24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। अगर आप उदयपुर शहर के पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हैं तो आपके लिए चिंताजनक खबर है कि केंद्र सरकार के पास आयड़ नदी के पानी में मिले जहर का कोई आंकड़ा नहीं है। यही नहीं नदी में जो जहरीला पानी बह रहा है उसके एक चौथाई को बिना फिल्टर किए बहने दिया जा रहा है इसकी उसे खबर तो है मगर कोई एक्शन प्लान नहीं है। उससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि आयड़ नदी में कुल चार जगहों पर जनता के खून पसीने की कमाई को खर्च करके पानी छानने के प्लांट लगे हैं। इनमें से दो का पानी सीधा जिंक के पास जा रहा है तो बाकी बचे दो सीवेज का छाना हुआ पानी फिर से गंदे पानी में मिलाकर आयड़ में बहाने का मूर्खतापूर्ण काम हो रहा है। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे टंकी का पानी आरओ से छान लो और आधी ग्लास पीने के बाद उसमें टंकी के पानी में आरओ का पानी मिला कर पीने को दे दो। बड़ा सवाल उठ रहा है कि जब गंदे पानी के साथ उपचारित पानी बहाना ही है तो फिर छानने की नौटंकी क्यों हो रही है। जनता का पैसा बर्बाद क्यों किया जा रहा है। इसके अलावा शहर में सप्लाई हो रहे पीने के पानी का 40 परसेंट अभी चोरी हो रहा है अगर इस पर भी लगाम लगा दी जाए तो कई कॉलोनियों मेंं पानी का संकट खत्म हो जाएगा।
इस बारे में कौन, कब, कैसे बात करेगा। क्योंकि गूंगी जनता गहरी नींद में सोई है। लोगों को खुद के काम से ही फुर्सत नहीं हैं। और इसी का लाभ उठाते हुए आयड़ नदी की सुनियोजित तरीके से हत्या की जा रही है। नेताओं और अफसरों का तो एक ही मंत्र है-हम एक रहेंगे, सेफ रहेंगे। जहां भी काम चलेगा हमारे हिस्से के भी कुछ कटेंगे, कुछ बंटेंगे। 75 करोड़ के आयड़ के सौंदर्यीकरण के काम में उनको अपनी आर्थिक तरक्की हरे-हरे खेत नजर आ रहे हैं तो प्रदूषण पर बात करके क्यों मगजपच्ची करना।
पानी में जहर का कोई हिसाब-किताब नहीं
बहरहाल, भारत सरकार के पास आयड़ नदी में प्रदूषण को नापने का कोई भी आंकडा उपलब्ध नहीं है। ना ही ऐसा कोई प्रयास किया गया है। जल शक्ति मंत्री बीसियों बार उदयपुर आ चुके हैं, उनका खूब स्वागत सत्कार हो चुका है लेकिन कभी किसी जन प्रतिनिधि ने उनसे यह नहीं पूछा कि भाई साहब आप आयड़ झील के प्रदूषण की जांच अपने मंत्रालय से क्यों नहीं करवा रहे हैं। आप 30 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों (यूटी) में 603 नदियों की निगरानी करवा रहे हैं उनकी जांच में 279 नदियों पर 311 नदी खंड प्रदूषित होना बता रहे हैं तो हमारी छोटी सी आयड़ नदी की भी जांच करवा लीजिए। ऐसा नहीं होना चौंकाने वाली बात है। आयड नदी के प्रदूषण का कोई भी आंकडा केंद्र सरकार के पास नहीं है। तथ्य नहीं है तो आयड़ के जहर पर चर्चा होना भी अंसभव है। जबकि हर बार बारिश का पानी आते ही यही नेता और अफसर जल पूजन को दौड़े चले जाते हैं। आयड़ को भाषणों में वेनिस बनाने का ख्वाब पारोसते हैं लेकिन इस पर चर्चा नहीं करते किए प्रदूषित जल यहां की आबादी के खून में जहर भरने का काम कर रहा है।
लोकसभा में पूछा प्रदूषण पर सवाल
आयड़ नदी के प्रदूषण याने जहर के बारे में भारत के सरकार जल शक्ति मंत्रालय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग को जानकारी नहीं होने की जानकारी लोक सभा में उदयपुर सांसद मन्नालाल रावत के एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में सामने आई है। रावत ने पूछा कि क्या आयड नदी में प्रदूषित जल और औद्योगिक अपशिष्ट प्रवाहित किए जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान के उदयपुर में स्थित उदय सागर झील प्रदूषित हो रही है। साथ ही यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और उक्त प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। उठाए जा रहे हैं; और उक्त प्रयोजनार्थ कितनी निधि आवंटित की गई है?
