24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर. बाबा आमटे दिव्यांग विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो. देवस्वरूप ने कहा कि शिक्षा को केवल व्यावसायिक सफलता का माध्यम नहीं, बल्कि विचारशीलता और मूल्यपरकता का आधार बनाना अनिवार्य है।
वे रविवार को जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में समारोह को संबोधित कर रहे थे। प्रो देव स्वरूप एक भारतीय शैक्षिक प्रशासक व पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय जयपुर में कुलपति रहे। वे इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, की कार्यकारी परिषद के सदस्य हैं। वे भारत और विदेशों में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विशिष्ट अतिथि हैं, उन्होंने विभिन्न देशों यूएसए, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, थाईलैंड, बांग्लादेश, ओमान की सल्तनत और भूटान की शैक्षणिक गतिविधियों का दौरा किया है। उन्होंने एमएचआरडी, योजना आयोग, यूजीसी और आईसीएसएसआर की कई समितियों में एक उल्लेखनीय उपस्थिति के साथ उच्च शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर नीति निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रो. देवस्वरूप ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण में उनकी भूमिका एक विशेष अवसर और चुनौती रही है। शिक्षा हमेशा से समाज के विकास का आधार रही है। यदि हम 1857 के कालखंड को देखें, तो यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। महात्मा गांधी ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की, जो उनके विचारों का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसी दृष्टि से 1937 में राजस्थान विद्यापीठ की स्थापना हुई, जो शिक्षा और संस्कृति के संरक्षण के लिए एक दूरदर्शी प्रयास था।
संस्थाओं का निर्माण हमेशा परिश्रम, दूरदर्शिता और समर्पण का परिणाम होता है। आज हमारे भारतीय छात्र और विशेष रूप से भारतीय महिलाएं वैश्विक स्तर पर अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं। हमारे विद्यार्थी विश्व के उच्चतम शिक्षण संस्थानों में प्रमुख भूमिकाएं निभा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रो. सारंगदेवोत ने अपने अथक प्रयासों से राजस्थान विद्यापीठ को यूजीसी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न मापदंडों पर खरा उतारा है। यह संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में भारत के गौरवशाली शिक्षण संस्थानों में शामिल हो चुका है। मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन द्वारा जारी NIRF रैंकिंग में, जहां 50,000 शिक्षण संस्थानों में से केवल 5,500 ने भाग लिया जिसमें राजस्थान विद्यापीठ एक है।
पूर्व में शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व निर्माण था। आज यह जॉब-केंद्रित हो गई है, जिससे शिक्षा और विचारशीलता के बीच एक अंतराल पैदा हो गया है। इसी कारण, आज के शिक्षित युवाओं में अपराध की प्रवृत्ति देखी जा रही है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। शिक्षा को केवल व्यावसायिक सफलता का माध्यम नहीं, बल्कि विचारशीलता और मूल्यपरकता का आधार बनाना अनिवार्य है।
एक शिक्षक का दायित्व केवल ज्ञान देना नहीं है, बल्कि स्वयं अपने मूल्यों का उदाहरण बनकर विद्यार्थियों को प्रेरित करना है। सभ्यता और संस्कृति के साथ शिक्षा को आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास निर्माण का माध्यम बनाना होगा। यही शिक्षा का सच्चा उद्देश्य है, और इसे प्राप्त करने के लिए हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा।

100 बेड के अस्पताल संचालित करने के साथ 30 हजार छात्र संख्या और श्रेष्ठ 100 विश्वविद्यालयों में शामिल करने का लक्ष्य – कुलपति प्रो. सारंगदेवोत*

