अपराधियों में मानवाधिकार कानून का भय जरूरी मानवाधिकारों के प्रति आमजन को जागरूक करने की जरूरत – न्यायमूर्ति आरसी एस झाला पर्यावरण और मानवाधिकार कानून को मानवीय संवेदनाओं से  जोड़ने की जरूरत : प्रो सारंगदेवोत

उदयपुर 9 दिसम्बर / जो अधिकार संविधान में दिये गये है वही अधिकार मानवाधिकार मानवाधिकार में भी दिये गए है लेकिन जागरूकता के अभाव में आमजन अपनेे अधिकारों से वंचित है। उक्त विचार सोमवार को मानवाधिकार आयोग दिवस की पूर्व संध्यॉ पर भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के संघटक विधि महाविद्यालय की ओर से आयोजित संगोष्ठी में राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रामचंद्रसिंह झाला ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। झाला ने कहा कि द्वितिय विश्व युद्ध के बाद मानवाधिकारों का जम कर हनन हुआ, इसी को ध्यान में रखते हुए सभी देशों ने मिलकर कर तय किया कि इनकी रक्षा के लिए आगे आना चाहिए और  मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। मानवाधिकार व्यक्ति को उसके जन्म से ही मिल जाते है। आयोग में आमजन को कई अधिकार दिये गये। अपराधियों में कानून का भय जरूरी है। आयोग को सिविल कोर्ट के अधिकार होते है, किसी केस में वह जिसे चाहे वह तलब कर सकता है। झाला ने भावी एडवोकेट्स को मानवाधिकार आयोग की जानकारी एवं क्रिया कलापों की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि आमजन में मानवाधिकार कानून की जानकारी हो इसका जिम्मा आप सभी का है। आयोग समाचार पत्र में प्रकाशित खबरो के माध्यम से भी संज्ञान ले सकता है। कार्यस्थल पर महिला उत्पीड़न के केस भी देखने को मिलते है लेकिन जानकारी नहीं होने के कारण वह सहन करती रहती है। पीड़ित व्यक्ति को न्याय के लिए आयोग आने की भी जरूरत है नहीं है वह अपनी शिकायत लिखित में डाक या किसी के मार्फत आयोग को भिजवा सकती है, इसमें किसी प्रकार का शुल्क देने की भी जरूरत नही है। जेल मेें बंद बंदी को भी अपने अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। अध्यक्षता करते हुए चैयरपर्सन कर्नल प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि मानवाधिकार को मानवीय संवेदना से जोड़ने के साथ पर्यावरण को भी इस दायरे में लाने की जरूरत है। आज व्यक्ति अपने नीहित स्वार्थाे के कारण प्रकृति का निरंतर दोहन करते जा रहा है। प्रकृति बचेगी तभी मानव सभ्यता बचेगी। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी मानवाधिकारों की रक्षा की बात कही गई है उसी के अनुरूप 10 दिसम्बर 1948  को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर पहली बार आमजन के अधिकारों के बारे में बात रखी। उन्होंने कहा कि आयोग के अधिकारों को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में जोड़ने की जरूरत है जिससे आने वाली पीढ़ी को अपने अधिकारों के प्रति सजग किया जा सके। दरअसल मानवाधिकार स्वतंत्रता, समानता एवं गरिमा के अधिकार है। उन्होंने राजस्थान में महिलाओं के मानवाधिकारों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि महिलाओं को समानता, स्वतंत्रता और सुरक्षा प्रदान करना एक विकसित समाज की पहचान है। उन्होंने महिला अधिकारों को संरक्षित करने की दिशा में समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी पर भी जोर दिया। भूपाल नोबल्स संस्थान के सचिव प्रो.महेंद्र सिंह राठौड़ ने मानवाधिकार आयोग की संरचना पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह किस प्रकार विभिन्न स्तरों पर मानवाधिकारों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने मानवाधिकारों के महत्व को समझाते हुए कहा कि ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र और गरिमामय जीवन जीने का अवसर प्रदान करते हैं। भूपाल नोबल्स संस्थान के प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह राठौड़ ने मानवाधिकारों के महत्व पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मानवाधिकार समाज की आधारशिला हैं। इनके संरक्षण और संवर्धन के बिना किसी भी समाज का समुचित विकास संभव नहीं है। उन्होंने सभी को मानवाधिकारों के प्रति जागरूक रहने और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करने का आह्वान किया। भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. निरंजन नारायण सिंह राठौड़ ने मानवाधिकार दिवस मनाने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह दिन हमें मानवाधिकारों की सुरक्षा और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों का स्मरण कराता है। उन्होंने छात्रों और युवाओं से अपील की कि वे मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता फैलाने में अपनी भूमिका निभाएं।

अतिथियों का स्वागत अधिष्ठाता डॉ.आशुतोष पितलिया ने किया। कार्यक्रम में धन्यवाद डॉ.अनिला ने दिया तथा संचालन डॉ. किरण चौहान ने किया। कार्यक्रम में डॉ. शिखा नागोरी, डॉ. पुष्प लता डांगी, डॉ कृष्णा राणावत, पियूष चव्हान एवं अभिमन्यु सिंह चौहान भी सम्मिलित थे।


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By desk 24newsupdate

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