इस सवाल का जवाब भी काफी जलेबीनुमा मिला है। जल शक्ति राज्य मंत्री श्री राज भूषण चौधरी ने जवाब में कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की प्रदूषित नदी खंड (पीआरएस) पर आधारित रिपोर्ट, 2022 के अनुसार 30 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों (यूटी) में 603 नदियों की निगरानी की गई और 279 नदियों पर 311 नदी खंड प्रदूषित पाए गए। हालाँकि, आयड नदी इस रिपोर्ट में शामिल नहीं है। राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, अनुपचारित/आंशिक रूप से उपचारित/पूर्णतः उपचारित घरेलू सीवेज को आयड नदी में प्रवाहित किया जा रहा है।
पहले पानी साफ करते हैं फिर उसको गंदे पानी के साथ छोड़ देते हैं
आयड़ नदी में बहने वाले गंदे पानी के उपचार के लिए चार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। सामान्य भाषा में समझे ंतो ऐसे फिल्टर लगाए हैं जिनसे कुछ हद तक गंदगी छंटकर हटा दी जाती है। लेकिन यह पानी पीने के लायक नहीं होता है। इसे सिंचाई में काम में ले सकते हैं। बताया गया कि 20 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी), 25 एमएलडी, 10 एमएलडी और 5 एमएलडी क्षमता वाले चार सामान्य सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (सीएसटीपी) उदयपुर की आयड़ नदी में एकलिंगपुरा कलड़वास, उदय सागर रोड, एफसीआई गोदाम के पास और करजाली हाउस में स्थापित किए गए हैं। जिनमें से 20 एमएलडी और 25 एमएलडी क्षमता वाले 2 सीएसटीपी के उपचारित जल का उपयोग राजपुरा दरीबा स्मेल्टर कॉम्प्लेक्स में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) इकाई द्वारा किया जाता है और 10 एमएलडी और 5 एमएलडी क्षमता वाले अन्य 2 सीएसटीपी के उपचारित जल को आयड नदी में प्रवाहित किया जाता है। याने कि 45 एमएलडी पानी तो जिंक पाइपों से ले जाता है जबकि बाकी बचा उपचारित जल 15 एमएलडी आयड़ नदी में ही पहले से बह रहे गंदी पानी में मिला दिया जाता है। सामान्य भाषा में समझे ंतो आयड़ में बहते हुए पानी में से सारे पानी का उपचार नहीं होता क्योंकि इसके लिए उतनी संख्या में फिल्टर प्लांट हीं नहीं हैं। जो चार फिल्टर प्लांट हैं उसमें से दो का पानी जिंक ले जाता है जबकि दो का पानी उपचारित होने के बाद फिर से नदी की उस धारा के साथ बहा दिया जाता है जो पहले से प्रदूषित है। यह बात भी हमारे नेताओं को पता है लेकिन उनकी प्राथमिकताओं में फिल्टर प्लांट की जगह आयड़ के 75 करोड़ के सौंदर्यीकरण के काम हैं। प्रश्न के उत्तर में सांसद को बताया गया कि अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) 2.0 के अंतर्गत सीवर लाइन बिछाने के कार्य हेतु 200 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
उदयपुर में 40 परसेंट पीने के पानी की हो रही है चोरी
