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खास खबर : सीसीटीवी रिकॉर्डिंग देने से मना नहीं कर सकते पुलिस और सरकारी विभाग

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बहानेबाजी से बाज नहीं आ रहे उदयपुर पुलिस और देवस्थान विभाग, 18 महीने से पहले डिलिट नहीं कर सकते रिकॉर्डिंग

24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। आईजी स्टेट क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो ने राज्य के सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को आदेश जारी किए हैं जिसमें सभी प्रकरणो व आरटीआई में चाहे जाने पर आवेदक को सीसीटीवी रेकॉर्डिंग उपलब्ध करवानी है। आपको बता दें कि परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट का 2020 का फैसला पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी की स्थापना को अनिवार्य करके संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी व्यक्तियों और विचाराधीन कैदियों के मानवाधिकारों को बरकरार रखने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय था। परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह केस में बताया गया कि सीसीटीवी के कामकाज, रखरखाव और रिकॉर्डिंग की जिम्मेदारी संबंधित पुलिस स्टेशन के एसएचओ की होगी। यह एसएचओ का कर्तव्य और दायित्व होगा कि वह सीसीटीवी या सहायक उपकरणों में किसी भी खराबी के बारे में तुरंत डीएलओसी को रिपोर्ट करेगा। यदि किसी विशेष पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी काम नहीं कर रहे हैं, तो संबंधित एसएचओ उक्त अवधि के दौरान उस पुलिस स्टेशन में की गई गिरफ्तारी/पूछताछ के बारे में डीएलओसी को सूचित करेगा और उक्त रिकॉर्ड डीएलओसी को अग्रेषित करेगा। यदि संबंधित एसएचओ ने किसी विशेष पुलिस स्टेशन के सीसीटीवी के खराब होने या काम न करने की सूचना दी है, तो डीएलओसी तुरंत उपकरण की मरम्मत और खरीद के लिए एसएलओसी से अनुरोध करेगा, जो तुरंत किया जाएगा। प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक को संबंधित पुलिस स्टेशन के एसएचओ को स्थापित सीसीटीवी कैमरों की कार्यशील स्थिति का आकलन करने की जिम्मेदारी सौंपने के लिए पुलिस स्टेशन के प्रभारी व्यक्ति को निर्देश जारी किया जाना चाहिए। पुलिस स्टेशन में सभी गैर-कार्यात्मक सीसीटीवी कैमरों की कार्यप्रणाली को बहाल करने व सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए भी आदेशित करना चाहिए, सीसीटीवी डेटा रखरखाव, डेटा का बैकअप, दोष सुधार आदि के लिए भी पुलिस अधिकारी को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित राज्य और/या केंद्र शासित प्रदेश में कार्यरत प्रत्येक पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस स्टेशन का कोई भी हिस्सा खुला न रहे, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सभी प्रवेश और निकास बिंदुओं पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं। पुलिस स्टेशन का मुख्य द्वार; सभी लॉक-अप; सभी गलियारे, लॉबी/स्वागत क्षेत्र, सभी बरामदे/आउटहाउस, इंस्पेक्टर का कमरा; सब-इंस्पेक्टर का कमरा; लॉक-अप रूम के बाहर के क्षेत्र, स्टेशन हॉल, पुलिस स्टेशन परिसर के सामने, शौचालय/शौचालय के बाहर (अंदर नहीं); ड्यूटी अधिकारी का कमरा; थाने का पिछला भाग आदि। पुलिस थानों मे जो सीसीटीवी सिस्टम लगाए जाने हैं, वे नाइट विजन से लैस होने चाहिए और उनमें ऑडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज भी शामिल होना चाहिए। जिन क्षेत्रों में बिजली या इंटरनेट नहीं है, वहां सौर/पवन ऊर्जा सहित बिजली प्रदान करने के किसी भी तरीके का उपयोग करके इसे यथासंभव शीघ्रता से प्रदान करना राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का कर्तव्य होगा। जो इंटरनेट प्रणालियाँ प्रदान की जाती हैं वे ऐसी प्रणालियाँ भी होनी चाहिए जो स्पष्ट छवि रिज़ॉल्यूशन और ऑडियो प्रदान करती हों। सबसे महत्वपूर्ण है सीसीटीवी कैमरा फुटेज का भंडारण जो डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर और/या नेटवर्क वीडियो रिकॉर्डर में किया जा सकता है। फिर ऐसे रिकॉर्डिंग सिस्टम के साथ सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए ताकि उनमें संग्रहित डेटा 18 महीने की अवधि तक संरक्षित रहे। सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र