24 न्यूज़ अपडेट जयपुर। किसी ने जूतियां घिसी, कोई पांव में पड़ा, किसी ने सेटिंग बिठा कर आर्थिक जुगाड़ कर लिया तो कोई इतना हाई पावर जेक लेकर आ गया कि नेताजी मना नहीं कर सके। तबादलों के मानसून ने पूरे प्रशासनिक ढांचे की पोल खोल कर रख दी। यह साबित हो गया कि पूरा प्रशासन नेताओं की मंजूरी का मोहताज है। सिर्फ एक ही सिस्टम पूरे सिस्टम को चलता है और वो है नेताजी का पावर सिस्टम। नेताजी के यहां पिछले 15 दिन से इस दौरान ऐसा मेला लगा कि क्या कानून की रक्षा करने वाले और क्या टेबल के नीचे सरकार कर मुट्ठी गर्म करने वाले, सब के सब मनचाही पोस्टिंग के लिए नतमस्तक नजर आए। रोज पगफेरे किए, मनुहार करते हुए वो सब किया जो तबादलों के लिए जरूरी था। डिजायर का अमृत प्राप्त करने की चाहत में इस दौरान छुटभैयों से लेकर मुखौटाधारी सफेदपोशों तक की शरण में जाना पड़ गया। एमपी याने कि मनी पावर उन सब पर भारी पड़ गया। हालत ये हो गईं कि तबादले की लिस्टें खुद नेताओें के चेलों ने अपने यहां से मीडिया को शेयर की। और एक बार फिर साबित हो गया कि सरकारें बदलने से कुछ नहीं होता, नीचे का सिस्टम वैसे ही काम करता है। राजस्थान में आधी रात से ट्रांसफर पर बैन लगने के बाद अब यह चर्चा है कि कौन किसके जैक जुगाड और किरपा के बलबूते किसी पद पर पहुंचा है। कौन नाराजगी के कारण जिलाबदर हो गया है तो कौन बरसों से ठंडे बस्ते में बंद होकर अब गर्माहट और कमाई वाले पद पर आया है। कुछ मालदार अब भी सदाबहार अपने पद पर कायम हैं क्योंकि समय पर पर आर्थिक ब्रेकफास्ट करवाने वाले गुप्त सिस्टम का हिस्सा है।
जो वास्तव में तबादलों के तलबगार थे उनके अरमां दिल में ही रह गए। नेताजी की डिजायर के लिए उचित जुगाड़ बहुत दौड़भाग के बाद भी नहीं हो पाया। नेताजी के रिश्तेदारों से लेकर उनके कर्मचारियों और छोटे से छोटे कार्यकर्ता के हाथ जोड़ लिए मगर पत्ता भी नहीं हिला पाए। अब लिस्टें आने के बाद उनकी मायूसी इस हद तक है कि बिना जैक का आदमी होने का लेबल चस्पा हो गया है। अनुमान है कि 20 हजार से ज्यादा तबादले किए गए हैं। कल बेकडेट में तबादलों का खेल शुरू हो गया जो आगामी कई दिनों तक जारी रहेगा। परीक्षा की तारीख आगे नहीं बढ़ती, एक मिनट की चूक से नौकरी का फार्म नहीं भर सकते, कई जगह पेनल्टी देनी पडती है लेकिन यहां पर बेकडेट के आनंद ही आनंद हो रहे हैं। कई विभागों में बैक डेट में हुए तबादलों की लिस्टें अवतिरत होकर चौंका रही है। आपको बता दें कि अभी शिक्षा विभाग को तबादलों से महरूम रखा गया है। इसका पिटारा कब खुलेगा यह तो सरकार ही जानें लेकिन मास्टरजी से भेदभाव क्यों हुआ यह चर्चा का विषय जरूर है। वे भी इस महा-कवायाद में शामिल होते तो हो सकता है कि तबादला अर्थशास्त्र को और अधिक मजबूती मिलती। बताया जा रहा है कि मेडिकल, बिजली, जलदाय, पंचायती राज और ग्रामीण विकास में सबसे ज्यादा कर्मचारी होने तबादले हुए हैं। तबादलों में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और विधायकों की सबसे ज्यादा चली है। उनकी डिजायर ही काम आई है।
कामकाज पूरी तरह से ठप
तबादलों के चलते सचिवालय से लेकर ग्राम पंचायत तक अंधी दौड़ रहीं। सरकारी तंत्र पूरी तरह से तबदालों में मग्न हो गया। कामकाज लगभग ठप हो गए। जन प्र्रतिनिधियों के यहां पर ब्यूरोक्रसी घुटना टेक मुद्रा में तैनात रही। अंतिम दौर में तो हालत यह हो गई कि नेताओं ने दफ्तर में बैठना बंद कर दिया व अज्ञात वास में चले गए। बताया जा रहा है कि सरकारी विभागों में मांग की तुलना में कम संख्या में तबादले हुए हैं। अब फिर से बैन हटाने की मांग हो रही है। बताया जा रहा है कि अब तबादलों का मानसून मई या जून में आएगा।
तबादला नीति नहीं होना चिंताजनक
राज्य में परफॉरमेंस के आधार पर नहीं, नेताओं की सिफारिशों या डिजायर के आधार पर तबादले होना चिंताजनक है। इस पूरे तंत्र में ऐसा जंग लग चुका है कि इससे कामकाज पर असर हो रहा है। नेताओं को उनके यसमैन चाहिए जो उनके कहने भर से उनके जुगाड वाले काम कर दें और एक ऐसा अर्थतंत्र बिठा दें जिससे समय समय पर लाभ का गणित बैठता रहे। डिजायर के लिए उन स्वाभिमानी लोगों को भी नेताओं के आगे झुकना पडा जो नौकरी में अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं करना चाहते हैं। काम सरकारी कर्मचारी सरकार के लिए कर रहा है और चाकरी नेताओं की करनी पड़ रही है यह कहां का उसूल है। तबादला उत्सव ने यह बता दिया कि पूरा सिस्टम ही नेताओं के चरणों में है। ऐसे में वो सिस्टम आम आदमी के लिए कैसे काम करेगा, यह सोचने की बात है। जिसने जैक जुगाड लगा कर तबादला करवा लिया है वो उसी नेता की बात मानेगा जिसने तबादला करवाया है। ऐसे में वोट देकर नेता चुनने वाला खुद को ठगा हुआ अनुभव कर रहा है। यह सडी गली व्यवस्था बदलनी चाहिए तथा तबादले की सुनियोजित नीति बननी चाहिए।
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