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ईको सेंसेटिव जोन नहीं रिश्वत सेंसिटिव जोन कहिये, पहले मिलीभगत से हो रहे बड़े-बड़े निर्माण, फिर कानूनी डंडे से बचने के लिए वही प्रशासनिक मशीनरी नोटिस देकर कर रही है सीज

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24 न्यूज अपडेट उदयपुर। उदयपुर के आस पास का इको सेंसिटिव जोन अब रिश्वत सेंसिटिव जोन बन गया है। यहां पर अफसरों ने पहले तो आंख मूंद कर जमकर चांदी कूटी और अब कानून के डंडे से बचने के लिए नोटिस देकर सीज करने की चुनिंदा तरीके से नौटंकी चल रही है। कानून के डंडे से बचने के लिए अब लगभग हर महीने ऐसी एकाध कार्रवाई की जा रही है। पिछले महीने एक रिसोर्ट को सीज किया गया था, आज उदयपुर के राजस्व ग्राम बड़ी में यूडीए ने एक और रिसोर्ट के सीलबंद ताले लगवाए। कार्रवाई उदयपुर विकास प्राधिकरण की ओर से की गई। आज सुबह दल बल के साथ यूडीए का दस्ता हवाला बड़ी रोड स्थित पर पहुंचा व उसको सीज कर दिया। रिसोर्ट अवैध बताया गया, इसका निर्माण भी ईको सेंसेटिव जोन में होना बताया गया। प्राधिकरण कमिश्नर राहुल जैन ने मीडिया से कहा कि राजस्व ग्राम बड़ी के आराजी संख्या 2936, 2937 कृषि संयुक्त खातेदारी भूमि पर बिना रूपान्तरण, बिना स्वीकृति एवं बिना भू-उपयोग परिवर्तन कराए ही तत्व विला नामक रिसोर्ट बना दिया गया। तहसीलदार डॉ. अभिनव शर्मा के नेतृत्व में टीम ने इको सेंसेटिव जोन के 100 मीटर के दायरे में हुए इस व्यवसायिक निर्माण को सीज किया, पटवारी सुरपाल सिंह, ललित, दीपक, हितेंद्र, भगवती लाल सहित होमगार्ड का जाब्ता की मौजूदगी रही। तहसीलदार ने उदयपुर विकास प्राधिकरण अधिनियम-2023 की धारा 32 के तहत प्रकरण दर्ज किया व 22 जुलाई को ही अवैध व्यवसायिक निर्माण को सीज करने के आदेश दिए थे। निर्माण कैलाशी देव व अन्य का था। पूरे मामले में सवाल यह उठ रहा है कि इको सेंसिटिव जोन में इतना बड़ा रिसोर्ट आखिर बन कैसे गया। जिन अधिकारियों व कर्मचारियों के पास अतिक्रमण रोकने की जिम्मेदारी है क्या यह निर्माण होते समय उनकी आंखें बंद हो गई थी या फिर आंखों के आगे कोई हरियाला आर्थिक नजारा पेश कर दिया गया था। निर्माण होते समय ही क्यों नहीं रोका गया। यदि कर्मचारियों को पता नहीं था तो फिर वे यह क्यों न माना जाए कि वे फील्ड में जा ही नहीं रहे हैं व अपने कर्तव्यों का निर्वहन ही नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा इको सेंसिटिव जोन में और कितने निर्माण हो चुके हैं यह किसी से छिपा नहीं है, क्या उन पर भी एक साथ कार्रवाई होगी या फिर किश्तों में बारी-बारी से मुहूर्त निकाला जाएगा। नोटिस-नोटिस देकर समय दे दिया जाएगा ताकि कानूनी उपचार हासिल किए जा सकें। इस मामले में अधिकारियों की जब तक दंडात्मक जवाबदेही तय नहीं होगी तब तक अरावली के पहाडों व उसमें जमीन माफिया की दखल को रोकना लगभग नामुमकिन है। हर कार्रवाई करते समय संबंधित अतिक्रमी के साथ ही उन अफसरों के नाम भी उजागर होने चाहिए जिनके कार्यकाल में यह निर्माण हुआ। कार्रवाई का खर्च उनसे वसूला जाना चाहिए व उन पर भी सख्त एक्शन होना चाहिए ताकि वे समय रहते प्रिमिटिव एक्शन ले सकें। ऐसी चौकस व्यवसथा हो कि इको सेंसिटिव जोन में नियम विपरीत निर्माण शुरू होते ही संबंधित पर कार्रवाई हो जानी चाहिए ताकि बाद में सील करने की जनता के पैसों से दल-बल भेज कर नाटक-नौटंकी नहीं करनी पड़ी। इस बारे में जन प्रतिनिधियों को भी आगे आकर नियम कायदों के अनुसार चलने पर प्रशासनिक मशीनरी को पाबंद करना चाहिए।

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