सरकार के लिए इसे खरीदना अनिवार्य होगा। जब भी पुलिस स्टेशनों पर बल प्रयोग की सूचना मिलती है जिसके परिणामस्वरूप गंभीर चोट लगती है और/या हिरासत में मौतें होती हैं, तो यह आवश्यक है कि व्यक्ति इसके निवारण के लिए शिकायत करने के लिए स्वतंत्र हों। ऐसी शिकायतें न केवल राज्य मानवाधिकार आयोग को की जा सकती हैं, जिसे ऐसी शिकायतों के निवारण के लिए विशेष रूप से मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 17 और 18 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करना होगा, बल्कि मानवाधिकार आयोग को भी ऐसा करना होगा। न्यायालय, जिन्हें उपरोक्त अधिनियम की धारा 30 के तहत प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के प्रत्येक जिले में स्थापित किया जाना चाहिए। आयोग/न्यायालय घटना के संबंध में तुरंत सीसीटीवी कैमरा फुटेज को सुरक्षित रखने के लिए तलब कर सकता है, जिसे बाद में शिकायत पर आगे की कार्रवाई के लिए जांच एजेंसी को उपलब्ध कराया जा सकता है।
शरत कविराज, महानिरीक्षक पुलिस, स्टेट क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो, राजस्थान, जयपुर द्वारा सीसीटीवी परियोजना के क्रियान्वयन के संबंध में जारी किया गया था। आदेश
जयवंत भेरविया द्वारा स्टेट क्राइम रिकार्ड्स में प्रस्तुत आरटीआई आवेदन में 16 नवंबर 2023 को आदेश की सूचना प्रदान की गई जो कि राज्य के समस्त जिला पुलिस अधीक्षक को जारी किया गया था जिसमे वर्णित था कि भविष्य में पुलिस थाना स्तर पर आपराधिक प्रकरणों / परिवादों /आरटीआई में सीसीटीवी कैमरों की फुटेज/ रेकॉर्डिंग चाहने पर जिला स्तर पर ही सम्बंधित आवेदक को फुटेज/रेकॉर्डिंग उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाएगा। राज्य सूचना आयोग ने उदयपुर पुलिस अधीक्षक को आरटीआई के अंतर्गत सीसीटीवी फुटेज देने के आदेश जारी किए। राज्य सूचना आयोग द्वारा 18 /9/2023 को द्वितीय अपील में राज्य लोक सूचना अधिकारी एवं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, उदयपुर शहर के विरुद्ध पारित निर्णय में वर्णित किया था कि पुलिस थाना अथवा किसी भी सरकारी कार्यालय में कैमरे लगाने का उद्देश्य गोपनीयता बनाये रखना नही है, अपितु पारदर्शिता , निष्पक्षता एवं तथ्यों की प्रमाणिकता के उद्देश्य से कैमरे लगाए जाते है, सूचना को , सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8(1) की परिधि में प्रकटन से छूट के दायरे में माना जाना विधिसम्मत नहीं है अतः प्रत्यर्थी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक उदयपुर शहर को आदेशित किया जाता है कि निर्णय प्राप्त होने के 7 दिवस में वांछित, बिंदुवार सूचना, अधिप्रमाणित, हस्ताक्षर कर पंजीकृत पत्र द्वारा निःशुल्क प्रेषित करें।
देवस्थान विभाग व उदयपुर का सूरजपोल पुलिस थाना नहीं करता आदेशों की पालना
माँझी का घाट , सरदार स्वरूप श्याम जी मंदिर परिसर में कुछ दिन पहले पर्यटकों द्वारा की गई शराब पार्टी के सबूत वहाँ लगे सीसीटीवी कैमरां की फुटेज मांगे जाने पर देवस्थान सहायक आयुक्त जतिन गाँधी ने गोपनीयता का हवाला देते हुए आवेदक को इनकार कर दिया। स्टेट क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आदेशों और राज्य सूचना आयोग के निर्णय के विपरीत सूरजपोल पुलिस ने हास्यास्पद जवाब दिया कि सूरजपोल पुलिस थाने में हुई एक घटना के सीसीटीवी फुटेज के सम्बंध मे उदयपुर के आरटीआई एक्टिविस्ट जयवंत भैरविया ने आरटीआई लगाई तो सुरजपोल थाना पुलिस ने बहानेबाजी कर फुटेज देने से मना कर दिया और हास्यास्पद जवाब दिया। इसमें कहा गया कि थाने मे विश्वसनीय मुखबिरों का आना-जाना लगा रहता है जिनकी पहचान सीसीटीवी फुटेज देने से उजागर हो सकती है। थाने के शस्त्रागार में पड़े शस्त्रों के बट नम्बर व बॉडी नम्बर की जानकारी सार्वजनिक हो सकती है। किस पुलिस अधिकारी के पास किस समय कौन सा शस्त्र रहता है उसकी पहचान सार्वजनिक होने से राज्य की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है। थाने में गिरफ्तार आरोपियों ,अभियुक्तों की पहचान सीसीटीवी फुटेज देने से सार्वजनिक हो सकती है। साक्षी गणों की पहचान सार्वजनिक होने से आरोपी पक्ष द्वारा उन्हें धमकाया जा सकता है। थाने में जब्तशुदा माल की जानकारी सार्वजनिक हो सकती है।

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