही क्यों बनवाया। बहुत कम पैसों में शहर का ही कोई इंजीनियरिंग स्टूडेंट ही यह काम कर देता। फाइंड एंड रिप्लेस वाले टूल का इस्तेमाल करते हुए शाब्दिक और आंकिक बदलाव कर देता।
अब हम बताते हैं कि आखिर क्या ब्लंडर हुआ है। अगर आप भूमि पूजन के कार्यक्रम स्थल नगर निगम पर हैं व यह खबर पढ़ रहे हैं तो यह जानकार अचरज होगा कि आज उदयपुर में उत्तरी कोटा के बाईपास का उद्घाटन होने जा रहा है। ये हम नहीं कह रहे हैं एलिवेटेड रोड या एलिवेटेड फ्लाई ओवर की 500 पेज की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में लिखा है। कॉपी-पेस्ट किंग इंजीनियरों ने ऑन पेपर जो कारीगरी दिखाई है उसे झुठलाया नहीं जा सकता। यदि सरकारी और राजनीतिक स्तर पर थोड़ी सी भी प्रोफेशनल कार्यबुद्धि बची है तो इसके लिए जिम्मेदार इंजीनियरों के वेतन से पैसा काटा जाना चाहिए। आज जिस एलिवेटेड फ्लाई ओवर का उद्घाटन हो रहा है उसका नाम टेंडर डाक्यूमेंट के पेज-20 आर्टिकल वन पर ‘‘उत्तरी कोटा प्रोजेक्ट हाईवे’’ लिखा हुआ है। एलिवेटेड रोड नहीं। मतलब यह कि ठेकेदार को कोटा का हाईवे उदयपुर में बनाना है एलिवेटेड रोड नहीं। आपको बता दें कि प्रोजेक्ट हाइवे तो जमीन पर बनता है। एलिवेटेड हाईवे सडक से उपर 20 से 25 फीट तक उंचा, पिलर पर बनता है। क्या इंजीनियरों को इतना भी नहीं पता या फिर भरोसे की भैंस…..वाली कहावत चरितार्थ हो गई। इसी प्रकार पेज 28 टेण्डर डाक्यूमेंट में लिखा है कि प्रोजेक्ट का कार्य विवरण ‘‘प्रोजेक्ट हाइवे’’ बनाना है। प्रोजेक्ट हाईवे की परिभाषा पेज 20 पर दी हुई है जिसमें यह लिखा है कि हाईवे नंबर 33 और हाईवे नंबर 52 को जोड़ने वाली 12.9 किलोमीटर लंबी बाईपास सड़क होगा। कॉपी पेस्ट की खुमारी में बेसुध होकर यह सब लिख दिया जाना और फिर अधीक्षण अभियंता महोदय द्वारा इसे आगे बढ़ा देना गंभीर लापरवाही नही ंतो और क्या है। जागरूक नागरिक, ट्रिपल इंजन बोर्ड के पार्षद जरा मेयर साहब व अधीक्षण अभियंता से सवाल तो करें कि आखिर ये हो क्या रहा है? कौनसा हाईवे-कौनसी सड़क बन रही है। ठेकेदार यदि फेवर को नहीं हुआ तो वह तो पूछ सकता है कि बताइये, कौनसे कोटा में कौनसा हाईवे बनाना है। मुझे तो आपने टेंडर में लिखकर दिया है। हमने पता किया तो पाया कि कंसल्टेंट को दस्तावेज तैयार करने का लाखों में पैसा पारिश्रमिक के रूप में मिलता है। अगर उसने फर्जी कागजी रिपोर्ट बनाई तो जिसको जांचने का काम था वे क्या कर रहे थे। निगम के अधिकारी लगता है बस एलिवेटेड रोड का दरबारी राग अलापने में ही इतने मशगूल हो गए कि उन्होंने आख खोल कर डाक्यूमेंट पढने की जहमत तक नहीं उठाई। या तो उनको समय ही नहीं दिया गया या करना नहीं चाहते थे या उनकी दक्षता नहीं थी।
शब्दों का खेल-आरे भाई बनाना क्या चाहते हो!
अब समझते हैं कि इस प्रोजेक्ट में शब्दों का भी खूब खेल हो रहा है। हाईकोर्ट में निगम ने लिखा है ‘‘एलिवेटेड फ्लाई ओवर’’ बना रहे हैं। जबकि भूमि पूजन समारोह में जो नक्शे वाला होर्डिंग लगाया है उसमें लिख रहे हैं ‘एलिवेटेड रोड’,। इधर, प्रोजेक्ट रिपोर्ट में ही इसको ‘प्रोजेक्ट हाईवे’’ भी बताया जा रहा है। आज एक समाचार पत्र में इसका नाम अधिकारियों के हवाल से एलिवेटेड सिटी रोड बताया गया है। यह एलिवेटेड रोड की केटेगरी होती ही नहीं है। अब ऐसे में नाम को लेकर भारी कंफ्यूजन है। यह तो तय है कि यह फ्लाई ओवर नहीं है। यह एलिवेटेट सिटी रोड भी नहीं है। यह प्रोजेक्ट हाईवे भी नहीं है क्योंकि इसे हाईवे पर याने कि जमीन पर नहीं बनाया जा रहा है। अब अधिकारी ही कंफ्यूजन दूर करें कि ये है क्या?? यदि एलिवेटेड रोड नहीं है तो होर्डिंग पर क्यों लिखवाया?? है तो कैसे??
