24 न्यूज अपडेट. नेशनल डेस्क। एम्स के डाक्टरों ने कमाल कर दिया। उन्होंने जापान से एक बहुत ही दुर्लभ समूह का खून मंगवा कर नवजात की जान बचा ली। पांच साल में महिला ने 8वीं बार गर्भधारण किया था। सात बार अबोर्शन करवाना पड़ा था व डाक्टरों ने साफ कह दिया था कि अब बच्चे को जन्म देना मुमकिन ही नहीं है। लेकिन एम्स के डाक्टरों ने इस चमत्कार को कर दिखाया। एम्स में भर्ती प्रसूता के बच्चे को बचाने के लिए छह हजार किलोमीटर दूर जापान की राजधानी टोक्यो से खून मंगाया गया। वह भी केवल 48 घंटो ंके भीतर। इस रक्त की बदौलत प्रसूता का सुरक्षित प्रसव हुआ व बच्चे की जान बच गई। बच्चे को बचाने के लिए विशेष तरह के खून ओ-डी फेनोटाइप की जरूरत थी। एम्स के प्रसूता रोग विभाग के डॉक्टर्स ने जापान की रेड क्रॉस सोसाइटी और ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय ब्लड समूह रेफरेंस लैब से खून मंगवाने में मदद ली। एम्स के प्रसूता रोग विभाग की डॉ. नीना मल्होत्रा, डॉ. अपर्णा शर्मा और डॉ. वत्सला दढ़वाल की देखरेख में यह चमत्कार किया गया। डॉ. अपर्णा शर्मा ने बताया कि हरियाणा की महिला को आठवीं बार गर्भ धारण हुआ, इससे पहले सात सात गर्भ विकसित नहीं हो सके। इस बार उसका भ्रूण हिमोलेटिक रोग से पीड़ित था। इसमें मां का खून और उसके भ्रूण का खून मिलता ही नहीं है। ऐसे में बच्चे में खून की कमी होती जा रही थी। उसे एम्स दिल्ली रेफर कर दिया गया।
याहं पर डाक्टरों ने तय किया कि गर्भ में ही बच्चे को खून चढ़ाया जाएगा। डॉक्टर्स की टीम ने भ्रूण की लाल रक्त कोशिकाओं को बचाने के लिए ब्लड ग्रुप लिया मगर यह भारत में ही उपलब्ध नहीं था। इसके बाद सैंपल लेकर ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय ब्लड ग्रुप रेफरेंस लैब भेजा गया। वहां से जवाब आया कि यह बेहद दुर्लभ रक्त समूह ओ-डी फेनोटाइप है। इसके बाद बच्चे को बचाने के लिए ब्लड चढ़ाने की जरूरत के चलते खोजबीन शुय हुई। दुर्लभ रक्त समूह की यह खोज जापान जाकर खत्म हुई। इससे पहले एक और विडंबना यह हो गई कि अंतरराष्ट्रीय दुर्लभ ब्लड पैनल ने बताया कि भारत का एक पंजीकृत व्यक्ति ओ- डी फेनोटाइप रक्त समूह वाला है। जब उससे संपर्क किया तो उसने रक्त दान से मना कर दिया। इसके बावजूद डॉक्टर्स ने हार नहीं मानी। जापान ने चार यूनिट ब्लड एम्स को भेजे जाने पर सहमति दी। जापान से आरोग्य कोष और कई एनजीओ की मदद से फ्लाइट के जरिये ब्लड दिल्ली लाया गया। दो यूनिट ब्लड गर्भावस्था के दौरान इस्तेमाल किया गया। महिला की आपरेशन के जरिये डिलीवरी हुई। शेष दो यूनिट ब्लड को डॉक्टर्स ने नवजात बच्चे की जान बचाने में इस्तेमाल किया। कुछ दिन बाद बच्चे और मां को अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई। यह मामला दुनिया के दुर्लभतम मामलों में से एक हो गया है जिसमें बच्चे की जान बचाई जा सकी है। हरियाणा की रहने वाली 24 साल की पूनम की 5 साल पहले शादी हुई थी व उसके बाद उसने आठवीं बार गर्भधारण किया था। मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव था और बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव, जब बच्चा 7-8 महीने का होता तो उसके अंदर खून की कमी होने लगती और फिर बच्चे की मौत गर्भ के अंदर ही हो जाती थी।
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