राजस्थान विद्यापीठ के 39वें स्थापना सभी को शुभकामनाएं देते हुए कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि हमारी संस्कृति का मूल मंत्र “आ नो भद्राः क्रतवो यंतु विश्वतः” हमें प्रेरित करता है कि हम विश्वभर से श्रेष्ठ विचारों को आत्मसात करें। इसी विचारधारा को अपनाते हुए विद्यापीठ ने अपने दायित्व का निर्वहन किया है।
1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और 1922 में दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना के दस वर्ष बाद, 1937 में राजस्थान विद्यापीठ की स्थापना हुई। यह संस्था, आजादी से पूर्व, लोक कल्याण और भारतीय संस्कृति के उत्थान के प्रति समर्पित रही है।
आने वाले समय में विद्यापीठ 100-बेड अस्पताल को पूर्ण रूप से संचालित करेगा। और एक आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर सेंटर खोलेगा, जहां विद्यार्थी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में भविष्य निर्माण की दिशा में प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। हमारा लक्ष्य वर्तमान में 10,000 विद्यार्थियों की संख्या को बढ़ाकर 30,000 तक ले जाना है।
स्वामी विवेकानंद की जयंती पर उनके विचारों “उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक चलते रहो” से प्रेरणा लेकर हम भारत के 15,000 विश्वविद्यालयों में प्रथम 100 में स्थान पाने का संकल्प लेते हैं। शोध, नवाचार, और भारतीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा को केंद्र में रखते हुए सतत विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को सामना करने का प्रयास जारी रहेगा।
हमारी यात्रा “आत्मदीपो भव” की संकल्पना को साकार करने और व्यक्तित्व निर्माण को सतत बनाए रखने की है। सभी के सहयोग और प्रयास से विद्यापीठ अपने ध्येय को अवश्य प्राप्त करेगा।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि बाबा आमटे दिव्यांग विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो देव स्वरूप विशिष्ट अतिथि डॉ निरुपमा सिंह, कुलपति कर्नल प्रो शिव सिंह सारंगदेवोत, कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर, पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा, कुलसचिव डॉ. तरुण श्रीमाली के आथित्य में मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन व माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने विद्यापीठ की यात्रा को साझा करते हुए कहा कि विद्यापीठ ने उसे समय जनू भाई के सपने को साकार किया जब शिक्षा जगत में कोई संस्था नहीं थी और जानू भाई ने दूरदर्शिता की सोच के साथ सुदूर क्षेत्रों में शिक्षा और भारतीय संस्कारों को संप्रेषित करने के उद्देश्य से शिक्षण संस्था की स्थापना की जो आज वटवृक्ष के रूप में खड़ी है।
इस अवसर पर पीठ स्थविर कौशल नागदा ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा 10 वर्षों का विजन डॉक्यूमेंट का विमोचन किया गया ।
धन्यवाद कुलसचिव डॉ तरुण श्रीमाली ने दिया।
संचालन डॉ हीना खान, डॉ हरीश चौबीसा, डॉ. रचना राठौड़ , डॉ अमी राठौड़ द्वारा किया गया। इससे पूर्व प्रमुख अतिथि प्रो देव स्वरूप को एनसीसी छात्रों द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
इससे पूर्व कुंभा कला केंद्र द्वारा अतिथियों के स्वागत में पधारो म्हारे देश गीत प्रस्तुत किया गया।

इस अवसर पर पीजी डीन प्रो जीएम मेहता, परीक्षा नियंत्रक डॉ पारस जैन, प्रो गजेंद्र माथुर, प्रो इंद्रजीत माथुर , प्रो. सरोज गर्ग, डॉ शैलेंद्र मेहता, डॉ एसबी नागर, डॉ धर्मेंद्र राजोरा, डॉ. सुनीता मुर्डिया, डॉ बीएल श्रीमाली, प्रो. जीवन सिंह खरकवाल , डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ अवनीश नागर, डॉ. गुणबाला आमेटा आदि सभी डीन डायरेक्टर्स शैक्षिक गैरशैक्षिक कार्यकर्ता सहित नजदीकी किसान समुदाय की उपस्थिति रही।


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By desk 24newsupdate

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