कौनसा लोहा-सीमेंट लगेगा यह तक नहीं बताया
पूरा काम ऐसे करवा रहे हैं मानों ‘‘उदड़े’’ ही दे दिया गया हो। कॉपी पेस्ट वाले टेण्डर डाक्यूमेंट में कहीं नहीं लिखा है कि पूरे निर्माण में सामान की की विशिष्टियां क्या होंगी। उदाहरण के लिए लोहा टाटा स्टील का लगेगा या री रोड या लोकल गला हुआ लगेगा। सीमेंट कौनसे ग्रेड की लगेगी, गिट्टी रेत आदि की गुणवत्ता की कोई चर्चा नहीं की गई है। अगर विशिष्टियां नहीं लिखी जाएंगी और कल को ठेकेदार उदयपुर में ही भंगार से बने हुए सरिये लगा देगा व कम ग्रेड की सीमेंट काम में लेगा तो हमारे कापी पेस्ट वाले इंजीनियर साहब उन्हें कैसे रोकेंगे। क्योंकि टेंडर में ही कहीं नहीं लिखा है कि कौनसा लोहा-स्टील, सीमेंट लगेगा। ऐसे में कोई लायबिलिटी भी नहीं बनेगी। यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि ना बड़े वाले इजीनियर साहब ने इसे पढ़ा है ना महापौर साहब ने इस डाक्यूमेंट को खोल कर देखा है।
टाइमिंग को लेकर सवाल
बताय जा रहा है कि इस टू लेन एलिवेटेड फ्लाई ओवर को पार करने में दस मिनट का समय लगेगा। याने कि तीन किलोमीटर के लिए अगर 10 मिनट लगते हैं तो वाहन की स्पीड 18 किलोमीटर प्रति घंटा रहेगी जो बहुत ज्यादा नहीं है। इसके आस-पास की स्पीड सुबह व शाम को खाली सड़क पर वैसे ही मिल रही है। अगर कोई 18 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड को बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करे तो फिर अलार्म बैल बज ही जानी चाहिए।
टेण्डर डाक्यूमेंट में लिखा गया है कि हम एग्रीमेंट करने के 30 दिन में 90 प्रतिशत कार्यक्षेत्र या कम से कम 5 किलोमीटर कार्यक्षत्र टेंडर लेने वाली फर्म को सौंपेंगे। ऐसे में एस्टीमेट लगाएं तो जब रोड की कुल लंबाई ही 2.8 किलोमीटर है तो फिर कौनसा 5 किलोमीटर का वर्क एरिया निगम ठेकेदार को सौंपेगा,??? यदि कल काम शुरू होने से 30 दिन में निगम अगर पूरा का पूरा ही रोड खाली नहीं कराएगा तो उसे 30 दिन में ठेका फर्म को मुआवजा देना पड़ेगा।
टेंडर डाक्यूमेंट में लिखा है कि प्रोजेक्ट की ड्राइंग को रेलवे अथॉरिटी से मंजूर करवानी है। अगर नहीं करवाई तो निगम से एग्रीमेंट साइन होने के बाद कंपनी उसका मुआवजा मांग सकती है। इसके लिए 60 दिन की मियाद है। अब इस काम में रेलवे का क्या लेना देना है यह समझ से परे है??? हद है कॉपी पेस्ट करने की??
कार की सेवा आखिर क्यों?? किसके लाभ के लिए
एलिवेटेड रोड बनाने की शर्तों में शामिल है कि ठेकेदार नगर निगम को दो कारें इनावो कंपनी या उसके बराबरी की 2021 के बाद के मॉडल की देगा। तब तक के लिए जब तक काम चलेगा। यह सेवा मुफ्त में होगी, 4 हजार किलोमीटर प्रति माह चले जितना उसका डीजल व पेट्रोल, टोल टेक्स, ड्राइवर व मेंटेनेंस आदि भी दिया जाएगा। प्रोजेक्ट निगम की नाक के नीचे बन रहा है। कार लेकर कौन कहां जाएगा यह बड़ा सवाल है। इस कार की सेवा का मिसयूज होगा, यह तय बात है। इस मामले में भ्रष्टाचार के आरोप भी बाद में लग सकते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि आम तौर पर जब सुदूर इलाकों में कोई रोड बन रही होती है व निरीक्षण परीक्षण में लंबी यात्राओं का सरकारी महायोग बनता है तब इस तरह की बातें टेंडर में लिखी जाती हैं। मजे की बात ये है कि फ्लाई ओवर का निर्माण पूरा होने के बाद 10 साल तक का रख रखाव भी वहीं एजेंसी करेगी व इस दौरान भी एक कार नगर निगम को दी जाएगी। इसके अलावा 200 वर्गफुट का ऑफिस भी ठेकेदार नगर निगम को सड़क के उपर बनाकर देगा। इसे साइट ऑफिस मय टायलेट कहा गया है। इसकी भी जरूरत आखिर कहां पर है। निगम के दफ्तार से ही काम दिख जाएगा, उसको देखने के लिए अलग से ऑफिस की जरूरत ही कहां थी। इसे बनाने में जनता का पैसा बर्बाद किया जा रहा है। यह सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारे काबिल अफसरों ने टेंडर की शर्तां को पढ़ा ही नहीं है। उनकी अनदेखी को जनता आखिर क्यों झेलें। इसे लेकर लोग कोर्ट भी जा सकते हैं।
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