नई दिल्ली स्थित “डवलपमैंट अल्टरनेटिव्स” नामक स्वयंसेवी संस्था ने जर्मनी की एक संस्था “हेनरिच बॉल फाउँडेशन” के सहयोग से सन् 2018 में उदयपुर की जल प्रणाली पर अध्ययन किया। उसके बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके अनुसार जलदाय विभाग 7.85 करोड़ लीटर पानी विभिन्न झीलों से और 0.50 करोड़ लीटर पानी कुओं बावड़ियों से, याने कि कुल 8.35 करोड़ लीटर पानी हर रोज लेता है। इसमें से ो 7.84 करोड़ लीटर पानी को विभिन्न फिल्टर प्लांटों में उपचारित किया जाता है और शेष को सीधा वितरित कर दिया जाता है क्योंकि गुणवत्ता ठीक मानी जाती है । उपचारित पानी में से 3.35 करोड़ लीटर (कुल उठाव का 40 प्रतिशत) पानी का हिसाब जलदाय विभाग के पास नहीं है। यह पानी या तो पाइप लाइनों से रिस जाता है या फिर बिना वैध कनेक्शन के लोग चोरी कर लेते हैं ।
यदि मानें कि सन् 2018 में कुल उठाए गये 8.35 करोड़ लीटर पानी की तुलना में 6 साल बाद अभी 2024 में पानी का उठाव 6 प्रतिशत बढ़ा होगा तो अभी 9.18 करोड़ लीटर पानी जलदाय विभाग उठा रहा है। जलदाय विभाग की व्यवस्था बाहरी कॉलोनियों व कॉम्प्लेक्सों में अब तक नहीं हैं। इस कारण उदयपुर की करीब 20 प्रतिशत आबादी खुद के बोर-वैल से पानी लेती है। उदयपुर की कुल वर्तमान आबादी लगभग 6 लाख है तो खुद के संसाधनों से पानी लेने वाली आबादी 1.20 लाख हुई और 100 लीटर प्रति व्यक्ति खपत मानें को पानी की मात्रा 120 लाख या 1.20 करोड़ लीटर हुई । इस आधार पर उदयपुर के लिये पानी का कुल उठाव 10.38 करोड़ लीटर प्रतिदिन हुआ । इस पानी का अनुमानतः 80 प्रतिशत पानी यदि सीवेज में बदले तो आयड़ नदी तक प्रतिदिन लगभग 8.3 करोड़ लीटर पानी सीवेज के रूप में पहुँचता है ।
डेढ़ करोड़ लीटर उपचारित पानी बहा दिया जाता है
जल शक्ति मंत्रालय ने लोक सभा सांसद मन्ना लाल रावत के अतारांकित प्रश्न संख्या 602 के दिनांक 28.11.2024 को दिये गये उत्तर में बताया गया है कि उदयपुर में चार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं जिनकी जल शोधन क्षमता 6 करोड़ लीटर प्रतिदिन है । इसी उत्तर में राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल के हवाले से यह कहा गया है कि 6 करोड़ लीटर उपचारित पानी में से 4.5 करोड़ लीटर उपचारित पानी हिंदुस्तान जिंक ले जाता है और शेष 1.5 करोड़ लीटर पानी आयड़ नदी में बहा दिया जाता है जो उदयसागर पहुँचता है। उत्तर में यह भी स्वीकार किया गया है कि आंशिक संशोधित व असंशोधित पानी भी आयड़ नदी में छोड़ा जाता है । अब बड़ा सवाल यह उठता है कि ऊपर दिये आंकलन के अनुसार 8.3 करोड़ लीटर सीवेज में से 6 करोड़ लीटर का तो उपचार हो रहा है और शेष 2.3 करोड़ लीटर सीवेज अनुपचारित स्थिति में ही आयड़ नदी व इसके मार्फत उदयसागर में प्रवाहित हो रहा है ।


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By desk 24newsupdate

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