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उदयपुर। आमली एकादशी का मटकियों का मेला उदयपुर के गंगू कुंड पर शुरू हो गया है। इस मेले में चकरी-डोलर से लेकर बच्चों के मनोरंजन के साथ, मनिहारी, खान-पान के स्टॉल सहित अन्य घर-परिवार की जरूरत के सामानों के स्टाल लग गए हैं। मेला आज से शुरू हुआ है व क्योंकि आमली एकादशी आज रात को 12 बजे बाद हैं इसलिए कल मुख्य मेला भरेगा। शहरवासियों ही नहीं ग्रामीण अंचल के लोगों को भी गंगू कुण्ड पर लगने वाले इस अनूठे मेले का इंतजार रहता है। आज मेला परिसार के बाहर से गुजरे लोगों को यहां की रौनक और चारों ओर मिट्टी के बर्तनों के ढेर देख कर अंदाजा हो गया कि मेला लग गया है तो घर लौटते ही उनके परिवाजनों के साहित कदम मेले की ओर बढ़ चले। लगभग हर घर में िर्फ्रज होने के बावजूद अब भी ठंडे पानी के अपनी माटी वाले स्वाद के लिए लोग मटकों को ही पसंद करते हैं। कई लोग गर्मी और बैसाख में पुण्य के लिए प्याउ भी लगवाते हैं। ऐसे में इस मेले में हर आने वाला आता तो खाली हाथ है मगर जाता मटकियों की टंकार की ध्वनि के साथ ही है। मटकियों के साथ ही दही जमाने के छोटे मटके, डेंगची, कुल्हड़ आदि की भी खूब खरीददारी हो रही है। छोटी से बड़़ी मटकियां, रंग-बिरंगी डिजाइनों में सजी मटकियों के अलावा सुर्ख चमके काले रंग की मटकियां भी खूब पसंद की जा रही है। कई सालों से यहां पर आने वाले टोंटी लगी मटकियों के भी खूब खरीददार व कद्रदान हैं। आस-पास के लोग यहां से सालभर में काम आने जितनी मटकियां खरीद कर ले जाते हैं तो जिन घरों में ब्याव-मांडे हैं वे परम्परागत रूप से कलश आदि में काम आने वाले मटकी यहां से पहले ही खरीद लेते हैं। इस मेले की खासियत यह है कि यह उदयपुर जिसे पुरातन सभ्यता में कभी अघाटपुर या आहड़ कहा जाता था, उसकी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। बरसों पुराने इस मेले की रौनक वक्त के साथ फीकी तो हुई है लेकिन अब भी मटकियों की बिक्री के चलते यहां अच्छी रौनक रहती है। शाम ढलते-ढलते बडी संख्या में लोग पहुंचते हैं। यहां पर मिटृटी के बरतानों की बिक्री करने वाले यहां बरसों से आ रहे हैं। उनका कहना है कि यहां पर बहुत ही किफायती दामों पर बर्तन बेचते हैं व खास लाभ भी नहीं होता मगर उनका मेले के साथ ऐसा आत्मीय जुड़ाव है कि खुद ही खिंचे चले आते हैं। अब युवा पीढ़ी भी उनका इस काम में हाथ बंटा रही है। आंवली एकादशी (आमलकी) का ऐसा मेला दुनिया में कहीं नहीं लगता। इस बार रोटी सेकने के लिए मिट्टी की केलड़ी की ज्यादा बिक्री हो रही है क्योंकि कोरोना के बाद से लागों का हाईजीन की तरफ रूझान बढ गया था। तवे की बजाय मिट्टी की केलड़ी पर रोटी पकाना और हांडी में पकी दाल का स्वाद भला कौन भुला सकता है। यही नहीं कई संभ्रांत घरों में भी फ्रिज का ठंड पानी छोड़कर लोग एक बार फिर से मिट्टी की मटकी पर लौट गए हैं ताकि हैल्थ और हाईजीन का रिश्ता बना रहे। यह मेला आयड़ में सरकारी अस्पताल के पास से लेकर गंगू कुंड तक और बाहर बेकनी पुलिया से कुछ पहले तक लगता है। सड़क के दोनों ओर मटकियों और मिट्टी के बर्तन की दुकानें लगी हैं। सुराही, भाण्डे, दही जमाने के लिए जावणिये, छाछ की बिलौनी, घिलोड़ी व छोंक लगाने के लिए बघारी भी खूब बिक रही है। यह मेला खास तौर पर महिलाओं के लिए लोकानुरंजन का भी मेला है। इसमें घर-परिवार की महिलाएं सामूहिक रूप से मटकियों, सौंदर्य प्रसाधन आदि की खरीददारी करने आती हैं। यहां पर हालांकि मोल भाव की गुंजाइश कम ही रहती है मगर फिर भी ज्यादा संख्या में मटकियां खरीदने पर डिस्काउंट की गुंजाइश जरूर रहती है।
अमालकी एकादशी की तिथि और मुहूर्त
अमालकी एकादशी तिथि 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होगी और इसका समापन 21 मार्च को देर रात 02 बजकर 22 मिनट पर होगा. ऐसे में रंगभरी एकादशी व्रत 20 मार्च को रखा जाएगा. रंगभरी एकादशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 20 मार्च को सुबह 6.25 बजे से सुबह 9.27 बजे तक रहेगा.
आमलकी एकादशी की पूजन विधि
आमलकी एकादशी के दिन पूजन से लेकर भोजन तक हर कार्य में आंवले का उपयोग होता है. इस दिन सुबह स्नानादि के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करें. भगवान के सामने घी का दीपक जलकार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. पूजा के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करना न भूलें. यदि आंवले का वृक्ष उपलब्ध न हो तो श्री हरि को आंवला अर्पित कर दें।
आमली एकादशी पर गंगु कुण्ड पर मटकियों का मेलाचकरी, डॉलर, खान-पान के स्टॉल और खरीददारी के आ रहे आनंद

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